- कोरोना संकट के बीच तेजी से बढ़ा है ऑनलाइन शिक्षा का चलन
- ऑनलाइन शिक्षा के बीच आज भी देश के कई जगहों पर है इंटरनेट कनेक्टिविटी की दिक्कत
- जहां इंटरनेट शिक्षा नहीं वहां किस तरह से होगी पढ़ाई रिकवरी?
नई दिल्ली: कोरोना महामारी ने हमारे जीवन जीने के तौर-तरीके ही बदल दिए हैं। महामारी की वजह से जारी लॉकडाउन और अनलॉक के दौरान सभी स्कूल,कॉलेज और शिक्षण संस्थान बंद हैं और ऐसे में अब ऑनलाइन शिक्षा के जरिए पढ़ाई जारी है। तमाम कठिनाईयों के बावजूद भी अध्यापक और छात्र इसके जरिए शिक्षण कार्य कर रहे हैं। सरकार भी ऑनलाइन शिक्षा पर जोर दे रही है और उच्च माध्यमिक स्तर (कक्षा XI और XII) के लिए वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर जारी कर दिया गया है। इस कैलेंडर को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मार्ग दर्शन में एनसीईआरटी द्वारा कोविड-19 के कारण घर पर रहने के दौरान छात्रों को उनके माता-पिता एवं शिक्षकों की मदद से शैक्षिक गतिविधियों में सार्थक रूप से संलग्न रखने के लिए विकसित किया गया है। कई ऐप लॉन्च हुए हैं और हर तरफ एक तरह से ऑनलाइन एजुकेशन का बोल-बाला है।
इंटरनेट कनेक्टिविटी
लेकिन इन सबके बीच कई बुनियादी सवाल भी है जो जस के तस हैं। आप इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि जब देश में शुरूआती दौर का लॉकडाउन लागू हुआ था तो तब बड़े शहरों और अच्छे संभ्रांत परिवारों को तक इसका प्रयोग करने में ठीक-ठीक वक्त लग गया था। ऐसे में आप खुद सोच सकते हैं कि छोटे शहरों, गांवों और कस्बों में किस तरह से ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही होगी और हालात किस तरह रहे होंगे। एक तरफ देश इंटरनेट के मामले में 5 जी की तैयारी कर रहा है वहीं कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी 3 जी तक के सिंग्नल तक नहीं आते हैं। ये भी पढ़ें: कब खुलेंगे स्कूल-कॉलेज, कैसे होंगे एग्जाम और कब आएंगे रिजल्ट? जानिए क्या कहा HRD मंत्री निशंक ने [Video]
दूरदराज के इलाकों और गांवों में बड़ी दिक्कत
डिजिटिल इंडिया के इस दौर में कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी लोगों को फोन पर इंटरनेट चलाने के अपने घर से दूर जाना पड़ता है। मैं खुद उत्तराखंड के एक ऐसे गांव से ताल्लुक रखता हूं जो हर क्षेत्र में अव्वल है लेकिन फोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी के मामले में काफी इतना पिछड़ा है कि अभी भी लोगों को इंटरनेट चलाना तो छोड़िये बात करने तक के लिए अपने घरों से बाहर निकलकर ऊंचाई वाले जगहों पर जाना पड़ता है। ये केवल एक गांव की बात नहीं है बल्कि ऐसे कई गांव हैं जहां ऐसी समस्या है। आप अंदाजा लगाइए कि ऐसी जगहों पर कैसे ऑनलाइन शिक्षा संभव होगी? ऐसे में जिन बच्चों की शिक्षा पिछले तीन महीने से छूटी हैं वो कैसे रिकवर होगी और सरकार उनके लिए क्या प्रयास कर रही है? यह सवाल अभी भी बना हुआ है।
निचले तबके लिए पर सबसे अधिक ग्रुप
अब बात करते हैं निचले तबके के लोगों की। लॉकडाउन के दौरान आपने सड़कों पर देखा होगा कि हजारों की तादाद में लोग बच्चों को पैदल ही लेकर अपने घर की तरफ निकले थे। ये वो परिवार हैं जिनके बच्चे पास के प्राइमरी स्कूल या अन्य सरकारी स्कूल में पढ़ाई के लिए जाते होंगे। लेकिन जब कोरोना संकट में स्कूल -कॉलेज सब बंद हैं तो ये किस माध्यम से पढ़ाई कर रहे होंगे, जवाब है कि इनकी पढ़ाई एक तरह से लगभग बंद हो गई होगी और ये अब परिवार की आर्थिक मदद के लिए शायद मां-बाप के कामों में हाथ भी बटा रहे होंगे।
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शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत देश के सबसे बड़े गैर सरकारी संगठन ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (असर) - 2018 की एक रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए थे वो तो हैरान करने वाले थे। इस रिपोर्ट के मुताबिक पांचवीं कक्षा में 50.3 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा के लिए तैयार किए गए सिलेबस को पढ़ सकते हैं। ऐसे में आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि स्कूली शिक्षा को लेकर किए जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद ये हालत है तो ऑनलाइन शिक्षा में किस तरह की परिस्थितियां होंगी।
सरकार को उठाने होंगे कदम
एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट कनेक्टिविटी की बात करें तो आज भी लगभग 50 फीसदी से भी कम घरों में इंटरनेट की सुविधा है। ऐसे में आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि जिनके पास इंटरनेट नहीं है उनकी पढ़ाई किस तरह प्रभावित रही होगी। भले ही लोग स्मार्ट फोन के जरिए पढ़ाई कर रहे होंगे लेकिन क्या एक गरीब परिवार के पास स्मार्टफोन आसानी से उपलब्ध होगा? कोरोना के मामले जिस तरह से बढ़ रहे हैं उससे लग नहीं रहा है कि हालात एकदम सामान्य होंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए की वो देश के दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट की सुविधा का विस्तार करे और कुछ ऐसी योजना तैयार करे की कम से कम एक निचले तबके के छात्र को लैपटॉप ना सही कम से कम स्मार्टफोन तक मिल सके। ऑनलाइन एजेकुशेन का सैट तैयार करना है तो इसके लिए धरातल पर प्रयास करने जरूरी होंगे तभी इसमें सफलता मिल सकेगी।