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क्‍या कैंसर के लिए रामबाण इलाज है हाई डोज विटामिन सी थेरेपी?

Updated Jul 07, 2020 | 13:57 IST

उच्‍च खुराक विटामिन C थेरेपी नियमित कीमोथेरेपी के साथ भी दी जा सकती है, क्‍योंकि यह इसके दुष्‍प्रभावों को कम करने में मदद करती है। ये माइक्रोन्‍यूट्रिएंट्स तत्‍व एंटी-ऑक्सिडेंट्स का काम करते हैं।

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कैंसर के लिए हाई डोज विटामिन सी थेरेपी

कैंसर रोगों का एक वर्ग है, जिसमें शरीर की स्‍वस्‍थ कोशिकायें असामान्‍य रूप से बढ़ना शुरु हो जाती हैं और अनियंत्रित रूप से विभाजित होती रहती हैं। यह परिणामस्‍वरूप शरीर के ऊतकों (टिश्‍यू) का नाश करने लगती हैं। कैंसर शरीर के एक हिस्‍से से दूसरे हिस्‍से में भी फैल सकता है, जिसे मैटास्‍टॅसिस (रूप-परिवर्तन) कहा जाता है। कैंसर का उपचार कराने के लिए परंपरागत रूप से चार मौलिक उपचार हैं - रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी, सर्जरी और इम्‍यूनोथेरेपी। परंपरागत उपचार पूरी तरह से रोग-लक्षित होते हैं और व्‍यक्ति या शरीर को एक इकाई मानकर इस पर काम करने की बजाय न्‍यूटोनियन मॉडल पर काम करते हैं।

अब विभिन्‍न प्रकार के वैज्ञानिक उपचार (थेरेपी) सामने आ रहे हैं और इस प्रकार कैंसर रोगियों को एक बेहतर जीवन जीने में मदद मिल रही है। इसी तरह की एक थेरेपी है, जिसे ऑर्थोमॉलीक्‍यूलर थेरेपी कहते हैं, जो शरीर में अनिवार्य विटामिन, खनिज तथा सूक्ष्‍म पौष्टिक तत्‍वों की कमी को पूरा करने से संबंधित है। इससे न केवल शरीर में मौजूद जरूरी तत्‍वों के अभाव की क्षतिपूर्ति होती है, बल्कि शरीर की रोग-प्रतिरोधी क्षमता भी बढ़ती है, शरीर की अनिवार्य कार्य-प्रणालियां बहाल होती हैं और कोशिकीय स्‍तर पर हुए डिटॉक्सिफिकेशन के जरिए शरीर के अंदर नई शक्ति स्‍फूर्ति का संचार होता है।

एक सीनियर गाइनॅकोलॉजिकल ऑनकोलॉजिस्‍ट तथा होलिस्टिक कैंसर कोच डॉ. सुजाता मित्‍तल दिल्‍ली में कार्यरत चिकित्सिका हैं, जो अब कई रोगियों को ऑर्थोमॉलीक्‍यूलर मेडीसन (OM) के तहत विटामिन C की उच्‍च खुराक (हाई डोज) दे रही हैं। कोशिकीय पोषण तथा जीवनशैली में अन्‍य परिवर्तनों के साथ यह थेरेपी दिए जाने पर ये कई आधुनिक रोगों, खासतौर से कैंसर, अल्‍ज़ाइमर्स, पार्किंसंस, PCOD, SLE तथा अन्‍य गंभीर रोगों के उपचार में इसकी प्रभावशीलता का वादा करती हैं।

डॉ. मित्‍तल का कहना है, 'इम्‍यूनोथेरेपी परंपरागत तथा गैर-परंपरागत, दोनों ही तरह के उपचारों द्वारा उपयोग में लाई जाती है। जैसा कि नाम से ही स्‍पष्‍ट है, इम्‍यूनोथेरेपी शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से संबंधित है। शरीर में हो रही किसी भी गड़बड़ को समझने के लिए शरीर के पास अपनी समझ होती है, और फिर यह इस गड़बड़ का मुकाबला करने और इससे हमें सुरक्षित रखने का प्रयास करता है। चाहे यह बीमारी कोई संक्रमण हो या फिर कैंसर, हमारी रोग-प्रतिरोधी सतर्कता शरीर की देखभाल कर रहे एक एंटेना की तरह होती है। जब यह क्षमता खराब जीवनशैली या पर्यावरणीय विकिरण, टॉक्सिन, कैमिकल्‍स इत्‍यादि जैसे बाहरी सामग्री की वजह से कमजोर पड़ जाती है, तो शरीर को विभिन्‍न रोग घेरने लगते हैं। कैंसर भी उन्‍हीं में से एक है।'

