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'फ्लाइंग किस, आईलवयू' में छिपा है अरविंद केजरीवाल की नई राजनीति का राज

Updated Feb 13, 2020 | 15:12 IST

Arvind Kejriwal : साल 2015 में दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद केजरीवाल का साढ़े तीन वर्ष का कार्यकाल लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ टकराव में निकल गया। इस टकराव ने दिल्ली के विकास कार्यों को प्रभावित किया।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप को मिली है प्रचंड जीत।
मुख्य बातें
  • 11 फरवरी को आए दिल्ली विधानसभा के चुनाव नतीजे, AAP ने जीती हैं 62 सीटें
  • भाजपा को मिली हैं आठ सीटें जबकि कांग्रेस एक बार फिर अपना खाता नहीं खोल सकी
  • 16 फरवरी को रामलीला मैदान में तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे अरविंद केजरीवाल

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल 16 फरवरी (रविवार) को रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री पद की तीसरी बार शपथ लेंगे। खास बात है कि केजरीवाल ने अपने शपथ-ग्रहण समारोह को पूरी तरह से 'दिल्ली केंद्रित' बना दिया है। इस समारोह के लिए उन्होंने विपक्ष के किसी नेताओं एवं मुख्यमंत्रियों को न्योता नहीं दिया है। लीक से हटकर किया गया उनका यह फैसला सियासी और आम लोगों के चर्चा का विषय है। हाल के वर्षों में सत्ता मिलने पर भाजपा या विपक्ष ऐसे अवसरों का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने के लिए करते आए हैं। 

रामलीला मैदान में केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। साल 2013 और 2015 के उनके शपथ ग्रहण समारोह में सादगी देखी गई है। अब तक उन्होंने अपने इन समारोहों को किसी तरह के दिखावे एवं प्रदर्शन से दूर रखा है। यह बात अलग है कि साल 2015 के अपने शपथ-ग्रहण समारोह के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्योता दिया लेकिन वह अपनी व्यस्तताओं का हवाला देकर रामलीला मैदान पहुंचने में असमर्थता जाहिर कर दी। 

विपक्षी एकता की अगर बात होती है तो उसमें अब तक केजरीवाल भी शामिल होते रहे हैं लेकिन 2020 के चुनाव प्रचार ने केजरीवाल की एक नई छवि बनाई है। इसे देखकर चुनावी रणनीतिकार यह मानने लगे हैं कि इस ऐतिहासिक जीत के साथ उन्होंने अपनी एक अलग राजनीति की शुरुआत की है। अन्य दलों खासकर विपक्ष के नेताओं से दूरी बनाने की उनकी इस कोशिश के मायने निकाले जा रहे हैं। खुद केजरीवाल ने भी अपनी नई राजनीतिक पारी के बारे में संकेत दे दिया है।

2019 के लोकसभा चुनावों में लगा झटका
साल 2015 में दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद केजरीवाल का साढ़े तीन वर्ष का कार्यकाल लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ टकराव में निकल गया। इस टकराव ने दिल्ली के विकास कार्यों को प्रभावित किया। केजरीवाल ने माना है कि पिछले एक डेढ़ साल से वे दिल्ली के लिए ज्यादा काम कर पाए। 2019 के लोकसभा चुनावों तक वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते थे। लेकिन इससे उनको राजनीतिक फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ। 2019 लोकसभा चुनाव परिणामों ने केजरीवाल को सजग कर दिया और उन्होंने अपना फोकस केवल दिल्ली के विकास कार्यों तक सीमित कर दिया। 

पिछले छह महीने में कोई विवादित बयान नहीं दिया 
लोकसभा चुनावों के बाद केजरीवाल ने विवादित बयानों से अपनी दूरी बना ली। ऐसे कई मौके आए जब विपक्षी दलों ने पीएम मोदी की नीतियों को लेकर उनकी तीखी आलोचना की और विवादित बयान भी दिए लेकिन केजरीवाल चुप रहे। ऐसा करने के पीछे उनकी सोच यह रही कि वह खुद को मोदी विरोधी के रूप में खुद को पेश नहीं करना चाहते थे। उन्हें पता है कि दिल्ली का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो मोदी को पसंद करता है लेकिन विस चुनाव में वह आप को वोट कर सकता है। मोदी पर किसी तरह का तीखा हमला इन वोटर्सों को नाराज कर सकता है और वे आप के खिलाफ वोट कर सकते हैं।

नई छवि के साथ नई तरह की राजनीति करना चाहते हैं केजरीवाल
दिल्ली चुनाव प्रचार में भाजपा ने शाहीन बाग के जरिए वोटरों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने केजरीवाल को 'राष्ट्र-विरोधी' बताने की कोशिश की। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने उन्हें 'आतंकवादी' तक बता डाला लेकिन भाजपा के इन हमलों से केजरीवाल न तो विचलित हुए और न पलटवार किया। केजरीवाल ने भाजपा के तीर वापस उन्हीं पर छोड़ दिए। आप के इस नेता ने इमोशनल कार्ड खेलते हुए खुद को दिल्ली का बेटा बताया और दिल्ली की जनता को इसका जवाब देने के लिए कहा। कुल मिलाकर भाजपा का चुनाव प्रचार जहां नकारात्मक रहा वहीं आम आदमी पार्टी ने जनता के समक्ष अपनी उबलब्धियां गिनाईं।

एक्टिविस्ट केजरीवाल अब माहिर राजनेता बन गए हैं
एक्टिविस्ट केजरीवाल अब माहिर राजनेता बन गए हैं। उन्हें पता चल गया है कि बड़ा नेता बनने के लिए बड़ी सोच एवं सकारात्मक राजनीति करने की जरूरत है। देश की जनता इसे पसंद करती है। साल 2013 में उन्होंने भले ही राजनीतिक गलतियां कीं लेकिन हवा का रुख भांपना एवं महीन राजनीति करना उन्हें आने लगा है। उन्होंने पीएम पर हमला करना और अपना आक्रामक रवैया एक तरह से छोड़ा दिया है। वह विपक्ष जैसा भी नहीं दिखना चाहते। उन्होंने अपना राजनीतिक अंदाज बदला है जिसकी झलक प्रचंड जीत के बाद उनके चेहरे पर देखने को मिली। पार्टी मुख्यालय पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा, 'दिल्ली वालों आपने गजब कर दिया, आईलवयू।' इसके बाद उन्होंने 'फ्लाइंग किस' किया। जीत के बाद इस तरह की प्रतिक्रिया अन्य भारतीय राजनेताओं से देखने को नहीं मिलती। इस अंदाज को लोगों ने पसंद किया। 

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