नई दिल्ली : कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा चीन अब तक इस जानलेवा वायरस से बचाव का कोई ठोस तरीका नहीं ढूंढ पाया है। इस संक्रमण ने जहां चीन की स्वास्थ्य व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर रख दी है, वहीं जिस तरह यह वायरस दुनियाभर में तेजी के साथ पांव पसार रहा है, उससे दुनिया के अन्य देशों में भी उसके प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। चीन खासकर ऐसी रिपोर्ट्स के बीच दुनिया के देशों के निशाने पर है कि उसने इस जानलेवा वायरस के संक्रमण की खबर को शुरुआत में सिर्फ इसलिए दबाने का प्रयास किया कि उसके राजनीतिक नेतृत्व की क्षमता पर कोई सवाल न उठाए।
ये देसी तरीके अपना रहा चीन
कोरोना वायरस को लेकर घरेलू मोर्चे पर पहले ही विफल चीन में अब नर्वसनेस की स्थिति देखी जा रही है। इस जानलेवा संक्रमण से चीन में 549 लोगों की मौत और 19,665 लोगों के संक्रमित होने के बावजूद अब तक इसका कोई सटीक इलाज नहीं ढूंढा जा सका है। बढ़ते संकट के बीच चीन इससे निपटने के लिए अजीबोगरीब उपाय अपना रहा है। इसके लिए वह तमाम ऐलोपैथिक दवाओं के साथ-साथ देसी इलाज के तरीके भी अपना रहा है, जिसमें भैंस की सींग का चूर्ण भी शामिल है। दरअसल, चीनी हकीमों का मानना है कि भैंस की सींग के चूर्ण का इस्तेमाल करते हुए इस महामारी पर काबू पाया जा सकता है, जिससे चीन सहित दुनियाभर में 563 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 28,018 लोग संक्रमित हैं।
कितने कारगर हैं ये देसी उपचार?
'न्यूयार्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच चीनी अधिकारियों ने स्थानीय डॉक्टरों से कहा है कि वे इस संक्रमण से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए एलोपैथ की दवाओं के साथ देसी तरीकों को भी आजमाएं। इस निर्देश के बाद के बाद यहां भैंस के सींग के चूर्ण का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। इसके अलावे मवेशियों की पित्त-पथरी, जैस्मीन और सीप का इस्तेमाल भी किया जा रहा है, जो चीन की देसी दवाओं में शुमार रहा है। हालांकि इसके साक्ष्य नहीं हैं कि ये प्रभावी होते ही हैं, पर चीन में चिकित्साकर्मियों का कहना है कि इससे वायरस के लक्षणों, जैसे फेफड़ों में सूजन, बुखार आदि से निजात पाने में कुछ हद तक ही सही, सफलता मिल सकती है।
सार्स से लिया सबक!
माना जा रहा है कि चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस निर्देश के बाद देसी तरीकों से इलाज की प्रक्रिया तेज हुई है कि कोरोना वायरस के उपचार के लिए पश्चिमी चिकित्सा पद्धति की बजाय परंपरागत तरीके अपनाए जाएं और इसे 'राष्ट्रीय गौरव' की तरह पेश किया जाए। इसकी वजह 2002-03 के दौरान चीन में फैले सार्स वायरस के संक्रमण के उपचार के लिए अपनाई गई पश्चिमी चिकित्सा पद्धति से लिया गया सबक भी बताया जा रहा है, जिसमें उपचार के लिए स्टेरॉयड का खूब इस्तेमाल किया गया था, लेकिन इससे आगे चलकर मरीजों को नुकसान भी हुआ था। उसी से सबक लेते हुए अब चीन ने परंपरागत उपचार को भी इलाज प्रक्रिया में शामिल कर लिया है।
एड्स की दवाओं का भी इस्तेमाल
कोरोना वायरस से निपटने के लिए चीन आधुनिक चिकित्सा पद्धति, देसी इलाज के साथ-साथ एड्स की दवाओं का भी इस्तेमाल कर रहा है। अधिकारियों का दावा है कि ये दवाएं कोरोना वायरस से लड़ने में भी कारगर हैं। चीन इस बीच सोशल मीडिया पर भी अंकुश लगा रहा है, ताकि उसकी बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और संकट से निपटने में उसकी अक्षमता के बारे में दुनिया को पता न चले। पहले भी ऐसी रिपोर्ट सामने आ चुकी है कि उसने 30 दिसंबर को सबसे पहले इस घातक बीमारी के बारे में ऑनलाइन चैट ग्रुप में बताने वाले डॉक्टर पर दबाव बनाकर उनसे लिखित में यह कबूल करवाया कि उन्होंने गैर-कानूनी काम किया।