डॉ. मित्‍तल ने आगे कहा, 'सबसे पहली बात तो यह, कि परंपरागत उपचार इलाज की बात ही नहीं करता। यह अध्‍ययनों के आधार पर तीन/पांच वर्षों की जीवन दर की चर्चा करता है। दूसरे, चिकित्‍सीय उपचार असाधारण रूप से महंगे हो गए हैं। तीसरा, यह शरीर को संपूर्णता में नहीं लेते, अर्थात शरीर को एक इकाई के रूप में देखने की बजाय केवल ट्यूमर पर ही ध्‍यान देते हैं। अत:, संपूर्णात्‍मक (इंटीग्रेटिव) प्रणाली जीवन का नियंत्रण रोगी के हाथ में दे देती है और इसलिए इसे अधिक व्‍यक्ति-केंद्रित कहा जा सकता है।'

विटामिन सी थेरेपी के फायदे

बिना उचित कोशिकीय पोषण के, इम्‍युनिटी अपना काम ठीक प्रकार से नहीं कर पाता, क्‍योंकि नियमित क्रिया-कलापों के लिए कोशिकाओं को सूक्ष्‍म-पोषक तत्‍वों (माइक्रोन्‍यूट्रिएंट्स) की आवश्‍यकता होती है। ये माइक्रोन्‍यूट्रिएंट्स तत्‍व एंटी-ऑक्सिडेंट्स का काम भी करते हैं और ऊर्जा उत्‍पादन सहित कोशिकाओं के अन्‍य जरूरी काम करते हैं। इनके अभाव में, कोशिकाओं का आनुवांशिक कोड अव्‍यवस्थित हो जाता है और व्‍यक्ति में कैंसर विकसित होने की संभावना उत्‍पन्‍न हो जाती है।

इनकी भरपाई करने की आवश्‍यकता होती है और वह भी उच्‍च खुराक के साथ, जिससे कोशिकायें ठीक ढंग से काम कर सकें और कैंसर के हमले से बच सकें/इसका मुकाबला कर सकें। इस तरह की इम्‍यूनोथेरेपी के दुष्‍प्रभाव कम से कम होते हैं। उच्‍च खुराक विटामिन C थेरेपी नियमित कीमोथेरेपी के साथ भी दी जा सकती है, क्‍योंकि यह इसके दुष्‍प्रभावों को कम करने में मदद करती है।

किसे नहीं देना है

गैर-परंपरागत इम्‍यूनोथेरेपीज ज्‍यादातर सुरक्षित होती हैं, लेकिन कैंसर रोगियों को देते समय थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, G6PD की कमी वाले रोगियों को विटामिन C नहीं दिया जा सकता क्‍योंकि इससे उनमें हीमोलिसिस हो सकता है। रोगी में G6PD की कमी है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए एक साधारण सी रक्‍त–जांच की जा सकती है। यह हार्ट अटैक के साथ कैंसर वाले रोगियों को भी नहीं दिया जा सकता। 

विटामिन C की बड़ी खुराकों से कभी-कभार पेट मामूली सा खराब हो सकता है। इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि शरीर से टॉक्सिन निकल रहे हैं। जैसा कि विषहरण (डिटॉक्सिफिकेशन) की किसी भी प्रक्रिया के साथ होता है, जिन इलैक्‍ट्रोलाइट्स तथा पोषक तत्‍वों का नुकसान हुआ तो धीरे-धीरे स्‍वास्‍थ्‍यप्रद तथा हल्‍के आहार के साथ उनकी क्षतिपूर्ति करनी होती है।

