पापा चाहते थे बेटी अफसर बने और नीली बत्ती लगी गाड़ी में बैठे लेकिन ये देखने से पहले वह इस दुनिया से चले गए। पापा के बाद भाई को खोया लेकिन साधना चौहान ने हिम्मत नहीं हारी। मेहनत और दृढ़निश्चय के बल पर साधना चौहान का चयन उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पीसीएस परीक्षा में हुआ। उन्हें सेल्स टेक्स विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर का पद पर नियुक्ति मिली।सुविधाओं के अभाव और परिवार में हुई घटनाओं को सहकर गाजियाबाद के अतरौली गांव की रहने वाली साधना चौहान ने संघर्ष की मिसाल पेश की। पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-
तैयारी कब शुरू की?
मैंने सन् 2002 में सिविल सेवा की तैयारी शुरू की थी। पापा ने दिल्ली के बाजीराव रवि कोचिंग संस्थान में दाखिला कराया था। लेकिन 2004 में पापा हमें अकेला छोड़कर चले गए। अब घर की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई थी। हम गांव में रहते थे। अब शहर जाना और कोचिंग लेना संभव नहीं था। गांव के लोग मेरी मां से तरह-तरह की बातें करते थे। लेकिन हमने अपना हौसला नहीं डिगने दिया और तैयारी जारी रखी। सच कहूं तो ये मेरे सलेक्शन की परीक्षा नहीं थी बल्कि मेरे जीवन की परीक्षा थी।
अफसर बनना ही क्यों लक्ष्य बनाया?
मेरे पिता श्री शिवराज सिंह चौहान फूड इंस्पेक्टर थे। पापा चाहते थे कि मैं अफसर बनूं और नीली बत्ती लगी गाड़ी में बैठूं। इसलिए मैंने पापा के सपने को अपना लक्ष्य बनाया।
जीवन में संघर्ष काफी रहा है आपके?
पापा को खो दिया फिर 2012 में मैंने अपने एक भाई को खो दिया। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। अब घर में मैं, मां और एक भाई थे। बड़ी होने के नाते मुझे सबको देखना था। खुद को संभालना था और पापा के सपने को बिखरने नहीं देना था। मैं अपनी मां के साथ इलाहाबाद किताबें लेने जाती थी।
इससे पहले के एग्जाम में कहां तक पहुंची हैं?
इससे पहले 2006 और 2009 में मैं इंटरव्यू तक पहुंची थी लेकिन चयन नहीं हुआ था।
पढ़ाई कहां से की है?
मैंने आर्मी स्कूल, हेमपुर, नैंनीताल से 12वीं की है। उसके बाद आरजी कॉलेज मेरठ से बीएससी की और मेरठ कॉलेज मेरठ से एमए की पढ़ाई पूरी की।
छात्रों को सलाह?
मैं विशेष रूप से लड़कियों से कहूंगी कि अपना लक्ष्य बनाएं और हिम्मत न हारें। समाज और गांव का विरोध झेलें और आगे बढ़ें।