भुवनेश्वर : गरीबी क्या न कराए। कुछ ऐसी ही कहानी है ओडिशा की रोजी की, जिसने अपने जीवट व लगन से इंजीनियरिंग पढ़ाई तो कर ली, लेकिन फीस चुकाने में नाकाम रही तो कॉलेज ने डिप्लोमा ही रोक लिया। अब वह दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर है। वह रोजाना 207 रुपये के आधार पर मनरेगा मजदूर की हैसियत से काम करती है, ताकि डिप्लोमा लेने के लिए वह पैसे जोड़ सके, जिसके लिए उसे 44,000 रुपये की दरकार है।
मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर देने वाला यह मामला ओडिशा में पुरी जिले के पिपली ब्लॉक के गोराडापिढ़ा गांव का है, जहां रोजी ने विपरीत परिस्थितियों में रहने के बावजूद अपनी लगन व मेहनत से इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो कर ली, लेकिन फीस नहीं चुका पाना उसके लिए एक बड़ी समस्या बन गई, जिस कारण कॉलेज ने डिप्लोमा देने से इनकार कर दिया। अब वह पिता के साथ मनरेगा मजदूर के तौर पर काम करती है, ताकि घर के खर्चे चलाने में उन्हें मदद दे सके और अपना डिप्लोमा लेने के लिए कॉलेज को फीस का भुगतान कर आगे की पढ़ाई जारी रख सके और भविष्य में एक अच्छा करियर उसे मिल सके।
2016-2019 सत्र में की इंजीनियरिंग की पढ़ाई
रोजी ने साल 2016-2019 सत्र में एक प्राइवेट कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। हालांकि यह कोर्स सरकारी अनुदान की मदद से उसने पूरा कर लिया, लेकिन हॉस्टल की फीस भरने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। इसके लिए उसे 44,000 रुपये की आवश्यकता है, जबकि उसके अभिभावकों के पास 20,000 रुपये ही हैं। उसने कॉलेज प्रशासन से अपनी मजबूरी भी बताई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब वह मनरेगा स्कीम के तहत मजदूरी कर रही है, ताकि फीस के लिए जरूरी रकम जुटाई जा सके और इसका भुगतान कर वह अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख सके।
रोजी को मलाल है कि सर्टिफिकेट नहीं मिल पाने के कारण वह वह B.Tech में दाखिला नहीं ले पाई। रोजी पांच बहने हैं और घर में कमाने वाले सिर्फ उसके पिता ही हैं, जो मजदूरी करते हैं। ऐसे में उनके लिए परिवार के खर्च के साथ सभी की पढ़ाई का खर्च उठा पाना मुश्किल है। यही वजह है कि उसने खुद भी इस काम में लगने का फैसला किया और बीते 20 दिनों से वह मनरेगा स्कीम के तहत मिट्टी ढोने का काम कर रही है। मामले की जानकारी मिलने पर स्थानीय प्रशासन भी हरकत में आया है। देलांग ब्लॉग के वेल्फेयर एक्टेंशन ऑफिसर ने कहा कि वह इस मामले की जांच करेंगे। उन्होंने रोजी से मुलाकात भी की और उसका पक्ष जाना।