अमेरिकी में 25 मई को अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मौत ने दुनिया भर में नस्लभेद की नई बहस छेड़ दी। जॉर्ज की मौत से अमेरिका के 40 से ज्यादा शहरों में हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए। कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन उपद्रव एवं लूटपाट में तब्दील हुआ। प्रदर्शन की आंच ह्वाइट हाउस तक भी पहुंची। आगजनी, हिंसा और लूटपाट की बढ़ते मामलों को देखकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सड़कों पर सेना उतारने की बात कहनी पड़ी। हालांकि, उनके बयान का विरोध भी हुआ।
जॉर्ज की मौत के 10 दिन से ज्यादा का समय बीत गया है लेकिन अमेरिका में विरोध-प्रदर्शन का दौर अभी थमा नहीं है। अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इंग्लैंड सहित कई देशों में जॉर्ज के समर्थन में रैलियां एवं प्रदर्शन हुए हैं। अमेरिका की इस घटना के बाद जातीय एवं नस्लीय भेद की बहस एक बार फिर शुरू हो गई है। अमेरिका में नए पुलिस सुधार की मांग जोर पकड़ रही है। अमेरिका में नस्लभेद सदियों पुराना है। यहां श्वेत और अश्वेत की गहरी खाई रही है। यहां लंबे संघर्ष के बाद अश्वेतों को उनके वाजिब अधिकार मिले।
लंबे संघर्ष एवं आंदोलनों के बाद इन लोगों को सैद्धांतिक रूप से समानता के अधिकार तो मिल गए लेकन नस्लीय भेद की मानसिकता पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाई। अमेरिका में समय-समय पर इस तरह की घटनाएं होती आई हैं जो वहां के जातीय भेद को उजागर करती हैं। जॉर्ज की मौत को उसी मानसिकता के साथ जोड़कर देखा जा रहा है।
पुलिस पर नस्लभेद का आरोप
अमेरिका में पुलिस पर आरोप लगते हैं कि वह सबसे ज्यादा नस्लभेद करती है। पुलिस पर अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों को निशाना बनाने के आरोप लगते रहे हैं। आंकड़ों पर अगर गौर करें तो साल 2019 में पुलिस की गोलीबारी में करीब 1000 लोगों को नुकसान पहुंचा जिनमें 23 प्रतिशत पीड़ित अश्वेत थे। अमेरिका में 14 प्रतिशत से कम इनकी आबादी को देखते हुए यह प्रतिशत कहीं ज्यादा है। नॉरविच यूनिवर्सिटी के जस्टिस एवं सोशियालोजी स्टडीज के सहायक प्रोफेसर कॉनि हैसेट वॉकर का मानना है कि अमेरिकी पुलिसिंग में नस्लवाद के बीज जो सदियों पहले बोए गए थे वे आज और प्रखर होकर उभरे हैं। अमेरिकी इतिहास में गुलामी की परंपरा 250 साल पुरानी है। अश्वेत नागरिकों के उत्पीड़न को बढ़ाने के लिए जिम क्रो कानून को भी बहुत हद तक उत्तरदायी माना जाता है।
अश्वेतों के साथ उत्पीड़न की कई घटनाएं
बहुतों का मानना था कि साल 2008 में अश्वेत बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद स्थितियां बदलेंगी और नस्लभेद भावना कमजोर होगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अश्वेत समुदाय के साथ अत्याचार एवं उत्पीड़न की घटनाएं पहले की तरह जारी रहीं। अमेरिका में ऐसी कई घटनाएं हैं जिनके बारे में माना जाता है कि उन मामलों अश्वेत लोगों को गलत सजा हुई। ट्रॉय डेविस की सजा मामले में लोगों की ऐसी ही धाराण है कि अश्वेत डेविस को एक पुलिस अधिकारी की हत्या में गलत तरीके से फंसाया गया। सेंट्रल पार्क की घटना भी काफी चर्चित हुई। 1989 के इस मामले में पांच किशोर लड़कों (चार अश्वेत, एक लैटिन) पर एक जॉगर को गंभीर रूप से हमला और उसका रेप करने का आरोप लगा। इन पांचों लड़कों पर से 10 साल के बाद रेप एवं हत्या के आरोप हटे और उन्हें दोषमुक्त करार दिया गया।
नस्लीय हिंसा पर बहसों ने जोर पकड़ा
पिछले कुछ दशकों में अमेरिका में अश्वेत नागरिकों के साथ ऐसी कई तरह की घटनाएं हुई हैं जिसमें जातीय भेद की भावना साफ तौर से झलकी है। फरवरी 2012 में फ्लोरिडा में 17 साल के ट्रायवोन मार्टिन की गोली मारकर हत्या की गई। मार्टिन की मौत ने नस्लीय हमले के खिलाफ एक जोरदार बहस को जन्म दिया। अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ हुई हिंसा एवं उत्पीड़न की घटनाओं के बाद पुलिस सुधारों पर जोर दिया गया। उन्हें मुख्य धारा से जोड़े रखने के लिए कई तरह के सामाजिक कार्यक्रमों की शुरुआत हुई लेकिन इस नस्लीय सोच का खात्मा पूरी तरह से नहीं हो सका। जार्ज फ्लायड की पुलिस हिरासत में मौत इसी बात का इशारा करती है कि अमेरिका में नस्ली सोच की जड़ें काफी गहरी हैं जिसे खत्म करने के लिए वहां के समाज एवं सरकार को गंभीर प्रयास करने होंगे।