राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता। अगर ऐसा होता तो नेता पार्टियां नहीं बदलते। नेताओं के लिए पार्टियों का बदलना, कपड़ों को बदलने की तरह ही होता है मसलन कपड़ा पुराना हो तो बदला जाता है, लिहाजा अगर विचार प्रासंगिक ना रहे तो दल बदल दो। राजनीति शास्त्र का यह अकाट्य तर्क है। बात हम कर रहे हैं कि केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की जो 16 वर्ष की उम्र में खांटी शिवसैनिक बनते है, लेकिन उनकी नांव हिचकोले खाने लगी तो समय के हिसाब से वो अलग अलग नावों पर सवार होने लगे, हालांकि अब वो बीजेपी के हिस्सा हैं।
नासिक में की थी टिप्पणी
हाल ही में वो नासिक में थे और कोरोना महामारी को लेकर उद्धव ठाकरे की सख्त आलोचना में उनकी जबान फिसली और कान के नीचे..लगा देने की बात कह बैठे। उसके बाद जो कुछ हो रहा है उसे देश देख रहा है, मुंबई की सड़कों पर शिवसेना ने आक्रामक अंदाज में बीजेपी के दफ्तर को निशाना बनाया तो दूसरी तरफ मुंबई की दीवालों पर नारायण राणे के खिलाफ पोस्टर चस्पा गए जिसमें उन्हें मुर्गी चोर कहा गया। दरअसल राजनीति में आने से पहले वो चिकन शॉप का धंधा करते थे।
राणे के संयम बरतना चाहिए था
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि नारायण राणे को बोलने के दौरान थोड़ा संयम बरतना चाहिए।
कोंकण इलाके से आते हैं नारायण राणे
कोंकण इलाके से आने वाले नारायण राणे 16 साल की उम्र में शिवसेना में शामिल हुए, खास बात यह थी कि उनकी प्रतिभा से बाला साहेब ठाकरे भी प्रभावित थे। कुछ वैसे ही बाल साहेब ठाकरे की शैली से नारायण राणे भी प्रभावित हुए और उसका फायदा राणे को राजनीति की पिच पर भी मिला। 1985 के करीब राणे कार्पोरेटर बने और शिवसेना बीजेपी गठबंध न में सीएम की कुर्सी तक पहुंचे। लेकिन शिवसेना में उद्धव ठाकरे का प्रभुत्व बढ़ने लगा तो वो उभार नारायण राणे को रास नहीं आती थी और पार्टी का दामन छोड़कर कांग्रेस का दामन था लिया। लेकिन वहां से मोहभंग हुआ और अलग पार्टी बना ली। इसके साथ ही अलग पार्टी बनाई।
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