काबुल : वह 11 सितंबर, 2001 की सुबह थी, जब अमेरिका पर हुए आतंकी हमलों ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। आज उसी 9/11 आतंकी हमले की बरसी मनाई जा रही है और पूरी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता के संकल्प दोहरा रही है। इन सबके बीच दुनिया की चिंता अफगानिस्तान के हालात को लेकर भी है, जहां तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया हुआ है। दुनिया 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान में तालिबान राज को देख चुकी है और इसलिए एक बार फिर अफगानिस्तान की सत्ता में जब तालिबान काबिज हुआ है तो कई मुल्क इसे लेकर चौकस बने हुए हैं।
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान ने 15 अगस्त को कब्जा किया था और 31 अगस्त को अमेरिकी सैनिकों की यहां से पूरी तरह वापसी हो चुकी है। इन 15 दिनों में दुनिया ने अफगानिस्तान छोड़कर जाने वालों की काबुल एयरपोर्ट पर जमा भीड़ और वहां अफरातफरी को भी देखा, जो एक बड़े मानवीय संकट को बयां करती है। इस बीच अफगानिस्तान से कई ऐसी रिपोर्ट आई, जो तालिबान के 1990 के दशक के शासनकाल के खौफनाक मंजर की याद दिलाता है। पत्रकारों की पिटाई, पूर्व अधिकारियों की बर्बरता से हत्या, महिलाओं पर प्रतिबंध जैसे तालिबान के कई कदमों ने उसके रुख को साफ कर दिया है।
तालिबान के उस कदम ने दुनिया में तब सबसे अधिक चिंता बढ़ाई, जब उसने सरकार के गठन का ऐलान किया। इसमें ज्यादातर चेहरे 1990 के दशक वाले कट्टरपंथी सदस्यों के हैं तो कई ऐसे चेहरे भी शामिल हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में रखा है। सर्वाधिक विवाद 33 सदस्यीय मंत्रिमंडल में गृह मंत्री के रूप में सिराजुद्दीन हक्कानी को लेकर है, जिसे अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (FBI) ने 'मोस्ट वांटेड' आतंकियों की सूची में रखा है। ऐसे में आतंकवाद पर तालिबान के रुख को लेकर दुनिया की चिंता स्वाभाविक ही है।
तालिबान ने हालांकि बार-बार कहा है कि मौजूदा तालिबान शासन 1990 के दशक से अलग होगा, लेकिन अब तक के उसके रवैये से ऐसा कुछ भी प्रतीत नहीं होता। तालिबान ने न सिर्फ संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में शामिल लोगों को अपनी अंतरिम सरकार का हिस्सा बनाया है, बल्कि उसने उसी दिन सरकार के शपथ-ग्रहण की योजना भी बनाई, जब दुनिया 9/11 की बरसी मना रही है। तालिबान का यह फैसला इसलिए भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि 9/11 आतंकी हमलों की साजिश रचने वाले आतंकी संगठन अलकायदा से उसके करीबी रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं।
अब अपुष्ट रिपोर्ट्स के हवाले से कहा जा रहा है कि तालिबान ने 11 सितंबर, 2021 को अपनी सरकार का शपथ-ग्रहण समारोह टाल दिया है, क्योंकि दुनिया के कई देशों ने इसका विरोध किया और उन देशों ने भी काबुल में इसके लिए आयोजित होने वाले शपथ-ग्रहण समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया, जो अफगानिस्तान की मौजूदा वास्तविकता को स्वीकार करते हुए एक हद तक उसे समर्थन देने को तैयार हैं।
तालिबान ने रूस, ईरान, चीन, कतर, पाकिस्तान को अपनी सरकार के शपथ-ग्रहण समारोह के लिए काबुल आमंत्रित किया था, लेकिन रूस ने स्पष्ट कर दिया कि अगर यह समारोह 9/11 की बरसी पर होता है तो वह इसमें शामिल नहीं होगा। रूसी समाचार एजेंसी 'तास' के मुताबिक, रूस ने कतर से यह बात कही, जो पश्चिमी देशों और अफगानिस्तान की नई तालिबान सरकार के बीच मध्यस्थ की तरह काम कर रहा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका और नाटो के देश कतर सरकार पर इसके लिए दबाव बना रहे थे कि वह तालिबान को इसके लिए राजी करे कि वह अपनी सरकार का शपथ-ग्रहण समारोह 11 सितंबर को आयोजित न करे, क्योंकि यह 'अमानवीय' होगा और आगे उसके इस कदम से अफगानिस्तान में तालिबान को वैश्विक मान्यता मिलने की संभावनाएं खत्म हो सकती हैं, जबकि तालिबान इसके लिए हर संभव कोशिश कर रहा है।
बहरहाल, तालिबान ने अगर दबाव में आकर अपनी सरकार का 11 सितंबर को प्रस्ताविक शपथ-ग्रहण समारोह रद्द कर दिया है, तब भी यह उसकी सोच और आतंकवाद पर उसके रवैये को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। खास तौर पर ऐसे में जबकि ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी MI5 के प्रमुख ने चेताया है कि अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान के काबिज होने के बाद पूरी दुनिया, खास तौर पर पश्चिमी देशों में 9/11 जैसे आतंकी हमलों का जोखिम बढ़ सकता है।