अशरफ गनी की जुबां पर नजीबुल्लाह का नाम, आखिर कौन थे वो शख्स

दुनिया
ललित राय
Updated Aug 19, 2021 | 12:51 IST

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति रहे अशरफ गनी का कहना है कि देश छोड़ने के पीछे की बड़ी वजह ये थी उन्हें नजीबुल्लाह के साथ जो कुछ हुआ था उससे डर गए।

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अशरफ गनी की जुबां पर नजीबुल्लाह का नाम, आखिर कौन थे वो शख्स  
मुख्य बातें
  • नजीबुल्लाह भी अफगानिस्तान के राष्ट्रपति थे, 1996 में तालिबान ने फांसी पर लटका दिया था
  • सोवियत संघ के समर्थन से नजीबुल्लाह ने अफगानिस्तान की सत्ता संभाली थी
  • अशरफ गनी को तालिबानी अमेरिका का एजेंट मानते रहे हैं।

तालिबान एक तरफ काबुल को फतह करने की तैयारी में तेजी से आगे बढ़ रहे थे तो उस वक्त अफगानिस्तान के राष्ट्रपति रहे अशरफ गनी मुल्क छोड़ने की योजना बना रहे थे। अशरफ गनी इस समय काबुल में हैं लेकिन उन्हें लेकर कई सवाल उठे, मसलन की वो भगोड़ा निकले, अफगानिस्तानी खजाने का हिस्सा लेकर वो भाग निकले। ये बात अलग है कि उन्होंने सफाई दी है कि आखिर वो कौन सी वजह थी कि एकाएक काबुल छोड़ना पड़ा। वो कहते हैं कि काबुल छोड़ने का फैसला नियोजित नहीं था बल्कि उन्हें अहसास हुआ का तालिबान उनका हश्र नजीबुल्लाह की तरह कर सकते हैं। तो यहां हम बताएंगे कि नजीबुल्लाह कौन थे।

कौन थे नजीबुल्लाह, और क्या हुआ था
नजीबुल्लाह 90 के दशक में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति थे। उन्हें सोवियत संघ का समर्थन था। वैसे तो अफगानिस्तान से अमेरिका का सीधा लेना देना नहीं था। लेकिन सोवियत संघ और उसकी समर्थित सरकार से अमेरिका खुश नहीं था। अमेरिकी किसी भी कीमत पर सोवियत संघ को अफगानी धरती से हटाना चाहता था और उसके लिए उसने तालिबान को मदद करना शुरू कर दिया। अफगानिस्तान में तालिबान के मजबूत होने के बाद सोवियत संघ की मुश्किल बढ़ी और एक समय के बाद सोवियत सेना वापस लौट गई और नजीबुल्लाह को मिलने वाला रूसी समर्थन कमजोर पड़ा और उसका फायदा उठाते हुए तालिबानियों ने नजीबुल्लाह को 1996 में  फांसी के फंदे पर लटका दिया। 

  1. 1987 में सोवियत संघ की मदद से नजीबुल्लाह अफगानिस्तान के राष्ट्रपति बने
  2. नए सिरे से संविधान लिखवाया और नाम बदल कर रिपबल्कि ऑफ पाकिस्तान किया
  3. दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के बिखराव के बाद मदद मिलनी बंद हुई।
  4. अफगानिस्तान में तालिबान अब शक्तिशाली हो चुका था
  5. नजीबुल्लाह पर दबाव बढ़ने लगा और जान बचाने के लिए एक कंपाउंड में छिपे रहे।
  6. तालिबान ने 1996 में काबुल पर कब्जा किया, नजीबुल्लाह को मारकर बिजली के खंभे पर लटका दिया   

इस तरह हालात बदले
1996 का वो साल था जब तालिबान ने नजीबुल्लाह को फांसी दी और ऐलान किया कि अब उन्हें विदेशी दास्तां से आजादी मिली। तालिबानियों ने 1996 से लेकर 2001 तक शासन किया। लेकिन उस दौरान हालात बदले। खासतौर से 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को निशाना बनाया गया तो अमेरिका को जानकारी मिली कि तालिबान ने अलकायदा की मदद की थी और उसके बाद अमेरिकियों ने तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। अमेरिका में सत्ता बदल चुकी थी और हामिद करजई को कमान मिली। जानकार कहते हैं कि ये बात सच है कि अफगानिस्तान में करजई का शासन था लेकिन तालिबानियों को यकीन था कि सत्ता की कुंजी अमेरिका के हाथ में है। 

क्यों डर गए अशरफ गनी
सवाल यह है कि अशरफ गनी को डरने की जरूरत क्या है। दरअसल अशरफ गनी अफगानी भले ही हों सोच के स्तर पर वो पश्चिमी देशों के करीब रहे हैं। अमेरिका में वो लंबे समय तक अध्ययन और उससे जुड़े दूसरे कार्यों में व्यस्त रहे। अब उन्हें अफगानिस्तान की कमान मिली तो तालिबानी धड़ों ने यह समझा कि अशरफ गनी भी दूसरे नजीबुल्लाह हैं, लिहाजा जब काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया तो उन्हें लगा कि अब उन्हें देश छोड़ देना चाहिए। 

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