- महामारी में भारत के अमीरों की संपत्ति 35% बढ़ी: रिपोर्ट
- इस दौरान गरीब और गरीब हुआ: रिपोर्ट
- कोविड-19 के सबसे बुरे अनुभवों से अमीर बच सके लेकिन गरीबों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा
भारत में ऐसी कोई सरकार नहीं बनी जिसने गरीबी मिटाने के राजनीतिक लक्ष्य की बात ना की हो। गरीबी हटाओ का नारा दशकों पहले चुनाव का प्रमुख नारा भी बना था। बावजूद इसके गरीबी नहीं मिटी तो जरूर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के साथ-साथ नीतिगत कमियों की ओर देखना पड़ेगा। क्या गरीबी मिटाने के लक्ष्य में स्वास्थ्य क्षेत्र की अनदेखी एक ऐसी ही नीतिगत कमी है?
भारत में OOPE बहुत ज्यादा
2021 के भारत के आर्थिक सर्वे में स्वास्थ्य खर्च को लेकर एक बेहद महत्वपूर्ण बात कही गई है। आर्थिक सर्वे में हेल्थकेयर पर चैप्टर की शुरुआत महात्मा गांधी के एक कथन से हुई है- 'सेहत ही सच्ची दौलत है, न कि सोना चांदी।' सर्वे ने कहा कि भारत में ऑउट ऑफ पॉकेट एक्सपेन्डीचर (OOPE) यानी स्वास्थ्य सुविधा हासिल करने के लिए अपनी जेब से भरा गया खर्च करीब 65% है, जिसका सीधा असर गरीबी पर पड़ रहा है। भारत उन देशों में है जहां OOPE बहुत ज्यादा है। आर्थिक सर्वे में स्वास्थ्य पर खर्च को मौजूदा 1% से बढ़ाकर GDP के 2.5-3% तक करने की सलाह दी गई है। आर्थिक सर्वे कहता है कि अगर स्वास्थ्य पर खर्च GDP का 2.5-3% तक हुआ तो OOPE 65% से घटकर 30% तक आ जाएगा।
महामारी में गरीब और गरीब हुए
स्वास्थ्य क्षेत्र की अनदेखी गरीबों के लिए कैसा अभिशाप है, इसे कोविड-19 के काल में बखूबी समझा जा सकता है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट- द इन्क्वॉलिटी वायरस बताती है कि महामारी में भारत के अमीरों की संपत्ति 35% बढ़ी जबकि गरीब और गरीब हुए। ऑक्सफैम की रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि कोविड-19 के सबसे बुरे अनुभवों से अमीर बच सके लेकिन गरीबों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, भुखमरी झेलनी पड़ीं, मौतें हुई हैं।
जापानी इंसेफलाइटिस के खिलाफ छेड़ा युद्ध
बीते वर्षों में उत्तर प्रदेश का गोरखपुर और आसपास के जिले जापानी इंसेफलाइटिस के दुष्चक्र से पीड़ित थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017 के बाद से जापानी इंसेफलाइटिस के खिलाफ युद्ध छेड़ा और उसके खिलाफ सफलता पाई तो उसकी एक बड़ी वजह कुपोषण के खिलाफ अभियान रहा। कुपोषण सामान्यत: गरीबी से उपजा मर्ज है। कुपोषण पर रोकथाम के लिए 1 से 15 आयुवर्ग के बच्चों और माताओं को इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट (ICDS) विभाग और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के जरिये पौष्टिक भोजन की व्यवस्था तय की गई।
आज कोविड 19 के कर्व को भारत समतल करने में कामयाब होता जरूर दिख रहा है, लेकिन इसका आर्थिक असर गरीबों के बीच लंबे समय तक रहने वाला है। ऐसे में अगर भारत कोविड-19 को सबक मानकर स्वास्थ्य को अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकताओं के तहत रखकर नीतियां बनाएगा तो भारत गरीबी के स्तर से अपने आप बाहर आ सकेगा।
(अभय श्रीवास्तव लेखक और टीवी पत्रकार हैं। टाइम्स नेटवर्क इनके विचारों के लिए उत्तरदायी नहीं है)