- यूक्रेन में बच्चों को 6 साल के एमबीबीएस कोर्स के लिए 20-25 लाख रुपये फीस के रूप में खर्च करने पड़ते हैं।
- रूस के हमले के समय वहां कक्षाएं चल रही थी, अब बच्चों के करियर को लेकर संकट खड़ा हो गया है।
- यूक्रेन में प्रमुख रूप से 18 मेडिकल विश्वविद्यालय है। जहां भारतीय बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।
नई दिल्ली: यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे आपरेशन गंगा से अब तक 1150 से ज्यादा भारतीय नागरिकों और छात्रों को वापस लाया जा चुका है। और बचे लोगों को भी निकालने का काम जारी है। भारतीय दूतावास के अनुसार युद्ध के पहले यूक्रेन में करीब 18 हजार भारतीय छात्र रहते थे। जो कि यूक्रेन में जाकर पढ़ाई कर रहे थे। इनमें से अधिकतर छात्र और छात्राएं मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं। यूक्रेन गए ये बच्चे एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए 6 साल में 20-25 लाख रुपये खर्च करते हैं। युद्ध की वजह से अब उनके करियर पर संकट छा गया है।
युद्ध से छाई अनिश्चितता
जिस समय रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। तो समय वहां कक्षाएं चल रही थीं। ऐसे में कई बच्चों को पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वापस आना पड़ रहा है। इसमें से बहुत से ऐसे छात्र है जो कोर्स पूरा करने के अंतिम चरण में हैं। अब उनके सामने भविष्य का संकट खड़ा हो गया है। प्रोलॉगएब्रॉड वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार यूक्रेन में प्रमुख रूप से 18 मेडिकल विश्वविद्यालय है।
यूक्रेन में भारतीय छात्रों को भेजने वाली ऐसी ही एक कंसल्टिंग फर्म के अनुसार इस तरह के संकट की किसी को उम्मीद नहीं थी। ऐसे में अभी यह समझ नहीं आ रहा है कि बच्चों का भविष्य क्या होगा। रूस के हमले में उन विश्वविद्यालयों का क्या हुआ, इसका तो फिलहाल अंदाजा ही नहीं है। जिस तरह रूस के हमले में शहर तबाह हो रहे हैं, उसे देखते हुए वहां फिर से पढ़ाई शुरू होना आसान नहीं है। एक उम्मीद यह है कि ऑनलाइन परीक्षा और पढ़ाई के जरिए फिलहाल डिग्रियां दी जाय। या फिर जीरो ईयर घोषित किया जाय। लेकिन यह सब भविष्य में ही तय होगा। फिलहाल तो बस यही जरूरी है कि छात्र-छात्राएं वापस भारत आ जाएं।
छात्रों की और भी दिक्कतें
यूक्रेन में पढ़ने वाले बच्चों को 6 साल के एमबीबीएस कोर्स की पढ़ाई के लिए 20-25 लाख रुपये फीस के रूप में खर्च करने पड़ते हैं। इसके लिए कई बच्चे बाहर रूम लेकर भी रहते हैं। युद्ध में उनके सामान की बर्बादी से लेकर आने वाले समय में कब तक पढ़ाई ब्रेक रहेगी, इसको लेकर भी असमंजस है। जो बच्चे तीन-चौथे वर्ष में हैं, वह तो और अधर में हैं। देवरिया के रहने वाले नरेंद्र कहते हैं कि मैं अपने छोटे बच्चे को एमबीबीएस के कोर्स के लिए भेजने वाला था। लेकिन एक तो अभी जाना संभव नहीं है। दूसरे हालात देखकर लगता है कि अब नए सिरे से प्लान करना पड़ेगा।