वाशिंगटन/इस्लामाबाद : अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान के काबिज होने के बाद से ही इसमें पाकिस्तान और चीन की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अमेरिका खास तौर पर इसे लेकर आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं, जहां एक वर्ग का मानना है कि तालिबान अकेले अपने दम पर इस तेजी के साथ अफगानिस्तान में अशरफ गनी की अगुवाई वाली सरकार को सत्ता से बेदखल कर काबुल पर कब्जा नहीं कर सकता था। तालिबान से पाकिस्तान के रिश्तों पर अमेरिकी सीनेट में एक बिल लाया गया है, जिससे पाकिस्तान की सियासत में भी खलबली मची हुई है।
अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन सीनेटर्स की ओर से लाए गए इस विधेयक में अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्जे में पाकिस्तान की भूमिका की समीक्षा करने की मांग की गई है। इसमें 2001 में तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता से बेदखल होने और फिर 2021 में वापसी के दौरान उसकी मदद को लेकर पाकिस्तान की सरकार और वहां के 'नॉन-स्टेट एक्टर्स' की भूमिका की समीक्षा पर जोर दिया गया है। इस विधेयक को 22 सीनेटर्स ने पेश किया है, जिस पर अमेरिकी कांग्रेस में चर्चा जारी है। यह विधेयक अगले तीन महीने में पारित भी हो सकता है।
विधेयक अगर अमेरिकी सीनेट से पारित होता है तो यह पहले ही चरमाई पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका होगा, जो आतंकवाद के वित्तपोषण के मामले में पहले ही कई तरह के प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने 2018 से ही इसे अपनी ग्रे सूची में डाल रखा है। ऐसे में विपक्ष इमरान खान की अगुवाई वाली सरकार के खिलाफ हमलावर तेवर अपनाए हुए है। उनका आरोप है कि सरकार इसकी गंभीरता को नहीं समझ रही है।
विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) की नेता शेरी रहमान के मुताबिक, यह पाकिस्तान विरोधी विधेयक है और अगर यह सीनेट से पास होता है तो पाकिस्तान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों का रास्ता तैयार हो सकता है। उनका कहना है कि इसे लेकर सरकार को कूटनीतिक स्तर पर सक्रिय होने की जरूरत है, लेकिन इसके उलट सरकार इस पर कोई चर्चा नहीं कर रही है। इसे लेकर संसद में किसी तरह की सक्रियता नहीं दिखती, जबकि इस संकट से सामूहिक तौर पर लड़ने की जरूरत है।
कुछ तरह की आशंका भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने भी जताई है, जिनका कहना है कि अगर यह विधेयक अमेरिकी सीनेट में पास हो जाता है तो पाकिस्तान के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बासित के अनुसार, पाकिस्तान के अमेरिका से संबंध लगातार खराब हो रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान को लेकर जो अंतरराष्ट्रीय छवि बनी है, उसे लेकर सरकार की ओर से कूटनीतिक स्तर पर कोई काम नहीं किया जा रहा है।
वहीं, हर बार की तरह इमरान सरकार एक बार फिर अपनी सारी नाकामियों का ठीकरा भारत पर फोड़ती नजर आई। विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के मुताबिक, भारत और अन्य ताकतें पाकिस्तान को अस्थिर करना चाहती हैं। वे अफगानिस्तान को लेकर पूरी जवाबदेही पाकिस्तान पर थोपना चाहती हैं।
इन सबके बीच अमेरिका ने पाकिस्तान के संदर्भ में एक बार फिर कहा कि अफगानिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में आतंकी ठिकानों को लेकर उसकी चिंता लंबे समय से बनी हुई है। पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन कीर्बि ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अफगानिस्तान के पड़ोसी के रूप में आतंकवाद के संबंध में निश्तिच रूप से पाकिस्तान की जवाबदेही है। उन्होंने इस संबंध में पाकिस्तानी नेताओं से बातचीत और उन्हें अपनी चिंताओं से अवगत कराए जाने की बात भी कही।