नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने शुक्रवार को कहा कि डिजिटल शिक्षा औपचारिक ‘क्लासरूम’ शिक्षा की जगह नहीं ले सकती है।
यह विचार न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ के न्यायाधीशों में शामिल एक न्यायाधीश ने व्यक्त किए, जिन्होंने निजी और साथ ही केंद्रीय विद्यालयों जैसे सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया कि वे कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षा के लिए गरीब छात्रों को उपकरण और एक इंटरनेट पैकेज प्रदान करें।
पीठ ने कहा कि ऐसा न करना छात्रों के साथ "भेदभाव" माना जाएगा और इससे एक "डिजिटल असमानता" पैदा होगी। अपने संक्षिप्त लेकिन अलग टिप्पणी में, न्यायमूर्ति नरुला ने कहा कि डिजिटल शिक्षा या शिक्षण के ऑनलाइन प्रारूप को शामिल कर 'शिक्षा' पद्धति का विस्तार किया जा सकता है, लेकिन ऐसा प्रारूप "केवल एक पूरक तंत्र के रूप में कार्य कर सकता है" और यह एक स्थायी माध्यम के रूप में कार्य नहीं कर सकता।
कर्नाटक में स्कूल और प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज 21 सितंबर से खुलेंगे लेकिन नियमित कक्षाएं नहीं होंगी बल्कि छात्र अपनी पढ़ाई से संबंधित दुविधाओं को दूर करने के लिए स्कूल आकर शिक्षकों से मिल सकें। कर्नाटक के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री एस सुरेश कुमार ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि सरकार नियमित कक्षाओं को फिर से शुरू करने के लिए केंद्र की मंजूरी का इंतजार कर रही है।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “21 सितंबर से, कक्षा नौ से 12वीं तक के शिक्षक, अपने विषय से संबंधित छात्रों की दुविधाओं को दूर करने के लिए स्कूल में उपस्थित होंगे। यह नियमित कक्षाओं जैसा नहीं होगा।” वह केंद्रीय पुस्तकालय का उद्घाटन करने के लिए जिला प्रभारी मंत्री एस टी सोमशेखर के साथ मैसूरु में थे।
नियमित कक्षाओं को फिर से शुरू करने पर के सवालों के जवाब में, कुमार ने कहा 'किसी भी परिस्थिति में, नियमित कक्षाएं शुरू नहीं होंगी। हम नियमित कक्षाओं को फिर से शुरू करने के लिए केंद्र से हरी झंडी का इंतजार कर रहे हैं।'