आगरा। आगरा की रोटी वाली अम्मा के सामने कई तरह की परेशानी है कोरोना की वजह से उनकी दुकान पर कोई नहीं आता है। 80 साल की उम्र में जब उनके बेटों को अपनी मां का खास ख्याल करना चाहिए था तो उनके लड़के कलयुगी निकले। भगवान देवी की मौत के बाद बेटों ने अपनी मां को घर से निकाल दिया। लेकिन रोटी वाली अम्मा इस दुश्वारियों में टूटी नहीं बल्कि खुद को मजबूत बनाया और आज वो मिसाल पेश कर रही हैं कि मुश्किलों का हिम्मत के हथियार से मात दी जा सकती है।
रोटी वाली अम्मा का दुश्मन निकला कोरोना
रोटी वाली अम्मा लोगों को 20 रुपये में दाल, सब्जी, चावल और रोटी खिलाती हैं और वह ही गुजारा का साधन है। अम्मा पिछले करीब 14-15 साल से ये काम कर रही हैं। उनके पास रोटी खाने के लिए मजदूर और रिक्शे वाले आते थे लेकिन महामारी की वजह से ग्राहकों की संख्या बहुत कम हो गई है। वो बताती है कि कोरोना से पहले उनकी दुकान गुलजार रहा करती थी। लेकिन कोरोना की वजह से उनकी कमाई पर असर पड़ा है।
रोटी वाली अम्मा के पास दुकान नहीं
उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं होती है, फुटपाथ पर काम करने की वजह से अम्मा को जब-तब हटा भी दिया जाता है। वो कहती हैं कि उनका कोई साथ नहीं दे रहा है। वो कहां जाएं अगर उन्हें कहीं एक दुकान मिल जाती तो मैं अच्छे से अपना काम चलाकर गुजारा कर लेती।इस संबंध में उनकी अपनी तरह की परेशानियां हैं, लेकिन हर सवालों के अंत में कहती हैं कि कठिन श्रम के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है।
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