काठमांडो/नई दिल्ली : नेपाल ने संविधान में संशोधन करके बृहस्पतिवार को देश के नए राजनीतिक नक्शे को बदलने की प्रक्रिया पूरी कर ली जिसमें रणनीतिक महत्व वाले तीन भारतीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है। नेपाल का यह कदम भारत के साथ उसके द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर सकता है। भारत ने नेपाल के मानचित्र में बदलाव करने और भारतीय क्षेत्रों लिपुलेख, कालापानी तथा लिंपियाधुरा को उसमें शामिल करने से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक को नेपाली संसद के निचले सदन में पारित किए जाने पर शनिवार को प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि यह ‘अमान्य’है और क्षेत्रीय दावों का ‘कृत्रिम विस्तार’ है।
दोनों सदनों से पारित हुआ विधेयक
नेपाल की संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित दूसरे संविधान संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने भी बृहस्पतिवार को मुहर लगा दी। राष्ट्रपति भंडारी के कार्यालय द्वारा जारी बयान के अनुसार उन्होंने बृहस्पतिवार शाम को विधेयक पर संवैधानिक प्रावधान के अनुसार मुहर लगा दी। नई दिल्ली में नेपाल के घटनाक्रम के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत इस मामले में पहले ही अपना रुख स्पष्ट कर चुका है।
भारत ने इन नक्शे को अमान्य बताया है
श्रीवास्तव ने शनिवार को नेपाल की संसद के निचले सदन द्वारा विधेयक पारित किये जाने के बारें में पूछे गये सवालों के उत्तर में कहा था, ‘दावों का कृत्रिम रूप से विस्तार, साक्ष्य और ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है और यह मान्य नहीं है। यह लंबित सीमा मुद्दों का बातचीत के जरिये समाधान निकालने के संबंध में बनी हमारी आपसी सहमति का भी उल्लंघन है।’
नक्शा दावों का कृत्रिम विस्तार
भारत ने नवंबर 2019 में एक नया नक्शा जारी किया था, जिसके करीब छह महीने बाद नेपाल ने पिछले महीने देश का संशोधित राजनीतिक और प्रशासनिक नक्शा जारी कर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इन इलाकों पर अपना दावा बताया था। विदेश मंत्रालय ने पिछले महीने कहा था कि क्षेत्रीय दावों का इस तरह कृत्रिम विस्तार भारत स्वीकार नहीं करेगा। इससे पहले आज दिन में नेपाली संसद के उच्च सदन यानी नेशनल असेम्बली ने संविधान संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया। इसके बाद नेपाल के राष्ट्रीय प्रतीक में नए नक्शे को शामिल करने का रास्ता साफ हो गया है।
उच्च सदन में रविवार को पेश हुआ विधेयक
नेपाली संसद के उच्च सदन में संविधान संशोधन विधेयक रविवार को पेश किया गया था। इससे एक दिन पहले निचले सदन से इसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया था। ऊपरी सदन में मौजूद सभी 57 मौजूद सदस्यों ने विधेयक के समर्थन में मतदान किया। नेशनल असेम्बली के सभापति गणेश तिमिलसिना ने बताया कि सभी 57 सदस्यों ने विधेयक के समर्थन में मतदान किया। उन्होंने कहा, ‘विधेयक के खिलाफ कोई मत नहीं पड़ा और किसी भी सदस्य ने तटस्थ श्रेणी के लिए मतदान नहीं किया।’’
ओली ने कहा-यह ऐतिहासिक उपलब्धि
कैबिनेट ने 18 मई को नए राजनीतिक नक्शे का अनुमोदन किया था। सांसदों की चिंताओं पर नेशनल असेंबली में उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने कहा कि संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी नेपाल के भूभाग पर दावों की दिशा में मील का पत्थर है। ओली के हवाले से काठमांडू पोस्ट अखबार ने लिखा, ‘संसद के दोनों सदनों ने विधेयक का समर्थन करने में बेमिसाल एकजुटता प्रदर्शित की है। यह नेपाल के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है।’
नेपाल ने सुगौली संधि का दिया हवाला
सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेशनल असेंबली में संसदीय दल के नेता दीनानाथ शर्मा ने कहा कि भारत को तत्काल ‘कालापानी समेत उसके कब्जे वाले नेपाल के क्षेत्रों को वापस करना चाहिए’। उन्होंने कहा, ‘नेपाल की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के पक्ष में इस विशेष समय में देश की जनता एक बार फिर मिलकर खड़ी है।’ नेशनल असेंबली में मुख्य विपक्षी नेपाली कांग्रेस के संसदीय दल के नेता राधेश्याम अशिकारी ने कहा कि कालापानी और लिपुलेख 1816 में नेपाल तथा ब्रिटिश कालीन भारत सरकार के बीच हुई सुगौली संधि के अनुसार नेपाल के हिस्से हैं।
आठ मई के बाद शुरू हुआ तनाव का दौर
भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में उस वक्त तनाव पैदा हो गया था, जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आठ मई को उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे को धारचुला से जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था। नेपाल ने इस सड़क के उद्घाटन पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया था कि यह सड़क नेपाली क्षेत्र से होकर गुजरती है। भारत ने नेपाल के दावों को खारिज करते हुए दोहराया था कि यह सड़क पूरी तरह उसके भू-भाग में स्थित है।