- भाजपा की जीत और सपा की हार के बाद आजम खान का बढ़ा महत्व
- मायावती, शिवपाल यादव, ओवेसी से लेकर कांग्रेस पार्टी डाल रही है डोरे
- रामपुर में उनका और उनके परिवार का हमेशा सियासी वर्चस्व रहा है।
Azam Khan Released: उत्तर प्रदेश की राजनीति के प्रमुख मुस्लिम चेहरे आजम खान करीब 27 महीने बाद आज जमानत पर जेल से रिहा गए। रिहाई के दौरान आजम खान की जो तस्वीर सामने आई है, वह कई सियासी संदेश दे रही है। सपा नेता आजम खान को जेल से लेने के लिए, अखिलेश यादव से नाराज चल रहे उनके चाचा शिवपाल यादव पहुंचे थे। खास बात यह रही कि आजम खान को लेने समाजवादी पार्टी से कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा था। हालांकि उनकी रिहाई पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का ट्वीट जरूर आया है। जिसमें उन्होंने लिखा झूठ के लम्हे होते हैं, सदियां नहीं!
इसके पहले 3 मई को आजम खान के बेटे मोह्ममद अब्दुल्ला आजम खान ने मोहम्मद आजम खान के नाम से ईद के दिन ट्वीट किया था। जिसमें उन्होंने लिखा था कि तू छोड़ रहा है, तो खता इसमें तेरी क्या, हर शख्स मेरा साथ, निभा भी नहीं सकता।
आज की तस्वीर और ईद के ट्वीट ही आजम खान की रिहाई का राजनितिक महत्व बढ़ा रहे हैं। और ऐसे कई सियासी संकेत मिल रहे हैं, जो आने वाले समय में आजम खान की उत्तर प्रदेश की मुस्लिम सियासत को बदल सकती है।
सपा की हार के बाद आजम खान का बढ़ा महत्व
असल में मार्च में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की वापसी के बाद ही, सीतापुर जेल विपक्षी नेताओं के लिए सियासी रणनीति का डेरा बन गई। जैसे ही अखिलेश यादव के खिलाफ मुस्लिम नेताओं की नाराजगी खबरें सामने आनी शुरू हुईं, उसके बाद आजम खान के करीबी और उनके मीडिया सलाहकार फसाहत अली खान के बयान ने इन कयासों को बल दे दिया कि आजम खान अखिलेश से नाराज है। उसके बाद तो आजम खान से जेल में प्रमुख दलों के नेताओं का तांता लग गया। इस लिस्ट में कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णन, शिवपाल यादव, भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर थे। इसके अलावा आजम खान के परिवार से रामपुर मिलने, अखिलेश के गठबंधन के साथी और राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी भी पहुंच गए।
इस दौरान अखिलेश यादव से आजम खान की नाराजगी की एक और सबूत तब मिला, जब समाजवादी पार्टी नेताओं से आजम खान ने जेल में मिलने से मना कर दिया। आजम खान के इस फैसले से उनकी करीबी फसाहत अली खान की उस बात को दम मिला जो उन्होंने रामपुर में एक सभा के दौरान कही थी।उन्होंने कहा था 'वाह राष्ट्रीय अध्यक्ष जी वाह, हमने आपको और आपके वालिद साहब (मुलायम सिंह) को चार बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाया।आप इतना नहीं कर सकते थे कि आजम खान साहब को नेता विपक्ष बना देते? वह यही नहीं रूके बोले आजम खां साहब के जेल से बाहर नही आने की वजह से हम लोग सियासी रूप से यतीम हो गए हैं।
मायावती भी डाल रही हैं डोरे
आजम खान से रिहाई के कुछ दिन पहले बसपा प्रमुख मायावती ने भी चौंकाने वाला बयान दिया। मायावती ने बीते 12 मई को ट्वीट कर कहा था कि इसी 'यूपी सरकार द्वारा अपने विरोधियों पर लगातार द्वेषपूर्ण व आतंकित कार्यवाही तथा वरिष्ठ विधायक मोहम्म्द आज़म खान को करीब सवा दो वर्षों से जेल में बन्द रखने का मामला काफी चर्चाओं में है, जो लोगों की नज़र में न्याय का गला घोंटना नहीं तो और क्या है?' मायावती का यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि बसपा के लिए 2022 के विधानसभा चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन के बाद मुस्लिम वोटर को अपने साथ बेहद जरूरी हो गया है। बसपा को इन चुनावों में केवल एक सीट पर जीत मिली थी।
