तालिबान ने जिस तरह दावा किया है कि अफगानिस्तान के 85 फीसद हिस्सों पर उसका कब्जा हो चुका है उसके बाद भारत की चिंता बढ़ गई है। भारत की चिंता इसलिए अहम है कि अफगानिस्तान के पुनर्विकास में भारतीय कंपनियां वहां काम कर रही है और अगर तालिबान का प्रभाव बढ़ेगा तो ना सिर्फ काम करना मुश्किल होगा बल्कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के बढ़ने का भी खतरा होगा। इस संबंध में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस से चिंता जताई।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस से किया जिक्र
मास्को में अपने समकक्ष सर्जेई लावरोव से कहा कि इस समय जो सरकार अफगानिस्तान में शासन कर रही है उसके वैधानिक अधिकारी की रक्षा करना सुनिश्चित करना होगा।मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक अफगानिस्तान के हाई काउंसिल ऑफ नेशनल रिकंसीलेशन के चेयरमैन अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने भारत की पिछले हफ्ते यात्रा की थी। अब्दुल्ला अब्दुल्ला वो शख्स हैं कि जिन्हें तालिबान के साथ शांति समझौते की जिम्मेदारी दी गई है। वैसे तो उनकी यात्रा को व्यक्तिगत थी। लेकिन जिस तरह से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में हालात बने हुए उसके बाद उनकी यात्रा सामान्य नहीं थी।
107 तालिबानी आतंकियों के मारे जाने की खबर
अफगानिस्तान के दो प्रांतों में भीषण लड़ाई और संघर्ष के दौरान कम से कम 109 तालिबान आतंकवादी मारे गए और 25 अन्य घायल हो गए।सेना की 205वीं अटल कोर्प्स ने एक बयान में कहा, "कंधार प्रांत में, अफगान वायु सेना (एएएफ) द्वारा समर्थित अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों (एएनडीएसएफ) द्वारा कंधार शहर के पुलिस डिस्ट्रिक्ट 7 और पड़ोसी उपनगरीय डांड शहर में एक अभियान के दौरान 70 तालिबान आतंकवादी मारे गए और आठ अन्य घायल हो गए।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले शुक्रवार को तालिबान ने एएनडीएसएफ के ठिकानों पर हमला किया और कंधार शहर में घुसपैठ करने की कोशिश की, जिसके बाद दिन भर भारी लड़ाई हुई।सेना की 215वीं माईवंड कोर के अनुसार, हेलमंद प्रांत में, एएएफ द्वारा समर्थित एएनडीएसएफ ने प्रांतीय राजधानी लश्कर गाह के बाहरी इलाके काला-ए-बुलन में एक आतंकवादी समूह को निशाना बनाया, जिसमें 39 तालिबान आतंकवादी मारे गए और 17 घायल हो गए।अमेरिका और नाटो सैनिक देश छोड़ रहे हैं, दूसरी तरफ देश में हिंसा बढ़ रही है।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि एक सामान्य सी परिभाषा है कि आप तभी विकास कर सकते हैं जब आपके पड़ोसी मुल्कों में शांति हो। अगर बात भारत की करें तो जिस तरह से जम्मू-कश्मीर में भाड़े के आतंकी पहले सक्रिय थे उस दिशा में तालिबान के बढ़ते प्रभाव का असर पड़ सकता है। जिस तरह से लश्कर जैश के संबंध तालिबान से हैं उसकी वजह से आतंकी गतिविधियों में इजाफा हो सकता है। इसके साथ साथ अफगानिस्तान के पुनर्निमाण में लगी भारतीय एजेंसियों के लिए भी खतरा है, ऐसे में तालिबान पर नकेल कसे रहना भारत के लिए जरूरी है।