World Mental Health Day 2021: भारत में ही नहीं दुनिया भर में मानसिक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। कोरोना ने इसमें और इजाफा ही किया है। WHO का कहना है कि कोविड-19 महामारी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बड़े प्रभाव डाले हैं, इसलिए इस दिवस को मनाने की जरुरत और बढ़ गई है। कुछ ग्रुप, जिनमें हेल्थ और अन्य फ्रंटलाइन वर्कर, छात्र, अकेले रहने वाले लोग और पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले लोग विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं। कोविड के दौरान मानसिकऔर न्यूरोलोजिकल डिसऑर्डर के लिए सेवाएं काफी बाधित हुई हैं। यह दिवस मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काम करने का अवसर प्रदान करता है जो वर्तमान में दुनिया को प्रभावित कर रहा है और यह सुनिश्चित करता है कि लोग अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का आनंद ले सकें।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day) की थीम क्या है?
हर साल, इस दिवस को एक खास विषय के साथ चिह्नित किया जाता है, इस वर्ष का थीम 'एक असमान दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य' (Mental Health In An Unequal World) है जो 'हैव्स' और 'हैव नॉट्स' के बीच की खाई को कम करने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह हर गुजरते समय से व्यापक होता जा रहा है। मानसिक स्वास्थ्य समस्या वाले लोगों की देखभाल की निरंतर जरुरत है। वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ जिसने इस साल के विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के विषय को चुनने में मदद की। उसका कहना है कि इस थीम का उद्देश्य इस बात को उजागर करना है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं कम आय वाले लोगों तक पहुंचे। 75% से 95% मानसिक डिसऑर्डर वाले लोग निम्न और मध्य आय वाले हैं। मानसिक रोग से ग्रस्त बहुत से लोगों को वह इलाज नहीं मिलता जिसके वे हकदार हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) क्या कहता है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनिया भर में करीब 28 करोड़ लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं, जबकि दुनिया के 5 बच्चों में से करीब 1 को मानसिक डिसऑर्डर है। इसमें आगे कहा गया है कि मानसिक, न्यूरोलोजिकल डिसऑर्डर बीमारी के ग्लोबल बोझ का 10% और गैर-घातक रोग बोझ का 30% बनाते हैं। जहां तक भारत का संबंध है, 'द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 1990-2017' के अध्ययन के अनुसार, भारत में 197.3 मिलियन लोग विभिन्न मानसिक डिसऑर्डर से पीड़ित थे। यह 7 भारतीयों में से 1 में है। देश में मानसिक डिसऑर्डर के कारण होने वाली बीमारियों में दो गुना वृद्धि देखी गई। भारत में कुल बीमारी का बोझ 1990 में 2.5% से बढ़कर 2017 में 4.7% हो गया। परिवार और स्वास्थ्य मंत्रालय के सर्वे में यह भी कहा गया है कि भारत में हर 12 में से एक बुजुर्ग व्यक्ति में डिप्रेशन के लक्षण हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में चिह्नित करता है, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के सपोर्ट में प्रयास करना है।
भारत को मानसिक स्वास्थ्य पर तत्काल ध्यान केंद्रित करने की जरुरत क्यों है?
भारत में मानसिक रोगियों की संख्या जिस हिसाब से बढ़ रही है। उस हिसाब से इलाज की सुविधा नहीं है। WHO के अनुसार, भारत में मानसिक स्वास्थ्य वर्कफोर्स सही नहीं है और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीड़ित लोगों की संख्या की तुलना में देश में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी है। वर्ष 2016 के आंकड़े के आधार पर 2019 में WHO द्वारा प्रकाशित डेटा के मुताबिक भारत में, प्रति एक लाख जनसंख्या पर 3 मनोचिकित्सकों की जरुरत है लेकिन यहां सिर्फ 0.292 मनोचिकित्सक हैं। 2018 में लोकसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, भारत में 20,250 की जरुरत के मुकाबले सिर्फ 898 मनोवैज्ञानिक हैं। इसके अलावा, देश में 3,000 की आवश्यकता के मुकाबले मात्र 1,500 मनोरोग नर्स हैं। अगर हम मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर नजर डालें तो भारत में सामान्य अस्पतालों में मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रति 1 लाख पर 0.560 बिस्तर हैं जबकि अमेरिका में 11.143 हैं। इसी तरह, मानसिक अस्पतालों में प्रति 1 लाख पर 1.426 बिस्तर हैं जबकि अमेरिका में 18.660 बिस्तर हैं।