नई दिल्ली। 11 सितंबर 2001 को जब ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व वाले अलकायदा ने न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर और वाशिंगटन के पेंटागन पर हवाई जहाजों से आत्मघाती हमले किए थे। तो पूरी दुनिया उस वक्त के सबसे बड़े आतंकी हमले से दहल गई थी। हमले में करीब 3 हजार लोग मारे गए थे। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपित जार्ज बुश ने अलकायदा के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया था। और वहीं से अफगानिस्तान और तालिबान के बीच जंग की शुरूआत हुई थी। उस वक्त अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा था और वह ओसामा बिल लादेन को अमेरिका को सौंपने को तैयार नहीं थे।
आज से ठीक 19 साल 10 महीने 28 पहले (7 अक्टूबर 2001) अमेरिका ने तालिबान से युद्ध शुरू किया था। करीब एक महीने बाद नवंबर में अमेरिका ने काबुल पर कब्जा कर लिया था और स्थानीय नेता हामिद करजई के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन किया था। उस वक्त राष्ट्रपति बुश ने अफगानिस्तान के लिए मार्शल प्लान का ऐलान किया था। जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान का रिकंस्ट्रक्शन था। लेकिन 31 अगस्त 2021 को जब काबुल से अमेरिकी सौनिकों की आखिरी विमान उड़ा तो सत्ता फिर से तालिबानों के हाथ में है। काबुल में अफरा-तफरी का माहौल है। बेगुनाह लोग आतंकी हमले में मारे जा रहे हैं और एक बार फिर आतंकी तालिबान की सत्ता अफगानिस्तान पर काबिज हो चुकी है। सवाल उठता है कि इन 20 साल में उन 1,72,000 हजार लोगों का क्या कसूर था जो अफगानिस्तान के रिकंस्ट्रक्शन के नाम पर बेमौत मारे गए। और यह भी सवाल उठता है कि अमेरिका ने इन 20 साल में 2.3 लाख करोड़ डॉलर रुपये खर्च किए, वह भी क्या बर्बाद हो गए ?
20 साल में 2.38 लाख की मौत
अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के वाट्सन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 20 साल में अफगानिस्तान में युद्ध के दौरान 1.71 लाख से लेकर 1.74 लाख लोगों की मौत हुई है। और अगर इस युद्ध के पाकिस्तान को शामिल कर लिया जाया जो तो 67 हजार लोग और मौत के शिकार हुए है। जिसके आधार पर 2.38 लाख से लेकर 2.40 लाख लोग मौत के शिकार हुए हैं। गौर करने वाली बात है इस युद्ध में आम नागरिक और स्थानीय पुलिस और सेना के लोग सबसे ज्यादा शिकार हुए हैं।
अक्टूबर 2001 से अगस्त 2021 के बीच अफगानिस्तान में युद्ध के कारण हुई मौतें | |
अफगानिस्तान | मौतें |
अमेरिकी सैनिक | 2442 |
अमेरिकी रक्षा विभाग से जुड़े गैर सैनिक | 6 |
यूएस कांट्रैक्टर्स | 3846 |
अफगान मिलिट्री और पुलिस | 66000-69000 |
दूसरे देशों के सैनिक | 1,144 |
आम नागरिक | 47245 |
तालिबान और दूसरे विरोधी गुट | 51911 |
पत्रकार और मीडिया वर्कर्स | 72 |
एनजीओ | 44 |
कुल | 171366-174366 |
एक अमेरिकी पर 20 हजार डॉलर का बोझ
रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने 20 साल के दौरान 2.36 लाख करोड़ डॉलर खर्च किए हैं। इसमें 800 अरब डॉलर डायरेक्ट फंडिंग है और 83 अरब डॉलर अफगानी सेना को प्रशिक्षण पर खर्च किए गए हैं। लेकिन अब अफगानिस्तान सेना का कोई वजूद नहीं रह गया है। क्योंकि उसने तालिबान के सामाने आत्मसमर्पण कर दिया है। और तालिबान अपने अनुसार नई सेना का गठन करेंगे। इसी तरह अफगानी सेना के पास जो अमेरिकी हथियार थे , वह अब तालिबान के कब्जे में हैं। लेकिन अमेरिका के इस खर्च का अमेरिका और उसके नागरिकों पर बोझ पड़ने वाला है। रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक अफगान युद्ध की वजह से अमेरिका पर 6.5 लाख करोड़ डॉलर का कर्ज होगा। जो कि औसतन प्रत्येक नागरिक पर सालाना 20 हजार डॉलर का बोझ डालेगा।
तो क्या फेल हो गया अमेरिका
अफगानिस्तान में 20 साल बाद फिर तालिबान की सत्ता होने से क्या अमेरिका को फेल माना जाय तो इस पर मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान की रिसर्च फेलो स्मृति एस.पटनायक टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहती है कि "देखिए युद्द में एक ही चीज पक्की होती है कि लोगों की मौत होती है। और अमेरिका 20 साल से वहां पर था। सवाल यह है कि वह कब तक अमेरिकी सैनिकों की मौत बर्दाश्त करेगा। तो कहीं न कहीं उसे फैसला लेना था। जहां तक उसके आपरेशन की बात है तो उसने 2001 में तालिबानों का सत्ता से हटाया, ओसामा बिन लादेन को मारा और अलकायदा को कमजोर किया। लेकिन यह भी सच है कि तालिबान के पास जैसे सत्ता हस्तांतरण हुआ वह उसके लिए सबक है।"
अमेरिकी की नजर से देखा जाय तो अमेरिकी सेना ने इन 20 साल में अफगानिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास किया, महिलाओं को आजादी मिली। एक मध्यम वर्ग तैयार हुआ, इसके अलावा इराक में इस्लामिक स्टेट जैसे खतरनाक आतंकवादियों को नष्ट किया गया, सद्दाम हुसैन और लीबिया में कर्नल गद्दाफी जैसे तानाशाहों का राज भी खत्म हुआ
रूस ने गंवाए 15 हजार सैनिक, अब चीन पाकिस्तान का होगा असर
अमेरिका के पहले 1979 में रूस ने भी दोनों देशों के बीच चल रहे शीत-युद्ध के दौरान अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था और 10 साल वहां पर शासन चलाया लेकिन अमेरिका, पाकिस्तान और मुस्लिम देशों के सहयोग से मुजाहिदीन रूस के लिए बड़ी चुनौती बने रहे। 10 साल की इस लड़ाई रूस को अपने 15 हजार सैनिक गंवाने पड़े। अब 2021 में अमेरिका की वापसी के बाद ऐसा लग रहा है कि अफगानिस्तान पर चीन का प्रभाव बढ़ने वाला है। क्योंकि चीन और पाकिस्तान दो ऐसे देश रहे हैं जो अफगानिस्तान में तालिबानों का समर्थन कर रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि तालिबान किस तरह अफगानिस्तान पर शासन चलाएगा । फिलहाल तो अफगानिस्तान में न तो कई प्रशासन है और न ही कोई कानून-व्यवस्था की स्थिति है, सब तरफ अफरा-तफरी का माहौल है।