लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्य पुष्प पलाश से बने हर्बल रंग-गुलाल की महक सात समंदर पार अब विदेशों तक पहुंची है। यहां के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाए गये हर्बल रंग गुलाल से भारत के अलावा लंदन में भी होली खेली जाएगी। उप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित स्वयं सहायता समूह की महिलाएं सोनभद्र, मिजार्पुर, चंदौली, वाराणसी, चित्रकूट में लाल, हरा, बैंगनी, गुलाबी, रंग का हर्बल गुलाल और रंग तैयार कर रही हैं। इसकी मांग पूरे भारत के अलावा लंदन में भी है, जिसके लिए आर्डर तैयार करके भेज दिया गया है।
पलाश के पुष्पों से हर्बल गुलाल रंग तैयार करने वाली सोनभद्र भीम प्रेरणा समूह की कंचन ने बताया कि, "पलाश के पुष्पों को तोड़कर उसे एक दिन सुखाया जाता है। फिर पुष्प को पानी में दो घंटे उबालते है। यह रंग छोड़ देता है। इसके बाद इसमें अरारोड और पलाश के पानी का रंग मिला लेते हैं। फिर इसे फैलाकर सूखा लेते हैं। इससे हर्बल गुलाल तैयार हो जाता है। इसमें लागत बहुत कम आती है। इसमें आरारोड का पैसा लगता है। औसत 60 से 70 रुपए में यह तैयार हो जाता है। बजार में यह 150 से 200 के बीच में बड़े आराम से बिक जाता है। इसमें अच्छा मुनाफा होता है। हमारे साथ 11 महिलाएं इसे तैयार कर रही हैं। अभी तक हमारे ग्रुप ने 3 क्विंटल तैयार किया था। जो कि सोनभद्र जिले में ही बिक गया है।"
ग्रामीण आजीविका मिशन के डायरेक्टर सुजीत कुमार ने बताया कि, "होली में केमिकल रहित रंगों का प्रयोग हो। इसके लिए पलाश के फूलों से रंग और गुलाल तैयार कराया जा रहा है। जहां -जहां पलाश होता है। वहां के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इस काम को अंजाम देने में लगी हुई हैं। खासकर सोनभद्र, मिजार्पुर जिले में इसके फूलों से गुलाल और रंग बनाया जा रहा है। अभी तक प्रदेश के 32 जनपदों में 4058 महिला समूहों द्वारा प्रतिदिन 5000 किलो हर्बल रंग और गुलाल तैयार किया जा रहा है, जिसका बिक्री मूल्य लगभग 7 लाख रुपए है।"
उन्होंने बताया कि, "इसके अलावा समूह की महिलाओं के द्वारा विभिन्न जनपदों में हर्बल गुलाल हर्बल कलर एवं चिप्स, पापड़, गुझिया भी तैयार किया जा रहा है। इसके लिए जनपदों में हर्बल कलर एवं गुलाल बनाने हेतु मिशन द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। उत्पाद को बेचने का एक करोड़ का लक्ष्य रखा गया है। सोनभद्र के समूह द्वारा बनाए गए हर्बल कलर की मांग लंदन से भी आई है, जिसका ऑर्डर शीघ्र ही तैयार करके भेजा जा रहा है।"
पंडित सरोजकांत मिश्र कहते हैं कि, "पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इससे प्राप्त लकड़ी से दण्ड बनाकर द्विजों का यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है। परियोजना प्रबंधक आचार्य शेखर ने बताया कोरोना वायरस के दहशत के कारण होली पर लोग रंग-गुलाल खेलने से परहेज का मन बनाएं हुए हैं। ऐसे में पलाश के फूल की डिमांड बढ़ रही है। क्योंकि पलाश के फूल से बने रंग प्राकृतिक होते हैं और इससे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता। यूपी के सोनभद्र में पलाश के फूलों की मांग मध्य प्रदेष, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड के अलावा लंदन के लिए भी आर्डर बुक कर वहां भेजा गया है।"
आर्युवेदाचार्य डॉ. विजय सेठ ने बताया कि, "पलाश मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी है। इसके हर्बल रंग त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पलाश हमेशा त्वचा में निखार लाते हैं। यह एंटी वायरल और एंटी फंगल से बचाता है। यह प्रदूषण कम करता है। यह पेट के रोग में बहुत लाभकारी है। बस रंग बनाते समय इसमें केमिकल न मिलाया जाए तो कोई दिक्कत नहीं होगी।"