- कृषि कानून वापसी बिल लोकसभा से पारित
- विपक्ष को ऐतराज बिना चर्चा के कृषि कानून वापसी बिल को पारित कराना चाहती है सरकार
- सत्ता पक्ष का बयान- इस विषय पर पर्याप्त चर्चा हो चुकी है।
कृषि कानून वापसी बिल को लोकसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया है और सरकार की तरफ से राज्यसभा में बिल को पेश भी किया गया है। लेकिन विपक्ष को सरकार की मंशा पर ऐतराज है। कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों ने कहा कि वो इस विषय पर व्यापक बहस चाहते थे। लेकिन सरकार मनमाने पर उतर आई है। कृषि कानून वापसी बिल ही सिर्फ एक मुद्दा नहीं है, बल्कि एमएसपी को वैधानिक आधार, लखीमपुरखीरी हिंसा, आंदोलन के दौरान शहीद किसान, गृहराज्यमंत्री अजय मिश्रा का मुद्दा भी है। लेकिन सरकार की तरफ से कहा गया कि इस मुद्दे पर पर्याप्त बहस हो चुकी है। विपक्ष सिर्फ राजनीतिल लाभ के मकसद से अड़ंगा लगा रहा है।
विपक्ष को ऐतराज
राज्यसभा में नेता, विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हम चाहते हैं कि कृषि कानून निरसन विधेयक, 2021 पर चर्चा हो। लेकिन लोकसभा में इस विधेयक को जल्दबाजी में पारित कर वे (सरकार) सिर्फ यह साबित करना चाहते हैं कि वे किसानों के पक्ष में हैं।लोकसभा में नेता विपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि जिस तरह से केंद्र सरकार बिना किसी चर्चा के कृषि कानून वापसी बिल को पारित कराने पर आमादा है उससे साफ है कि वो सिर्फ राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। यह सरकार किसानों के मुद्दे पर इतनी संवेदनशील होती है तो निश्चित तौर पर सदन में व्यापक चर्चा होती।
सत्ता पक्ष की सफाई
संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि कृषि विधेयकों के पारित होने के दौरान काफी चर्चा हुई थी। आज पूरा विपक्ष कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहा था। लेकिन जब हम कानूनों को निरस्त करने गए तो विपक्ष ने हंगामा किया, मैं विपक्ष से पूछता हूं कि उनकी मंशा क्या है?: सरकार की मंशा साफ है- हम लोकसभा में कृषि कानून निरसन विधेयक 2021 पारित करना चाहते हैं और बाद में इसे राज्यसभा में ले जाना चाहते हैं। मैं विपक्ष से अपील करता हूं कि विधेयक को राज्यसभा में ले जाने पर हमारे साथ सहयोग करें।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि इस विषय पर दोनों पक्ष राजनीति कर रहे हैं। विपक्ष की कोशिश है कि वो जनता को बता सके कि सही मायनों में वो जनता के हितैषी हैं। यह उनके समर्थन का ही नतीजा था कि सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। इसके साथ ही वो संसद के मंदिर से यह बताने की कोशिश करना चाहते हैं कि इस पूरी लड़ाई में उनकी भूमिका क्या रही और आगे क्या करना चाहते हैं। इसके अलावा अगर सत्ता पक्ष की बात करें तो सरकार की कोशिश है कि वो इस मुद्दे को अपने पक्ष में पेश करना चाहती है कि वो संवेदनशील है जो काूनन, अन्नदाताओं के पक्ष में नहीं होगा उसे बदलने में परहेज नहीं करेंगे।