- संजय मांजरेकर ने कहा कि 1990 के समय में सचिन पर टीम ज्यादा निर्भर थी
- मांजरेकर ने कहा कि तेंदुलकर की महानता सामने आई क्योंकि बल्ले वह वह दुर्लभ ही फेल होते थे
- मांजरेकर ने अश्विन के साथ इंस्टाग्राम लाइव सेशन के दौरान यह खुलासा किया
नई दिल्ली: क्रिकेटर से कमेंटेटर बने संजय मांजरेकर का मानना है कि 1990 के समय में भारतीय टीम कुछ ज्यादा ही सचिन तेंदुलकर पर निर्भर थी, जो आगे चलकर विश्व के सर्वकालिक महान बल्लेबाजों में से एक बने। तेंदुलकर ने 1989 में पाकिस्तान के खिलाफ अपने इंटरनेशनल करियर की शुरुआत की और 664 मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए 34,000 से ज्यादा रन बनाए।
मांजरेकर ने रविचंद्रन अश्विन के साथ इंस्टाग्राम लाइव सेशन में बात करते हुए कहा, 'सचिन तेंदुलकर ने 1989 में डेब्यू किया। एक साल में उन्होंने न्यूजीलैंड में 80 रन बनाए। 1991/92 में इंग्लैंड में पहला शतक जमाया। दुनिया तब तक उन्हें विश्व स्तरीय बल्लेबाज मानने लग गई। तब उनकी उम्र केवल 17 साल थी। जिस तरह वह गुणी गेंदबाजी आक्रमण के खिलाफ हावी होते थे। टीम में हम लोगों को लगता था कि वो अलग लीग में है। दुर्भाग्यवश 1996/97 में भारतीय टीम तेंदुलकर पर ज्यादा निर्भर रह गई क्योंकि आपको पता था कि वह निरंतर बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। वह भारत का पहला बल्लेबाज है, जो अच्छी गेंदों पर चौका जमाना जानता था।'
ऐसे दिखी सचिन की महानता
मांजरेकर ने आगे कहा, 'तब तक भारतीय टीम एक डिफेंसिव बल्लेबाजी क्रम के लिए जानी जाती थी, सिर्फ खराब गेंदों को सीमा रेखा के पार पहुंचाते थे जैसे सुनील गावस्कर। कुछ सेशन गेंदबाजों को इज्जत दो, फिर आप जानते हैं कि वो थक जाएंगे, आप फिर खराब गेंदों पर रन बनाइए। वहीं सचिन अच्छी गेंद पर भी चौका जमाना जानता था।' 54 साल के मांजरेकर ने बताया कि तेंदुलकर की महानता तब सामने आई जब बल्ले से उनका फेल होना दुर्लभ होता था।
मांजरेकर ने श्रीलंका के खिलाफ 1996 विश्व कप के सेमीफाइनल को याद करते हुए कहा, 'सचिन तेंदुलकर की महानता तब सामने आई जब बल्ले से उनका फेल होना दुर्लभ होता था। यह उनके साथ पूरे करियर के दौरान हुआ। यह महान बल्लेबाज का हॉलमार्क है। सचिन का आउट होना बहुत दुर्लभ था।'
जाने माने प्रसारणकर्ता मांजरेकर ने साथ ही कहा कि मैदान पर क्रिकेटर्स संवेदनशील होते हैं और इसलिए उन्हें कमेंटेटर्स के बयानों को नजरअंदाज करना चाहिए। मांजरेकर ने कहा, 'खिलाड़ी संवेदनशील होते हैं। मैं भी संवेदनशील था। जब दिलीप वेंगसरकर ने अपने कॉलम में मेरी आलोचना की थी, मैंने उनके दरवाजे के नीचे एक नोट डालकर उनके अनुभवों का विरोध करने का पूरा प्रयास किया। इसलिए मुझे खिलाड़ियों के रिएक्शन पर परेशानी नीहं। जब सचिन तेंदुलकर ने मेरे द्वारा लिखे कॉलम पर रिएक्ट करेंगे, तो मैं चुप रहूंगा।' पूर्व भारतीय बल्लेबाज ने आगे कहा कि खिलाड़ियों को कमेंटेटर्स को महत्व नहीं देना चाहिए और अपने प्रदर्शन पर ध्यान रखना चाहिए।