- रूस और यूक्रेन मिलकर करीब दुनिया का 28 फीसदी गेहूं निर्यात करते हैं।
- भारत के गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का चीन ने किया समर्थन।
- भारत में थोक महंगाई दर 15.08 फीसदी के स्तर पर पहुंची।
Wheat Export From India: भारतीय गेहूं को लेकर पश्चिमी देश और चीन आमने-सामने हो गए हैं। अहम बात यह है कि हर बार भारत का विरोध करने वाला चीन इस बार भारत के साथ खड़ा हुआ है। जबकि विकसित देशों के समूह G-7 भारत के गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर नाराजगी जता रहे हैं। बीते 13 मई को भारत ने गिरते उत्पादन और बढ़ती कीमतों को देखते हुए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसके बाद दुनिया में गेहूं का संकट गहराने की आशंका बढ़ गई है। असल में रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद से दुनिया भर में गेहूं की आपूर्ति का संकट बढ़ गया है। क्योंकि रूस और यूक्रेन मिलकर करीब दुनिया का 28 फीसदी गेहूं निर्यात करते हैं। और युद्ध की वजह से आपूर्ति नहीं हो पाने के कारण फरवरी के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें 60 फीसदी तक बढ़ चुकी है।
पश्चिमी देश क्यों नाराज
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं का उत्पादन करने वाला देश है। लेकिन वह अपनी घरेलू जरूरतों और फूड सब्सिडी जरूरतों को देखते हुए बेहद कम निर्यात करता है। भारत में साल 2020-21 में 10.96 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन किया था। इसमें से केवल 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया गया था। पिछले साल के उत्पादन को देखते हुए, सरकार ने इस साल 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया गया था। लेकिन गेहूं उत्पादक राज्यों में 45 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा तापमान की वजह से इस बार उत्पादन में 15-20 फीसदी तक कमी का अनुमान है। इसे देखते हुए अब सरकार ने गेहूं उत्पादन का अनुमान 10.5 करोड़ टन कर दिया है। और अभी मई तक के लिए करीब 43 लाख टन निर्यात के सौदे किए जा चुके हैं। इन परिस्थितियों में भारत सरकार के लिए घरेलू मांग को पूरा करने के लिए प्रतिबंध का ही विकल्प बचा नजर आ रहा था।
देश |
गेहूं निर्यात में दुनिया में हिस्सेदारी |
रूस | 19.5 % |
कनाडा | 13.9 % |
यूएसए | 13.9 % |
फ्रांस | 9.26 % |
यूक्रेन | 8.7 % |
स्रोत: OEC Report 2020
घटते उत्पादन और बढ़ती कीमतों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 13 मई को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। और इस फैसले का असर भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में तुरंत दिखा है। और सोमवार को शिकागो बेंचमार्क में गेहूं की कीमतों में 5.9 फीसदी का उछाल दिखा है।अब इसी फैसले पर विकसित देशों के समूह ने नाराजगी जता दी है। G-7 के प्रमुख देश जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने कहा है कि अगर हर कोई निर्यात प्रतिबंध लगाने या बाजार बंद करना शुरू कर देता है, तो इससे संकट और गहरा जाएगा। जाहिर है जब रूस और यूक्रेन गेहूं का पर्याप्त निर्यात नहीं कर पा रहे हैं और भारत ने भी निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया है तो उसका असर दुनिया भर में दिखेगा।
देश |
गेहूं आयात में दुनिया में हिस्सेदारी |
मिस्र | 10.10 % |
चीन | 6.75 % |
तुर्की | 4.74 % |
नाइजीरिया | 4.17 % |
इंडोनेशिया | 4.04% |
स्रोत: OEC Report 2020
लेकिन चीन भारत के साथ
गेहूं के निर्यात के फैसले पर भारत सरकार के रूख का चीन की सरकारी मीडिया ने समर्थन किया है। ग्लोबल टाइम्स ने पश्चिमी देशों को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि भले ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक हो लेकिन ग्लोबल स्तर पर गेहूं निर्यात में उसकी हिस्सेदारी बेहद कम है। जबकि अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश गेहूं के बड़े निर्यातकों में से एक हैं। जब इन देशों ने निर्यात कम करने का फैसला किया है तो भारत की वह आलोचना कैसे कर सकते हैं।
अमेरिका ने की अपील
इस बीच गहराते संकट के बीच अमेरिका ने भारत से अपील की है वह कि भारत गेहूं के निर्यात पर अपने प्रतिबंध को हटा दे। क्योंकि इस कदम से ग्लोबल स्तर पर गेहूं का संकट खड़ा हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक से पहले खाद्य सुरक्षा पर एक मंत्री स्तरीय सभा के दौरान लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा कि हम देशों को निर्यात नहीं लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि हमें लगता है कि निर्यात पर प्रतिबंध से खाद्यान्न संकट बढ़ जाएगा।
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रिकॉर्ड महंगाई और 13 साल में सबसे कम खरीद !
इस बीच भारत में भी महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। जहां रिटेल महंगाई दर अप्रैल में 7.79 फीसदी के साथ 8 साल के उच्चतम स्तर पर है। वहीं अप्रैल में खुदरा महंगाई दर ने 15 फीसदी के आंकड़े को पार कर लिया है। अप्रैल में यह 15.08 फीसदी रही है। देश में खुदरा महंगाई दर पिछले 13 महीने से लगातार दो अंकों में बनी हुई है। इसके अलावा जिस तरह सरकार ने गेहूं उत्पादन में कमी की बात कही है, उससे चालू रबी मार्केटिंग सीजन (2022-23) में भी सरकारी खरीद में कमी की आशंका है। सरकारी ने सरकारी खरीद 195 लाख टन रहने का अनुमान जताया है। अगर ऐसा होता है तो वह 13 साल में सबसे कम रहेगी।