नई दिल्ली : अफगानिस्तान (Afghanistan) में एक बार फिर तालिबान (Taliban) का नियंत्रण हो चुका है। अब यहां इसकी सरकार होगी। इस देश पर जिस तरह से तालिबान (Taliban) का कब्जा हुआ है, उसने सभी को चौंका दिया है। रिपोर्टों में अमेरिका खुफिया अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि राजधानी काबुल पर अगले 90 दिनों में तालिबान का कब्जा हो जाएगा लेकिन इस रिपोर्ट के कुछ ही दिनों के बाद तालिबान ने राजधानी काबुल पर अपना नियंत्रण कर लिया।
तालिबान ने संघर्ष की तैयारी काफी पहले शुरू कर दी थी
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक तालिबान लड़ाकों का कहना है कि उन्होंने संघर्ष की तैयारी काफी समय पहले शुरू की। उन्होंने देश की छोटी राजनीतिक पार्टियों एवं सैन्य अधिकारियों के साथ अपने रिश्ते बनाए। कबायली बुजुर्गों को भी अपने भरोसे में लिया। बता दें कि तालिबान इसके पहले अफगानिस्तान पर साल 1996 से 2001 तक शासन कर चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी और नाटो सेनाओं की वापसी की घोषणा के बाद पश्चिमी देशों की ओर से समर्थित प्रशासन का आत्मविश्वास टूट चुका था और अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से भागने लगे।
तालिबान इस बार लड़ाई करना नहीं चाहते थे-एक्सपर्ट
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े दक्षिण एशिया के सुरक्षा विश्लेषक असफनदयार मीर ने कहा, 'तालिबान लड़ाई नहीं लड़ना चाहते थे। दरअसल, वे चाहते थे कि देश की राजनीतिक प्रक्रिया चरमरा जाए।' मीर का कहना है कि जिस तरह से शहर और कस्बे तालिबान के नियंत्रण में आए, यह उनको भी हैरान किया। देश के उत्तरी क्षेत्र जहां तालिबान कमजोर माना जाता है, वह इलाका भी आसानी से उनके नियंत्रण में आ गया।
'पश्चिमी देशों की वापसी की घोषणा ने मनोबल तोड़ दिया'
उन्होंने कहा, 'अफगानिस्तान के नेताओं ने समर्पण इसलिए नहीं किया कि उनकी सोच बदल गई है अथवा वे पवित्र हो गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अब उन तक डॉलर्स नहीं पहुंचेंगे।' मीर ने दो दशकों तक पश्चिमी देशों से अफगानिस्तान को मिलने वाले सैन्य एवं वित्तीय सहायता का जिक्र किया। मीर ने कहा, 'उन्होंने भेड़-बकरियों की तरह सरेंडर कर दिया।'
राष्ट्रपति अशरफ घनी देश छोड़कर चले गए हैं और उनके प्रशासन के ज्यादातर सदस्य भी छिप गए हैं। इनसे संपर्क नहीं हो पाया है। घनी के रक्षा मंत्री ने भी राष्ट्रपति की आलोचना की।