नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान के खूनी खेल की कड़ी निंदा हो रही है लेकिन चीनी ड्रैगन और उसका आयरन ब्रदर पाकिस्तान तालिबानी शासन को मान्यता देने के लिए तैयार हैं। ऐसे करने से चीन और पाकिस्तान का क्या फायदा होगा, यहीं हम आपको इस रिपोर्ट में बता रहे हैं। चीन के इस दांव से अमेरिका के बाइडन प्रशासन को तगड़ा झटका लग सकता है जो तालिबानी हिंसा के जवाब में उसके खिलाफ बेहद कड़े प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। हालांकि चीन सार्वजनिक रूप से तालिबान पर शांति समझौते के लिए 'दबाव' बनाए हुए है।
चीन का अपना स्वार्थ
अमेरिकी खुफिया सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि चीन गनी सरकार और तालिबान के बीच समझौता चाहता है। लेकिन चीन के नए सैन्य और खुफिया आकलन के बाद कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अब अफगानिस्तान की जमीनी हकीकत को देखते हुए तालिबान के साथ औपचारिक रिश्ते शुरू करने को तैयार हो गए हैं। चीन ने ये पाला ऐसे समय पर बदला है जब तालिबान ने खूनी हमले करते हुए काबुल सहित पूरे देश पर कब्जा कर लिया है। अब तालिबान आतंकी देश की राजधानी काबुल स्थित राष्ट्रपति भवन को भी अपने कब्जे में ले चुके हैं। तालिबान के कब्जे में अब अफगानिस्तान से लगती चीन की सीमा भी है। चीनी दांव से अब अमेरिका की तालिबान पर कतर में दबाव डालने की रणनीति भी फेल साबित हो रही है।
अमेरिका ने कही ये बात
व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा है कि, अगर तालिबान चाहता है कि उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिले तो उनके इन कदमों से उसे मान्यता नहीं मिलने जा रही है। उन्हें यही ऊर्जा शांति प्रक्रिया में लगानी चाहिए जैसाकि वे सैन्य अभियान में लगा रहे हैं। हम तालिबान से कड़ाई से अनुरोध करते हैं कि वे ऐसा करें। चीन ने पहले ही तालिबान के साथ समझौता कर रखा है कि वे उइगर विद्रोहियों को अपनी सीमा में जगह नहीं देंगे।
इसलिए ऐसा कर रहा है चीन
चीन ऐसा क्यों कर रहा है अब वो समझिए। अफगानिस्तान में अगर स्थिरता आती है तो चीन वहां के एक ट्रिल्यन डॉलर से ज्यादा के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करेगा। अमेरिका की हालिया खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की अफगानिस्तान के आर्थिक संसाधनों में दिलचस्पी काफी बढ़ गई है। इसी वजह से वो अफगान सीमा तक अपनी रोड के निर्माण को तेज करना चाहता है। चीन की नजर अफगान खदानों पर है जहां पर सोना, तांबा और कई कीमती मेटल्स छुपे हुए हैं।