नई दिल्ली: तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। और अब यह भी साफ है कि वहां शरीयत के अनुसार सरकार चलाई जाएगी। इस बदलाव से सबसे बड़ा फायदा चीन और पाकिस्तान को होने वाला है। क्योंकि इन देशों ने तालिबान को दोबारा सत्ता हासिल करने में सीधे और बैकडोर से पूरी मदद की है। और जिस तरह से दुनिया के प्रमुख देशों के विपरीत चीन और पाकिस्तान तालिबान के समर्थन में खुलकर सामने आए हैं। उसके कई सियासी मायने हैं। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा है 'चीन स्वतंत्र रूप से अपने भाग्य का निर्धारण करने के अफगान लोगों के अधिकार का सम्मान करता है और अफगानिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध विकसित करना जारी रखना चाहता है।" वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी तालिबान का स्वागत करते हुए कहा है "उन्होंने (तालिबान) अफगानिस्तान में मानसिक गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया है।"
अफगानिस्तान की लोकेशन खास
अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति रणनीतिक रुप से बेहद खास है। यह मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और मिडिल ईस्ट को लिंक करता है। साथ ही अफगानिस्तान खनिज संसाधनों से प्रचुर है। इसे देखते हुए दुनिया के सुपर पावर उस पर कब्जा जमाने की कोशिश करत रहे हैं। रूस, अमेरिका के बाद अब चीन पाकिस्तान के सहयोग से अफगानिस्तान में अपने को मजबूत कर पूरा फायदा उठाना चाहता है।
छुपा है खजाना
भारत के पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल को बताया "देखिए चीन की अफगानिस्तान के प्रचुर खनिजों पर नजर है। यह बात जग जाहिर है कि तालिबान पाकिस्तान के सहयोग से खड़ा हुआ है। और पाकिस्तान को चीन का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में तालिबान की सरकार उन्हें तरजीह देगी।चीन पहले से ही खनिज क्षेत्र में एक बड़ा कांट्रैक्ट हासिल कर चुका है।" चीन इस समय अफगानिस्तान में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है। चाइना मेटलर्जिकल ग्रुप कॉर्प, झीजिन माइनिंग ग्रुप कंपनी, जियांग्जी कॉपर कॉरपोरेशन ने 3.5 अरब डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था। यह कांट्रैक्ट दुनिया की सबसे बड़ी कॉपर फील्ड आयनाक कॉपर फील्ड के लिए मिला था।
विभिन्न एजेंसियों के अनुमान के अनुसार अफगानिस्तान में 400 अरब डॉलर के लौह अयस्क, 270 अरब डॉलर के कॉपर, 25 अरब डॉलर का सोना , 50 अरब डॉलर का कोबाल्ट मौजूद हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान में करीब 1600 मिलियन बैरल कच्चा तेल और 15 हजार ट्रिलियन क्यूबिक फुट से ज्यादा गैस मौजूद है। इसके अलावा रेयर अर्थ मेटल्स का प्रचुर भंडार है। जिसके आधुनिक तकनीकी में कहीं ज्यादा इस्तेमाल होता है।
वन बेल्ट वन रोड को मिल सकता है बूस्ट
अफगानिस्तान पर चीन का प्रभाव बढ़ने से उसके महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड का बड़ा बूस्ट मिल सकता है। नए सिल्क रोड फंड के लिए 40 अरब डॉलर, चाइना डेवलपमेंट बैंक 900 अरब डॉलर, एशिया इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक 100 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है। जिसके तहत 60 देशों में 900 से ज्यादा प्रोजेक्ट बनाए जाने हैं। अफगानिस्तान का माहौल अब चीन के लिए अनुकूल हो गया है। ऐसे में वहां अपनी मर्जी के अनुसार इनवेस्टमेंट कर सकेगा। इसके अलावा चीन तजाकिस्तान से होते हुए अफगानिस्तान को रेल लिंक से भी जोड़ रहा है।साफ है कि इन कदमों से चीन का प्रभाव तेजी से मध्य एशिया में बढ़ेगा जो भारत के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है।