नई दिल्ली: अंबेडकर यूनिवर्सिटी की एक छात्रा पर विश्वविद्यालय के ऑनलाइन दीक्षांत समारोह के दौरान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के बारे में कथित रूप से 'अप्रिय टिप्पणी' करने के लिए 5,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया। अब सिसोदिया ने निर्देश दिया है कि छात्रा पर लगाए गए जुर्माने को रद्द किया जाए।
एमए के अंतिम सेमेस्टर की छात्रा नेहा पर 30 जून को जुर्माना लगाया गया था। उसे अपनी अंतिम परीक्षा में बैठने के लिए भुगतान करना पड़ा था। ऑनलाइन दीक्षांत समारोह के दौरान उसने AUD की प्रवेश नीति के विरोध में YouTube लाइव स्ट्रीमिंग लिंक पर टिप्पणी पोस्ट की थी, जिसमें शुल्क वृद्धि और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों के खिलाफ कथित भेदभाव शामिल था। जबकि प्रॉक्टर के आदेश में कहा गया है कि उसने 'अपमानजनक टिप्पणी' का इस्तेमाल किया। छात्रा का कहना है कि उसे चुना गया जबकि वह दर्जनों अन्य छात्रों में से एक थी जो ऑनलाइन विरोध का हिस्सा थे।
न लगे जुर्माना, न हो कोई कार्रवाई
अब मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा को पत्र लिखकर यह सुनिश्चित करने को कहा कि जुर्माना रद्द किया जाए और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए। उन्होंने लिखा है, 'सबसे पहले, किसी भी स्टूडेंट के खिलाफ सरकार या विश्वविद्यालय से अलग दृष्टिकोण व्यक्त करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, जब तक कि उक्त बयान हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान न पहुंचाए या हमारे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ न हो। दूसरा, चूंकि छात्रा सरकार के खिलाफ अपना विचार व्यक्त कर रही थी, जैसा कि मीडिया में बताया जा रहा है, उसके खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू करने से पहले मामला हमारे संज्ञान में लाया जाना चाहिए था।'
सिसोदिया ने पढ़ाया अभिव्यक्ति की आजादी का पाठ
सिसोदिया ने विश्वविद्यालयों में फ्री स्पीच के महत्व के बारे में लिखा। उपमुख्यमंत्री ने लिखा, 'किसी भी छात्र को विश्वविद्यालय परिसर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए। छात्र हमारे देश का भविष्य हैं और अगर हम उन्हें आलोचना करने, टिप्पणी करने और अपनी आवाज विकसित करने का मौका नहीं देते हैं, तो हम अपने देश को एक अंधकारमय भविष्य के लिए तैयार करते हैं जहां लोगों में अन्याय के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं होगी। अगर हमारे देश में राजनीतिक नेताओं के खिलाफ आलोचना और असंतोष की आवाज व्यक्त नहीं की जा सकती है तो हम अब लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाही हैं।