नई दिल्ली। करीब-करीब पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके तालिबान को पंजशीर इलाके ने परेशान कर रखा है। काबुल से महज 150 किलोमीटर दूर होने के बावजूद वह इस इलाके को जीत नहीं पाया है। पंजशीर में तालिबान के नाक में दम करने वाला नेता अहमद मसूद है। जिसने यह साफ-साफ कह दिया है कि आत्म समर्पण करना उनके शब्द कोष में नहीं है। संघर्ष तो अभी शुरू हुआ है और मैं अपने पिता के नक्शे कदम पर चल रहा हूं।
पिता अहमद शाह मसूद है नायक
अहमद मसूद अपने पिता अहमद शाह मसूद के जिस नक्शे कदम की बात कर रहे हैं, वह उत्तरी अफगानिस्तान में नायक की तरह जाने जाते हैं। और उन्होंने न तो सोवियत संघ के सामने और न ही तालिबान के सामने घुटने टेके। अपनी प्राकृतिक सुरक्षा के लिए प्रसिद्ध, हिंदू कुश पहाड़ों में बसा यह क्षेत्र 1990 में भी तालिबान के हाथों में कब्जे में नहीं आया था। सोवियत संघ भी कभी इसे जीत नहीं पाया था। घाटी में 150,000 निवासी ताजिक जातीय समूह के हैं।
पंजशीर घाटी की आजादी का इतिहास अफगानिस्तान के सबसे प्रसिद्ध तालिबान विरोधी सेनानी अहमद शाह मसूद से जुड़ा हुआ है। उसने 1979 में खुद को मूसद (भाग्यशाली) घोषित किया। और काबुल में मौजूद सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ संघर्ष किया और कभी हार नहीं मानी। साल 1989 में सोवियत संघ की वापसी के बााद, अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया, जिसे तालिबान ने जीत लिया। इसके बावजूद मसूद और उसका संयुक्त मोर्चा (जिसे उत्तरी गठबंधन के रूप में भी जाना जाता है) न केवल पंजशीर घाटी को स्वतंत्र करने में सफल रहा, बल्कि चीन और तजाकिस्तान के साथ सीमा तक लगभग पूरे पूर्वोत्तर अफगानिस्तान को नियंत्रित करने में सफल रहा और तालिबान के विस्तार को इस क्षेत्र में रोक दिया। साल 2001 में मसूद की अल कायदा आंतकवादियों द्वारा हत्या कर दी गई थी।
क्या कहते हैं अहमद मसूद
अहम मसूद ने वाशिंगटन पोस्ट में लिखा है "मैं अपने पिता के पद चिन्हों पर चलने को तैयार हूं। एक बार फिर मुजाहिदन लड़ाके तालिबान से टक्कर लेने के लिए तैयारा हैं। हमने पहले से ही असलहे, गोला-बारूद इकट्ठा कर लिए थे। हमें पता एक दिन ऐसा समय आ सकता है।" उन्होंने रायटर्स से बात करते हुए यह भी कहा है कि हम तालिबान को एक बात अहसास कराना चाहते हैं कि केवल बात-चीत से ही हल निकल सकता है। इसके अलावा और कोई विकल्प नही है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
पंजशीर का अहमियत और उनकी ताकत के बार में मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान की रिसर्च फेलो स्मृति एस.पटनायक ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बताया "अहम शाह मसूद की ताकत को इस तरह समझा जा सकता है कि तालिबानों से पहली लड़ाई में अमेरिका को भी काबुल पर कब्जा उन्हीं ने दिलाया था। इस ऐतिहासिक संघर्ष को हमें अफगानिस्तान की स्थानीय जातियों के बीच के संघर्ष के रुप में देखना होगा। तालिबान में पश्तूनों का बोलबाला है। जबकि पंजशीर इलाके में ताजिक समुदाय का बहुमत है और उजबेक लोगों की संख्या भी ठीक-ठाक है। इसके भौगोलिक क्षेत्र को भी देखा जाय तो इसकी सीमाएं तजाकिस्तान, उजबेकिस्तान के नजदीक हैं। ऐसे में ऐताहिसिक रुप से इस इलाकों के लोगों को यह डर है कि अगर वह तालिबान की सत्ता स्वीकार करते हैं तो उनकी राजनीतिक और सामाजिक भागीदारी कमजोर हो जाएगी। इसीलिए वह हमेशा से तालिबान का विरोध करते रहे हैं।