- रूस से यूद्ध शुरू होने के बाद यूक्रेन से बड़ी संख्या में लौटे मेडिकल छात्र।
- अपनी पढ़ाई को लेकर छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है याचिका।
- केंद्र सरकार ने अदालत में दाखिल किया जवाब।
युद्ध की वजह से यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्र अपने कोर्स को भारत में पूरा नहीं कर सकते हैं। इन छात्रों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने अपना हलफनामा दाखिल किया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि इन छात्रों को कोर्स के लिए एडमिशन देने से भारत की मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।
अपने जवाब में केंद्र सरकार ने ये साफ कर दिया है कि विदेश विश्वविद्यालयों में छात्र दो ही वजहों से पढ़ने जाते हैं। पहला नीट परीक्षा की मेरिट में खराब प्रदर्शन और दूसरा दूसरे देशों में भारत की तुलना में सस्ता कोर्स।
वहीं अधूरी इंटर्नशिप के विषय पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने नेशनल मेडिकल काउंसिल से परामर्श के बाद ये तय किया है कि स्क्रीनिंग टेस्ट पास करने के बाद मेडिकल स्टूडेंट इसे पूरा कर सकते हैं। कानून के मुताबिक ये स्क्रीनिंग टेस्ट हर उस भारतीय छात्र के लिए जरूरी है जिसने अपनी मेडिकल की डिग्री किसी विदेशी विश्वविद्यालय से हासिल की है और वो यहां प्रैक्टिस करना चाहता है।
इसके अलावा वो अंडरग्रैजुएट मेडिकल छात्र जो कोरोना महामारी या युद्ध के दौरान कोर्स के आखिरी साल में थे और बाद उन्हे उनके संस्थानों से डिग्री मिल गई है, उन्हें भी स्क्रीन टेस्ट में हिस्सा लेने की अनुमति दे दी गई है।
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रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान वापस लौटे मेडिकल छात्र लगातार मांग कर रहे हैं कि उन्हें भारत में अपना कोर्स रखने दिया जाए। इस मांग को लेकर छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं लगाई थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने इन मेडिकल छात्रों की भारत में अपनी पढ़ाई जारी रखने की अनुमति देने की मांग वाली सभी याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान ही याचिकाकर्ताओं ने विदेश मामलों की एक स्थायी समिति की एक सिफारिश के आधार पर ये मांग की थी कि हालात को देखते हुए भारतीय कॉलेजों में ही इन छात्रों समायोजित कर लेना चाहिए।