- यूपी चुनाव में बीएसपी को महज 1 सीट
- मायावती बोलीं- दलित समाज चट्टान की तरह बीएसपी के साथ
- नई रणनीति के साथ आगे बढ़ेंगे
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे अब सामने आ चुके हैं। बीजेपी गठबंधन एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुई है। चुनावी प्रचार के दौरान बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती लगातार कह रही थीं कि 2022 में बीएसपी इतिहास बनाने जा रही है। मायावती की वाणी सच भी साबित हुई। लेकिन सरकार बनाने का सपना उनका अधूरी रह गया और बीएसपी महज एक सीट पर सिमट गई। बीएसपी जिस एक सीट पर सिमटी वो बलिया जिले की रसड़ा सीट है। रसड़ा से उमाशंकर सिंह एक बार जीत हासिल करने में कामयाब हुए हैं। पूर्वांचल में यह माना जाता है कि उमाशंकर जीत सिंह की जीत उनकी खुद की जीत होती है। अपनी पार्टी की इस तस्वीर पर मायावती ने कुछ बयान भी दिए हैं।
जनादेश स्वीकार, रणनीति नई बनाएंगे
मायावती ने कहा कि वो जनादेश को स्वीकार करती हैं, पार्टी ने आगे की रणनीति बनाएगी। इन सबके बीच उन्होंने कहा कि दलित समाज चट्टान के साथ खड़ा है। उन्होंने कहा कि चुनावी प्रक्रिया में हार और जीत लगी रहती है। लेकिन हम विश्लेषण करेंगे कि आखिर जमीनी स्तर पर हम जनता के बीच अपनी बात रख पाने में क्यों नाकाम रहे। आखिर वो कौन सी वजह थी कि मजबूत उम्मीदवारों के बाद भी जीत का आंकड़ा नहीं आगे बढ़ा।
क्या है जानकारों की राय
अब सवाल यह है कि अगर दलित समाज चट्टान की तरह खड़ा था तो बीएसपी क्यों बेहतर नहीं कर सकीं। इसे लेकर जानकारों की राय बंटी हुई है। जानकारों का कहना है कि 2007 से अब तक समाज में बड़ा बदलाव आया है। यह बात सच है कि बीएसपी ने दलित समाज में चेतना का संचार किया। लेकिन सिर्फ चेतना को जागृत करने से काम नहीं बनता। उस चेतना को दिशा देनी पड़ती है। खाद पानी से सींचना पड़ता है। मायावती को यह लगता था कि 2022 के चुनाव में उनका समाज परंपरागत तौर पर मतदान करेगा। सामाजिक समीकरणों को साध कर वो चुनावी नैया पार लगा पाएंगी। लेकिन 2014 से लेकर 2022 में जिस तरह से नए लाभुक वर्ग का उदय हुआ वो धीरे धीरे बीजेपी के करीब हुआ। यह वो समाज है जिसे गैर जाटव वर्ग के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा जिस तरह से समाजवादी पार्टी की तरफ से आक्रामक रुख अख्तियार किया गया और जमीन पर मायावती नजर नहीं आईं तो बीएसपी के वोटबैंक को लगा कि मजबूत सपा उसके हित में नहीं होगी लिहाजा उन्होंने बीजेपी के साथ जाना पसंद किया और उसका असर बीएसपी की सीट संख्या पर नजर आई।
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