- सर्विस सेक्टर अभी भी कोविड से पहले की स्थिति से पीछे, जीडीपी में करीब 54 फीसदी योगदान है।
- कृषि क्षेत्र ने कोविड दौर में संभाली अर्थव्यवस्था।
- निजी वाहनों की बिक्री अभी भी निगेटिव जोन में, जिसका सेंटीमेंट से सीधे नाता है।
नई दिल्ली: कोरोना के ओमीक्रॉन वैरिएंट के खतरे के बीच राहत की खबर है। यह खबर इकोनॉमी के मोर्चे पर आई है। पिछले दो साल से लॉकडाउन, कोरोना की दूसरी लहर से हिचकोले खा रही भारतीय इकोनॉमी कोरोना पूर्व की स्थिति में आ गई है। मंगलवार को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी GPD आंकड़ों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर 35 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गई है। जो कि कोरोना की दस्तक से पहले की स्थिति थी। ऐसे में यही सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कोरोना के कहर से उबार लिया है ?
क्या कहते हैं आंकड़े
वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही के आंकड़े के अनुसार GDP 35,73,451 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। जो कि कोरोना की दस्तक से पहले 2019-20 की दूसरी तिमाही के स्तर से थोड़ा ज्यादा है। उस दौरान GDP 35,61,530 करोड़ रुपये थी। जाहिर ये आंकड़े सुखद हैं। क्योंकि कोरोना की दस्तक के बाद लॉकडाउन लगने पर 2020-21 की पहली तिमाही में GDP निगेटिव स्तर में पहुंच गई थी और वह करीब 9 लाख करोड़ रुपये घटकर 26.95 लाख करोड़ पर आ गई थी। इस दौरान GDP में 24.4 फीसदी की गिरावट आई थी। जो कि लॉकडाउन हटने के बाद सुधरकर चालू वित्त वर्ष पहली तिमाही में 32.31 लाख करोड़ रुपये पहुंची थी। अहम बात यह है कि दूसरी तिमाही में मिली 8.4 फीसदी की ग्रोथ आरबीआई के अनुमान से भी ज्यादा है। आरबीआई का इस दौरान ग्रोथ 7.9 फीसदी रहने का अनुमान था।
इकोनॉमी में आए सुधार पर क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के.जोशी कहते हैं "अर्थव्यवस्था में सुधार उम्मीद के अनुसार ही है। सरकार के बड़े पैमाने पर निवेश का असर दिख रहा है। हालांकि निजी क्षेत्र के खर्च में अभी भी अहम रिकवरी होना बाकी है।"
कृषि क्षेत्र का कमाल जारी
इकोनॉमी को पटरी पर लाने में सबसे बड़ा योगदान कृषि क्षेत्र का रहा है। पिछले दो साल से जब सभी सेक्टर निगेटिव ग्रोथ पर थे तो अकेले कृषि क्षेत्र ने अर्थव्यवस्था की नींव बचा कर रखी थी। 2020-21 की पहली और दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र 3.5 और 3.0 फीसदी जबकि 2021-22 की पहली और दूसरी तिमाही में 4.5 फीसदी पर ग्रोथ बनी रही। इसके अलावा पिछली दो तिमाही में माइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन सेक्टर ने रिकवरी की है और इकोनॉमी को पटरी पर लाने में अहम भूमिका निभाई है।
गुड न्यूज के बावजूद ये आंकड़े चिंताजनक
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इकोनॉमी के मोर्चे पर गुड न्यूज है। लेकिन अभी भी कुछ आंकड़े ऐसे हैं जो चिंताजनक हैं। इसका डी.के.जोशी ने भी इशारा किया है। उन्होंने कहा है कि निजी क्षेत्र के तरफ से खर्च में बढ़ोतरी होना बाकी है।
- निजी क्षेत्र का खर्च 2019-20 में पहली और दूसरी तिमाही के दौरान 20.19 लाख करोड़ के करीब था। जो अभी भी 19.48 लाख करोड़ रुपये बना हुआ है। यानी अभी कोरोना से पहले की स्थिति नहीं आई है।
- इसके अलावा अभी निजी वाहनों की बिक्री में सुधार नहीं दिखा है। वह दूसरी तिमाही में -10.4 फीसदी पर है।
- इसी तरह जीवीए के आधार पर देखा जाय तो कंस्ट्रक्शन और सर्विस सेक्टर में रिकवरी के बावजूद अभी वह 2019-20 के स्तर पर नहीं पहुंचे हैं। होटल इंडस्ट्री,ट्रेड, ट्रांसपोर्ट, कम्युनिकेशन आदि अभी 10 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर हैं। जबकि कोरोना पूर्व यह 13 करोड़ रुपये के करीब था।
मोमेंटम बने रहना जरूर
उद्योग जगत के संगठन फिक्की के प्रेसिडेंट उदय शंकर का कहना है कि ग्रोथ रेट उम्मीद के अनुसार है। आज हम ऐसे समय में खड़े हैं, जो टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि ग्रोथ का मौजूदा मोमेंटम आगे भी बना रहे। हमें उम्मीद है कि आरबीआई अगले हफ्ते अपनी मौद्रिक नीति में जमीनी स्थिति को देखते हुए फैसला लेगा।
साफ है कि इकोनॉमी बेहतर स्थिति में आ गई है। ऐसे में अगर सरकार के तरफ से मोमेंटम मिला और निजी क्षेत्र का भरोसा लौटा तो वह नई ऊंचाइयों पर पहुंच सकती है।