कीमोथेरेपी के मुकाबले सस्‍ती

उच्‍च खुराक विटामिन C थेरेपी में, रोगियों का उपचार अधिकतर OPD आधार पर किया जाता है। दवाएं निश्चित तौर पर परंपरागत कीमोथेरेपीज के मुकाबले सस्‍ती होती हैं। और इसका लगभग कोई साइड इफैक्‍ट नहीं होता। कीमोथेरेपी के साथ-साथ लिए जाने पर भी यह उपचार किफायती है, क्‍योंकि इससे कीमोथेरेपी के दुष्‍प्रभाव कम हो जाते हैं और जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार आता है। विटामिन C की उच्‍च खुराक और व्‍यक्तिगत रूप से तैयार किए गए कोशिकीय पोषण से लगभग हर प्रकार के कैंसर का उपचार हो सकता है।

गैर-परंपरागत विटामिन C थेरेपी के लाभ:

  1. कोशिकीय स्‍तर पर शरीर से विषाक्‍तता (संदर्भ/ रेफरेंस) दूर करती है।
  2. शरीर को भारी धातुओं, रोगाणुओं और टॉक्सिन से निजात पाने में मदद करती है।
  3. दुष्‍प्रभाव (साइड इफैक्‍ट्स) न के बराबर
  4. कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने और संख्‍या बढ़ने से रोकती है
  5. कीमोथेरेपी के साइड इफैक्‍ट्स को कम करती है
  6. अन्‍य कई व्‍याधियों के उपचार में मदद करती है
  7. हड्डियों को मजबूत व त्‍वचा को स्‍वस्‍थ बनाती है

कैंसर की स्‍टेज व रोगी की सहनशक्ति के हिसाब से थेरेपी रोज से लेकर सप्‍ताह में एक बार तक दी जा सकती है।

ऐतिहासिक रूप से, 1950 के दशक में विटामिन C कैंसर के उपचार में एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाता था। यह पानी में घुल जाने वाला एंटी-ऑक्सिडेंट है और एक्‍स्‍ट्रासेल्‍यूलर (कोशिकाबाह्य) कॉलाजन का उत्‍पादन बढ़ाता है और यह प्रतिरोधी तंत्र के ठीक से काम करने के लिए भी जरूरी है। (हॉफमैन 1985; कैमरॉन, इत्‍यादि 1979) इससे इस परिकल्‍पना को जन्‍म मिला कि एस्‍कॉर्बेट की पूर्ति कर देने से सामान्‍य ऊतकों (टिश्‍यू) को ट्यूमर ग्रस्‍त होने या इसके फैलने से बचाया जा सकता है। (मॅक्‍कॉर्मिक 1959; कैमरॉन, इत्‍यादि 1979)। 

यह पाया गया कि कैंसर के रोगियों में अक्‍सर विटामिन C समाप्‍त हो चुका होता है (हॉफमैन, 1985; रायरडॅन, इत्‍यादि, 2005), और इसकी भरपाई कर देने से इम्‍यून सिस्‍टम प्रणाली में सुधार आ जाता है और रोगी का स्‍वास्‍थ्‍य बेहतर हो जाता है। 

(हेन्‍सन, इत्‍यादि, 1991) कैमरॉन और पॉलिंग ने देखा कि अंतिम चरण में पहुंच चुके कैंसर रोगियों को इंट्रावीनस (IV) एस्‍कॉर्बेट इन्‍फ्यूजन और इसके बाद ओरल सप्‍लीमेंट्स देने से इनके जीवन की आशा में चार गुना बढ़ोत्‍तरी आई। तो, IV इंजैक्‍शन निश्चित तौर पर ओरल दवाओं/सप्‍लीमेंट्स से बेहतर हैं। अध्‍ययन अब भी चल रहे हैं और रोजाना पहले से अधिक अध्‍ययन किए जा रहे हैं।

डिस्‍क्‍लेमर: डॉ. सुजाता मित्‍तल दिल्‍ली मूल की एक सीनियर गाइनॅकोलॉजिकल ऑनकोलॉजिस्‍ट, प्रमाणित पोषण सलाहकार तथा होलिस्टिक कैंसर कोच हैं। टाइम्स नाउ लेख में प्रस्तुत तथ्यों के लिए उत्तरदायी नहीं है।