- सौरव गांगुली भारत के लिए 113 टेस्ट और 311 वनडे खेले
- वह भारत के सबसे सफल कप्तानों और बल्लेबाजों में से हैं
- गांगुली साल 2005-06 में वनडे-टेस्ट टीम से बाहर हो गए थे
भारत के पूर्व कप्तान और मौजूदा बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने सोमवार को शिक्षक दिवस के मौके पर ग्रेग चैपल सहित अपने कोचों को याद किया। उन्होंने साथ ही अपने करियर के दौरान आए उतार-चढ़ाव का भी जिक्र किया। बता दें कि चैपल 2005 में जॉन राइट का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भारतीय टीम के कोच बने थे। कहा जाता है कि चैपल को कोच का पद दिलाने में गांगुली का हाथ था। हालांकि, गांगुली को बिलकुल अंदाजा नहीं था कि चैपल के कोच बनने के बाद उनकी कप्तानी छिन जाएगी और टीम से भी बाहर कर दिया जाएगा। चैपल पर तब गांगुली का करियर तबाह करने का इल्जाम लगा था।
'हमने कुछ नामों पर चर्चा की लेकिन...'
गौरतलब है कि गांगुली ने चैपल से विवाद के दरम्यान हार नहीं मानी और अपना संघर्ष जारी रखा। उन्होंने दिसंबर 2006 में टेस्ट टीम में वापसी की और फिर 2007 विश्व कप से ठीक पहले वनडे टीम में लौट आए। गांगुली ने टीचर्स डे पर क्लासप्लस यूट्यूब चैनल पर शेयर किए गए वीडियो में कहा, '2003 विश्व कप के बाद हमें नया कोच मिला। हमने कुछ नामों पर चर्चा की लेकिन हमने ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल को चुना। 2007 का विश्व कप हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि 2003 में खिताब के करीब पहुंचने बावजूद हम चूक गए थे।'
'टीम एक और मौके की तलाश में थी'
गांगुली ने कहा, 'सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि पूरी टीम अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक और मौके की तलाश में थी। हमें ट्रॉफी उठाने का एक और मौका मिला, लेकिन उस समय तक मैंने कप्तानी छोड़ दी थी। हालांकि, मैं अपनी टीम के लिए अच्छा खेलना चाहता था और अपना शत प्रतिशत देना चाहता था।' पूर्व कप्तान ने कहा कि कप्तानी विवाद ने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से एक मजबूत इंसान बनाया। गांगुली ने कहा कि वह कभी भी अपने सपनों को छोड़ना नहीं चाहते थे और फिर से सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत की।
'उस दौर में जो हुआ उसने बेहतर बनाया'
गांगुली ने साल 2007 में 10 मैचों में 61.44 की औसत से 1106 रन बनाए और कैलेंडर वर्ष में 3 शतक लगाए। विश्व कप की निराशा के बावजूद गांगुली ने नवंबर 2008 में खेले गए आखिरी टेस्ट तक अपनी फॉर्म को कायम रखा। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अंतिम टेस्ट में 85 रन की पारी खेली। गांगुली ने कहा, 'उस दौर में जो हुआ उसने मुझे एक बेहतर इंसान बनाया। मैं मानसिक और शारीरिक तौर पर और मजबूत हुआ। मैंने बहुत प्रैक्टिस की। ऐसा लगा कि जैसे मैं 19 साल का युवा खिलाड़ी हूं।'
'टीम में अपनी जगह के लिए लड़ना पड़ा'
पूर्व कप्तान ने कहा, 'मुझे टीम में अपनी जगह के लिए लड़ना पड़ा। मैं कभी टीम से अंदर और कभी बाहर होता था। लेकिन मैं कभी हार नहीं मानना चाहता था। मैं अपने सपनों का पीछा कभी नहीं छोड़ा। मैं टीम में दोबारा वापस आया और तब सौरव के फिर से दादा बनने का समय था। इसके बाद, मैंने 2007 में पाकिस्तान के खिलाफ 239 रन बनाए। यह एक बहुत अच्छी सीरीज थी। मैं एक बेहतर मजबूत खिलाड़ी के रूप में घर लौटा। मैंने खुद से कहा मुझमें अभी भी टीम के लिए खेलने और टीम को आगे ले जाने की क्षमता है। मैंने सोचा था कि मैं हार नहीं मानूंगा और उन्हें बल्ले से जवाब दूंगा।'
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