और इस कवायद में सपा से नाराज मुस्लिम नेता उनके काफी काम आ सकते हैं। क्योंकि चुनावी हार के बाद कई नेता सपा में रहते हुए अखिलेश यादव की मुस्लिम राजनीति पर सवाल उठा रहे हैं। जैसे कुछ दिन पहले सपा नेता और संभल से सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा भाजपा को छोड़िए समाजवादी पार्टी ही मुसलमानों के हितों में काम नहीं कर रही। इसके अलावा कासिम राईन, मोहम्मद हमजा शेख सहित कई नेताओं ने या तो पार्टी छोड़ी दी है या फिर फिर पार्टी में रहते हुए अखिलेश यादव के बर्ताव पर सवाल उठाए हैं। उन सबका यही कहना है कि समाजवादी पार्टी मुसलमान के सवाल चुप्पी साध कर बैठी है।
आजम खान कैसे आएंगे दलों के काम
असल में आजम खान के ऊपर डोरे डोलने के पीछे सभी राजनीतिक दलों का अपना गणित है। एक तरफ उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर जा चुकी, बसपा जहां दलित और मुस्लिम गठजोड़ को दोबारा अपने पाले में लाना चाहती है। जिससे कि उसकी सियासी जमीन तैयार हो सके। तो दूसरी तरफ यूपी की राजनीति से अप्रासंगिक हो चुकी कांग्रेस, आजम खान के जरिए मुस्लिम वोटर को लुभाकर फिर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है। वहीं चाचा शिवपाल यादव आजम खान को अपने पाले में लाकर न केवल अखिलेश को बड़ा झटका देना चाहते हैं बल्कि आगे की अपनी सियासत की अहमियत बढ़ाना चाहते हैं। वहीं मुस्लिम राजनीति के बल पर यूपी में सियासी जमीन बनाने की कोशिश में लगे AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, आजम खान को अपने साथ लाकर अपनी सियासत चमकाना चाहते हैं।
असल में आजम खान यूपी की राजनीति में प्रमुख मुस्लिम चेहरा रहे हैं। और रामपुर में उनका और उनके परिवार का हमेशा सियासी वर्चस्व रहा है। इसी का परिणाम है कि जिस रामपुर में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और दूसरे मामले को लेकर 80 मुकदमें हुए और उन्हें जेल जाना पड़ा। उसके बावजूद भी 2022 के विधानसभा चुनाव में न केवल वह जीतें बल्कि उनके बेटे अब्दुल्ला खां ने भी जीत हासिल की। इस बार की जीत के साथ आजम खान ने 10 वीं बार विधानसभा चुनाव जीता है। ऐसे में साफ है कि आजम खान जिस दल के साथ जाएंगे, बड़ा मुस्लिम चेहरा मिलेगा। साथ ही वह अपने आपको योगी सरकार के मुस्लिम विरोधी राजनीति के शिकार के रूप में भी पेश करेंगे।
आजम खान को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत
एक बार सपा से निकाले जा चुके हैं आजम खान
वैसे आजम खान शुरू से समाजवादी रहे हैं लेकिन एक दौर ऐसी भी आया था, जब उन्हें खुद मुलायम सिंह यादव ने सपा से निष्कासित कर दिया था। बात साल 2009 के लोकसभा चुनावों की है। जब सपा ने अलग पार्टी बना चुके पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से हाथ मिलाया था। मुलायम सिंह के इस फैसले पर आजम खान नाराज हुए थे। लेकिन अमर सिंह के दबाव के चलते आजम खान को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया गया था। हालांकि एक साल के भीतर ही उनकी वापसी हो गई थी। लेकिन इस बीच उन्होंने सपा का दामन नहीं छोड़ा था।
ऐसे में अब देखना है कि आजम खान क्या सियासी दांव चलते हैं और अखिलेश उन्हें अपने साथ बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाते हैं। हालांकि विधानसभा नेता प्रतिपक्ष का पद खुद लेने के बाद अखिलेश यादव के पास आजम खान को बड़ा पद देने का मौका मुश्किल ही बचा है। ऐसे में अखिलेश का अगला काफी मायने रखेगा।