- प्रति वर्ष करीब पंद्रह लाख लोग विश्व भर में आत्महत्या करते हैं।
- समाज से दूर रहने वाले लोगों पर पड़ता है इसका सबसे अधिक प्रभाव
- लोगों के हावभाव से मानसिक तनाव की पहचान की जा सकती है
साल 2003 से ही प्रतिवर्ष 10 सितंबर को विश्व आत्मह्त्या निरोध दिवस (world suicide prevention day, WSPD) मनाया जाता है। इस दिवस को मानने का कारण है विश्व में आत्महत्या के लगातार बढ़ते मामले। इस दिन को मानने का मकसद लोगों को आत्महत्या की समस्या के प्रति जागरूक करना है। इस मुहिम की शुरुआत इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ (WFMH) के साथ मिल कर की थी। 2011 तक विश्व के 40 देश इस मुहिम का हिस्सा बनें। प्रतिवर्ष 1.5 मिलियन लोग सिर्फ खुदकुशी कर मरते हैं। हर दशक में ये आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।
जब मानव निराशा के अंत तक पहुंच जाता है तो उसे सिर्फ आत्महत्या के कुछ और नहीं सूझता। यह निराशा कई कारणों से हो सकती है। आत्महत्या ज्यादातर खुद को ऊंची जगह से कूद कर, खुद को पंखे से लटका कर, ज़हर का सेवन कर या बंदूक की सहायता से की जाती है। विश्व में कई धर्मों और संस्कृतियों में इस कृत को पाप माना गया है। कई मनोवैज्ञानिक अवस्थाएं आत्महत्या को बढ़ाती है जिनमें निराशा, जीवन में सकारात्मकता व आनंद की कमी, तनाव या व्यग्रता मुख्य रूप से शामिल हैं।
आत्महत्या की प्रवृति के संकेत
किसी व्यक्ति के आत्महत्या करने के से पूर्व उसके व्यावहारिक व शारीरिक आचरण में बदलाव आते हैं जो अन्य व्यक्तियों को संकेत देते हैं कि वह व्यक्ति आत्महत्या जैसे कृत को अंजाम देगा। यह संकेत मुख्यता दो तरह के होते हैं। या तो आप उसके व्यावहारिक आचरण (practical behaviour/ non verbal) से पहचान कर सकते हैं या उसकी अप्रत्यक्ष मौखिक अभिव्यक्ति(indirect verbal expression) द्वारा आप उसकी मनोस्थिति की पहचान कर सकते हैं। यह संकेत कुछ इस तरह हैं -
- व्यक्ति विशेष द्वारा सामाजिक दूरी बना लेना
- हाव भाव में बदलाव
- अपनी स्वच्छता पर ध्यान न देना और बाहरी सौंदर्य में भी रुचि न लेना
- आकस्मिक अशिष्टित आचरण करना
- खान पान में गिरावट, वजन में भी बदलाव
- हर समय विचलित रहना
- अधिक गुस्सा करना
- नींद की कमी
- शराब या नशीले पदार्थों का सेवन ज़्यादा करना
- अपनी कीमती वस्तुओं या सम्पत्ति से मुंह फेर लेना, हर वक्त भावुक रहना
- आशाहीन बातें करना, हर दम निराश रहना
- भविष्य में खुद को हरता हुआ देखना
- अपने आपको दूसरों पर बोझ समझना
- खुद को नकारा समझ लेना और अकेले रहना
- हमेशा अपनी मौत के बारे में बात करना
- हमेशा खुद के मरने की कामना करना।
आत्महत्या के भाव के आने की वजह
अपनी जिन्दगी को आखिरी अंजाम तक खुद पहुंचाना आसान नहीं होता। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो ऐसा इंसान तभी करता है जब वह एक नहीं कई वजहों से तनावग्रस्त होता है। आत्महत्या के भाव आने की निम्न वजहें हो सकती हैं -
- पहले कभी खुद को मारने की, की गई कोशिश
- शारीरिक विकलांगता या विकार
- सामाजिक बहिष्कार
- बार बार किसी के द्वारा प्रताड़ित होने से
- किसी बेहद ही खास रिश्तेदार या करीबी दोस्त की (आकस्मिक) मृत्यु
- लगातार नशे की लत का शिकार रहना
- मानसिक या मनोवैज्ञानिक रोग जैसे कि मानसिक तनाव, व्यग्रता या बाईपोलर, मनोविदलता मानसिकता (Schizophrenia)
- खुद में कई तरह के डर को घर करने देना
- किसी कानूनी प्रक्रिया में खुद को फंसा पना
- वित्तीय संकट
- कुसंगति के कारण किसी बड़ी मुसीबत में पड़ जाना।
आत्महत्या की रोकथाम
जिन व्यक्तियों में उपरोक्त कहे लक्षण दिखते हैं उन्हें सबसे पहले मनोचिकित्सक से अपनी काउंसिलिंग करवानी चाहिए। अपनी स्वच्छता व खानपान पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। नियमित योग व ध्यान साधना में खुद को विलीन के लेना चाहिए। खुल कर अपने दिल का हर विचार किसी ऐसे व्यक्ति को नियमित बता देना चाहिए जिसपर भरोसा हो। अन्य व्यक्तियों को भी चाहिए कि वे ऐसे व्यक्तियों का खास खयाल रखें उन्हें भरोसे व प्यार की कमी न होने दें।