अमेरिका ने अफगानिस्तान को 31 अगस्त से एक दिन पहले यानी 30 अगस्त को अफगान की धरती को छोड़ दिया। इसके साथ ही अपने दूतावास को कतर के दोहा से चलाने का फैसला किया है। काबुल एयरपोर्ट से जब अमेरिका के आखिरी विमान ने उड़ान भरी तो तालिबानियों ने हवा में गोलियां दागी और आतिशबाजी की।
अमेरिका की हार, आक्रमणकारियों को सबक
तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका की हार आक्रांताओं के लिए सीख है। यह जीत हम सबकी जीत है, इसके साथ यह भी कहा कि वो अमेरिका के साथ बेहतर राजनयिक रिश्ते रखना चाहते हैं। तालिबान का कहना है कि उसके बारे में जो दुष्प्रचार किया जा रहा है या किया गया है उसका जवाब वो देगा। एक बार फिर वो दोहराना चाहते हैं कि दुनिया के सभी मुल्कों के साथ बेहतर संबंध रखना चाहते हैं। अफगानिस्तान को वो इस्लामिक कानून के तहत चलाएंगे।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान भी फूंक फूंक कर कदम उठा रहा है। जैसा कि कुछ दिनों पहले तालिबान की तरफ से लोगों के हथियार जमा कराए गए। लेकिन जमीन पर कुछ इस तरह की तस्वीरें सामने आती हैं जिसके बाद दुनिया के मुल्क आसानी से उसकी बातों पर भरोसा नहीं कर पाते। ऐसे में यह देखना जरूरी होगा कि अब जब अमेरिका पूरी तरह से अफगानिस्तान से हट चुका है और इसके साथ ही अपनी एंबेसी चलाने का फैसला भी कतर के दोहा से चलाने का फैसला किया है उसके बाद तालिबान का रुख क्या रहता है।
भारत पर किस तरह होगा असर
जहां तक तालिबान और भारत का संबंध है तो तालिबान भरोसा दे रहा है कि उसकी तरफ से नुकसान पहुंचाने वाली कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन पाकिस्तान किस तरह से और किस हद तक तालिबान को प्रभावित करेगा यह देखने वाली बात होगी। विदेश मंत्री एस जयशंकर भी कह चुके हैं कि फिलहाल भारत सरकार की नीति वेट एंड वॉच की है।