प्योंगयांग : चीन के नजरबंदी शिविरों के बारे में पूरी दुनिया जानती है, जहां 2014 के बाद से अब तक कथित आतंकवाद विरोधी अभियान के तहत करीब 20 लाख उइगर मुसलमानों और अन्य जातीय अल्पसंख्यकों को हिरासत में रखे जाने की कई रिपोर्ट्स आ चुकी हैं। चीन जहां इन्हें रि-एजुकेशन कैंप कहता है, वहीं अमेरिका सहित कई अन्य देश इसे किसी 'यातना केंद्र' से कम नहीं बताते, जहां बंदियों के साथ क्रूर व्यवहार किया जाता है। यहां से निकले कई पूर्व कैदियों ने बताया है कि वहां उन्हें किस तरह की यातना झेलनी पड़ी। ऐसा ही कैंप उत्तर कोरिया में भी है, जिसके चीन के साथ गहरे रिश्ते हैं।
उत्तर कोरिया के इस कैंप को लेबर कैंप कहा जाता है। यहां उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर की आलोचना करने वालों को रखा जाता है। यहां ऐसे लोग भी रखे जाते हैं, जो उत्तर कोरिया के तनाशाही सिस्टम से परेशान होकर देश से निकलने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिलती और पकड़े जाते हैं। 'डेली स्टार' की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कोरिया के इस लेबर कैंप में कैदियों के साथ क्रूर बर्ताव किया जाता है। यहां न केवल उनके साथ नियमित तौर पर मारपीट की जाती है, बल्कि उन्हें कई दिनों तक भूखा भी रखा जाता है और तरह-तरह से यातनाएं दी जाती हैं। कई बार उन्हें बस यहां कुछ महीने रहने की सजा दी जाती है, लेकिन अक्सर ऐसा भी होता है, जब उनकी हिरासत अवधि वर्षों में तब्दील हो जाती है।
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कोरिया का यह लेबर कैंप दूर-दराज के क्षेत्र में स्थित है और यहां सजा के तौर पर भेजे गए लोगों मेहनत-मजदूरी करवाई जाती है। इन दिनों इस लेबर कैंप में ऐसे लोगों को भी रखा जाता है, जो कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए मास्क नहीं पहनते, जिसे सरकार ने अनिवार्य किया हुआ है। ऐसे लोगों को यहां तीन महीने तक मेहनत मजदूरी के लिए भेजने का आदेश दिया गया है, जो घर से बाहर निकलने पर मास्क पहने बगैर नजर आते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए राजधानी प्योंगयांग सहित कई प्रांतीय शहरों में भी छात्रों की गश्त टीम तैनात की गई है।