वाशिंगटन : अफगानिस्तान में शांति बहाली को लेकर अमेरिका और तालिबान के बीच बीते सप्ताह बड़ा समझौता हुआ, जिसमें इस बात पर सहमति बनी कि अमेरिका अगले 14 महीनों में अफगानिस्तान से अपनी सेना बुला लेगा। इसे अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया की दिशा में पहला कदम बताया जा रहा है। अफगानिस्तान में शांति व मेल-मिलाप की कोशिशों का भारत ने भी समर्थन किया है, पर साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि यहां स्थायी शांति तभी संभव है, जब बाहर से प्रायोजित आतंकवाद का पूरी तरह खात्मा हो।
'पाकिस्तान उठाए कदम'
भारत का इशारा साफ तौर पर पाकिस्तान की ओर से अफगानिस्तान में पैदा होने वाले आतंकी खतरों को लेकर था, जिस पर अफगान नेतृत्व भी चिंता जता चुका है। अब भारत के इस रुख का समर्थन अमेरिका ने भी किया है, जिसका कहना है कि अफगानिस्तान क्या, पूरे दक्षिण एशिया में शांति व स्थिरता तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित न करे कि उसकी धरती से आतंकी गतिवधियां संचालित नहीं होंगी।
'भारत महत्वपूर्ण साझीदार'
अफगानिस्तान में शांति के लिए तालिबान के साथ समझौते के बाद अमेरिका के इस बयान को काफी अहम माना जा रहा है, जिसमें उसने भारत के साथ अपने संबंधों को भी महत्वपूर्ण करार दिया और कहा कि अफगानिस्तान में भारत पिछले 20 वर्षों से अमेरिका का महत्वपूर्ण साझीदार रहा है। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मॉर्गन ऑर्टगस ने कहा, 'अफगानिस्तान में शांति बहाली व स्थिरता के लिए भारत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है और वे इसे लेकर प्रतिबद्ध रहे हैं।' इस क्रम में उन्होंने अफगानिस्तान में नए संसद भवन के निर्माण में भारत की मदद का भी जिक्र किया।
अमेरिका ने पाकिस्तान को घेरा
वहीं, पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर घेरते हुए मॉर्गन ने कहा, 'अफगानिस्तान और पूरे दक्षिण एशिया में शांति तब तक स्थापित नहीं हो सकती, जब तक कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित न करे कि उसकी धरती से या अफगानिस्तान से आतंकी गतिविधियां संचालित नहीं होंगी।' उनकी यह टिप्पणी तालिबान के साथ अफगानिस्तान में शांति व स्थिरता के हुए समझौते को लेकर एक संवाददाता के यह पूछे जाने पर आई कि क्या अमेरिका ने पाकिस्तान से आतंकवाद पर रोक लगाने के लिए कहा है?
'पाकिस्तान से जटिल हैं संंबंध'
उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के साथ अमेरिका के विगत कुछ संबंध बेहद जटिल रहे हैं और आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं किए जाने से नाराज होकर ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने सत्ता में आने के बाद के शुरुआती वर्षों में ही दी जाने वाली सैन्य सहायता पर रोक लगा दी थी।