वाशिंगटन : अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ के बाद अब संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत रह चुकीं निक्की हेली ने चीन में उइगर मुसलमानों के खिलाफ ज्यादती का मसला उठाया है। उन्होंने इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र की चुप्पी को लेकर भी सवाल किए और कहा कि यह स्थिति अगर चीन के बजाय किसी अन्य देश में होती तो दुनिया उसके खिलाफ खड़ी हो जाती। उन्होंने इस संबंध में इजरायल-फिलीस्तीन विवाद का भी जिक्र किया और कहा कि फिलीस्तीन को लेकर जहां इजरायल को बार-बार दोषी ठहराया जाता है, वहीं चीन को लेकर सब चुप हैं। आखिर कहां है संयुक्त राष्ट्र?
हेली का यह बयान अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार अधिवक्ता आर्सेन ओस्त्रोव्स्की के एक ट्वीट के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने एक वीडियो शेयर करते हुए बताया है कि चीन में उइगर मुसलमानों पर किस तरह जुल्म ढाया जाता है। इसमें लोगों को आंखों पर पट्टी बांधकर जबरन ट्रेनों में ले जाते हुए दिखाया गया है। आर्सेन के मुताबिक, उन्हें 'यातना केंद्रों' में ले जाया जा रहा है, जिन्हें चीन 'पुनर्शिक्षा कैम्प' कहता है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, 'कहां है गुस्सा? कहां है नाराजगी?'
इस बीच चीन में उइगर और अन्य मुस्लिम समुदायों ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों से चीन पर दबाव बनाने और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नरसंहार के कृत्यों की जांच करने के लिए कहा है। 'पूर्वी तुर्किस्तान में नरसंहार' शीर्षक से एक रिपोर्ट में चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा गया है कि कोरोना वायरस महामारी के बावजूद चीन की सरकार अपने राजनीतिक एवं आर्थिक हितों के लिए उइगर तुर्क और अन्य मुस्लिम समुदायों का उत्पीड़न जारी रखे हुए है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी उइगर मुसलमानों की संस्कृति को नष्ट करते हुए उन पर लगातार दबाव बना रही है और उन्हें प्रताड़ित कर रही है। चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों का उत्पीड़न को देखा जा रहा है, जो मानव अधिकारों का बड़ा उल्लंघन है। वर्ष 2014 के बाद से ही चीनी सरकार यहां उइगर मुसलमानों की पहचान व संस्कृति को खत्म करने में जुटी है। यहां तक कि उनकी जबरन नसबंदी भी की जा रही है, जबकि उनके रोजमर्रे के जीवन को नियंत्रित करने के लिए करीब 11 लाख हान चीनी कैडर्स को पूर्वी तुर्किस्तान भेजा गया है। इतना ही नहीं, चीनी शासन पूर्वी तुर्किस्तान से लोगों को जबरन मजदूरी के लिए चीन भेज रहे हैं। यह कुछ उसी तरह का है, जैसा कि नाजियों ने कभी यहूदियों के साथ किया था। तब उन्हें फैक्ट्रियों में जबरन काम के लिए भेजा गया था।