- एक वर्ष के आंकड़ों से पता चलता है कि बीमारी का पता लगने के 90 दिनों में हार्ट फेलियर के मरीजों की मृत्युदर 17 फीसदी है
- 50 साल से कम उम्र के युवा मरीजों में हार्ट फेल होने के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई
- हाइपरटेंशन और डायबिटीज किसी मरीज को साथ-साथ होने वाली सबसे सामान्य स्थितियां हैं
नई दिल्ली: भारत की सबसे बड़ी नेशनल हार्ट फेलियर रजिस्ट्री (एनएचएफआर) के एक वर्ष के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में हार्ट फेलियर के मरीजों से जुड़े मामलों में मृत्युदर काफी ऊंची है।
हार्ट फेलियर की बीमारी का पता लगने के 90 दिन के भीतर करीब 17 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। इस बीमारी से होने वाली मृत्युदर की तुलना ब्रेस्ट और सर्विक्स (गर्भाशय ग्रीवा) के कैंसर से पीड़ित मरीजों की मत्युदर से की जा सकती है। यह नतीजे सावर्जनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के तौर पर हार्ट फेलियर को प्राथमिकता देने की अनिवार्य जरूरत पर बल देते हैं।
हार्ट फेलियर सभी कार्डियो वैस्कुलर बीमारियों में मौत होने और मरीजों के बार-बार अस्पताल में भर्ती होने का प्रमुख कारण है। भारत में हार्ट फेलियर के करीब 10 मिलियन मरीज हैं। यह पुरानी और तेजी से बढ़ने वाली बीमारी है, जिसमें दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और समय गुजरने के साथ ही यह सख्त हो जाती हैं, जिससे दिल का सामान्य रूप से ब्लड को पंप करना काफी मुश्किल हो जाता है।
इस रोग के बढ़ते बोझ पर टिप्पणी करते हुए डॉ. संदीप सेठ, कार्डियोलॉजी प्रोफेसर, एम्स, दिल्ली ने कहा, ‘अब समय आ गया है कि हम हार्ट फेलियर को भारत की प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या मानें। इसके कारण होने वाली मौतों की संख्या कम करने के लिये लक्षित हस्तक्षेप चाहिये। चिंता का एक अन्य कारण यह है कि भारतीयों में यह रोग जीवन की शुरुआती अवस्था में होता है और लोगों के जीवन के उत्पादनशील वर्षों को प्रभावित करता है, जिससे सामाजिक-आर्थिक बोझ बढ़ता है।’
एनएचएफआर के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि इश्केमिक हार्ट डिजीज 73 फीसदी मरीजों में हार्ट फेलियर का प्रमुख कारण है। हाई ब्लडप्रेशर और डायबिटीज क्रमश: 49 फीसदी और 44 फीसदी मरीजों में हार्ट फेलियर का कारण बनता है। बदकिस्मती से भारत में आधे से भी कम हार्ट फेलियर के मरीजों को दिशा-निर्देशों के अनुसार उचित इलाज की सुविधा हासिल होती है। रोग का पता लगने और मौत के बीच समय कम मिलने का सबसे बड़ा कारण भी यही है।
डॉ. शिरेष (एम.एस) हीरेमाथ, डायरेक्टर, कैथ लैब रूबी हॉल, पुणे और प्रेसिडेन्ट, इलेक्ट, पास्ट कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (सीएसआई) ने कहा, ‘‘हार्ट फेलियर के अधिकांश रोगियों में पहली बार अस्पताल में भर्ती होने पर इसका पता अचानक चलता है। इसलिये इस रोग, इसके लक्षणों और जोखिम के कारकों पर जागरूकता बढ़ाना जरूरी है। जल्दी पता चलने और उन्नत उपचार से बार-बार अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु की संख्या भी की जरूरत कम हो सकती है।’’
अभी हम अनलॉक 2 में प्रवेश कर चुके हैं और सरकार ने कुछ छूट भी दी है। अस्पताल और क्लिनिक पर्याप्त सुरक्षा के साथ परिचालन शुरू कर चुके हैं। हार्ट फेलियर पर बेहतर नियंत्रण के लिये प्रबुद्ध हृदय रोग विशेषज्ञों ने रोगियों से आग्रह किया है कि वे अपने डॉक्टरों को दिखाना शुरू करें और दिशा-निर्देशों और सामाजिक दूरी का पालन करते हुए छूटे हुए अपॉइंटमेन्ट्स को रीशेड्यूल करें।
इलाज के साथ ही, मरीजों को बेहतर जिंदगी जीने के लिए अपनी लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करने की भी सलाह दी जाती है।
एनएचएफआर का गठन 2019 में किया गया है। इसका मकसद भारत में हार्ट फेलियर के वैज्ञानिक आंकड़ों को एकत्र करना और उसकी जांच के लिए एक रोडमैप बनाना था ताकि रुग्णता और मृत्यु दर में सुधार लाया जा सके।