बच्चों का चिड़चिड़ा होना तो कई बार समान्य होता है लेकिन बात बात पर जब बच्चा गुस्सा होने लगे या गुस्से समान को फेंकना या चीजों को तोड़ना जैसे लक्षण दिखने लगे तो आपको सावधान हो जाना चाहिए। समान्य गुस्सा जब असमान्य बनने लगे तो समझ लें बच्चों को आपके साथ साइकोलॉजिस्ट की मदद की जरूरत है। बच्चे में ये परिवर्तन दो कारणों से हो सकता है। पहला कि उसके अंदर हार्मोंस का कुछ असमान्य बदलाव हो रहा है और दूसरा जिस परिवेश में वह रह रहा है वहां कुछ गड़बड़ है।
परिवेश पर आ नजर रखकर आप उसकी समस्या समझ सकते हैं और अगर ये हार्मोंस के कारण हो रहे तो आप साइकोलॉजिस्ट की भी मदद ले सकते हैं। बच्चों में एग्रेशन बढ़ना खतरनाक होता है। अगर आप अपने बच्चें में ऐसे बदलाव देख रहे तो कुछ उपाय जरूर काम आएंगे जो आपके बच्चे के एग्रेशन को कम कर सकें।
इस उम्र के चिड़चिड़ेपन को समझें
5 से 8 साल तक के बच्चों में चिड़चिड़ापन होने के तीन कारण होते हैं। पहला उन्हें ऐसा लगना कि उनसे ज्यादा उनके भाई-बहन को प्यार किया जा रहा। दूसरा उनकी डिमांड को पूरा न करना या उनकी बार-बार पिटाई किया जाना। तीसरा गंभीर कारण हो सकता है उनके साथ सेक्सुअल असाल्ट। इसे आपको उनसे बात कर समझना होगा और उनके गुस्से की वजह समझ कर दूर करना होगा।
14 से 25 साल की उम्र के बच्चे आमतौर में गुस्सा पेरेंट्स के बिहेव के कारण होता है। उन्हें बार बार टोकना, गलती पर खूब डांटना, सबके सामने जलील करना, उनकी आजादी में दखल, उनकी प्राइवेसी में दखल, उनके जॉब या करियर को लेकर ताना और हार्मोंस में बदलाव आदि।
हॉर्मोन्स में बदलाव भी होता है गुस्से का कारण
हॉर्मोन असंतुलन भी गुस्से और चिड़चिड़ेपन का बड़ा कारण होता है। टीनएजर्स में बहुत हाई लेवल की एनर्जी होती है और वो जब इस एनर्जी को सही जगह यूटिलाइज नहीं कर पाते तो उनके अंदर धीरे-धीरे गुस्सा पनपने लगता है। ग्रोइंग स्टेज होने के कारण हार्मोन्स में भी उतार-चढ़ाव बना रहता है। ऐसे में उनकी समस्याओं को समझ कर उनकी दिक्कतों को दूर करें। जैसे उन्हें किसी एक्स्ट्रा करिकुर्लर एक्टिविटीज में इंगेज करें।
पॉजिटिव तरीके से करें कंट्रोल
बच्चे जब गुस्स करते हैं तो पेरेंट्स का गुस्सा होना लजमी हैं लेकिन यहां पेरेंटस को कंट्रोल करना होगा। बच्चों पर अगर गुस्सा कर दिया तो सेच्युऐशन और बिगड़ सकती है। इसलिए ओवर रिएक्ट करने के बजाय बच्चा जब गुस्सा करें तो आप शांत हो कर उसे सुनें। जब वह शांत हो तब उसे प्यार से अपनी बात समझाएं। बच्चों को अधिक से अधिक फिजिकल एक्टिविटी में बिजी करें जैसे क्रिकेट, फुटबॉल और जूडो-कराटे, स्वीमिंग या बैडमिंटन खेलने के लिए प्रेरिरत करें। बच्चें के साथ वक्त गुजारें, घूमने निकल जाएं या मूवी देख कर आएं।
छोटे बच्चों को प्यार दें और बातें करें
3 से 10 साल तक के बच्चों को पेरेंट्स का प्यार चाहिए होता है। ये जब नहीं मिलता तो ये चिड़चिड़े होने लगते हैं। यही नहीं कई बार रिश्तेदारों या पड़ोसियों के शोषण के कारण उनका बालमन चिड़चिड़ा हो जाता है। इसलिए जब भी बच्चा आपको अचानक से चिड़चिड़ा नजर आए आप उससे खूब प्यार करने लगे। उससे बातें करें। उसके मन की बात निकवाने का प्रयास करें। अगर आपने ऐसा नहीं किया तो ये उस बच्चे के लिए घातक साबित हो सकता है। बच्चे को कभी किसी के सामने न डांटें न मारें। छोटे बच्चों में भी सेल्फ रिस्पेक्ट हर्ट होती है।
साइकोलॉजिस्ट की लें हेल्प
अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे में तमाम प्रयास के बाद भी बदलाव नहीं आ रहा तो आप निसंकोच साइकोलॉजिस्ट की हेल्प लें। क्लिनकल साइकोलॉजिस्ट आपके बच्चे की समस्या को समझ कर उसका इलाज बताएंगे। साइकोलॉजिस्ट की हेल्प लेकर आप बच्चे का भविष्य बिगड़ने से बचा सकते हैं।
घर का माहौल सुधारें
अगर घर में लड़ाई-झगड़े या तनाव का माहौल होगा तो एक स्वस्थ बच्चा भी मानिसक रूप से बीमार हो सकता है। उसके बाल मन पर बहुत ही बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं इसलिए घर का माहौल हमेशा पॉजिटिव रखें। अगर बच्चा बड़ा है तो उसके साथ दोस्ताना रवैया अपनाएं। उसके साथ टोकाटाकी या डांटने की प्रवत्ति त्याग दें।
डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता। किसी भी तरह का फिटनेस प्रोग्राम शुरू करने अथवा अपनी डाइट में किसी तरह का बदलाव करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
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