- बसपा का वोट बैंक मायावती के साथ रहेगा तो भाजपा को मिलेगा फायदा।
- 2017 में बसपा को 19 सीटें मिलने के बावजूद, सपा से ज्यादा वोट मिले थे।
- प्रियंका गांधी के सक्रिय होने से कांग्रेस के वोट बैंक में और गिरावट के आसार नहीं।
नई दिल्ली: यूपी में चुनावी दंगल इस समय पूर्वांचल में सिमट गया है। बीते शनिवार को जहां गृह मंत्री अमित शाह 2022 के चुनावों के लिए वाराणसी में दंगल कर रहे थे। वहीं मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल एक्सप्रे-वे का उद्घाटन किया। अब उसी एक्स्प्रेस-वे से समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव गाजीपुर से विजय रथ यात्रा निकाल रहे हैं। असल में राजनीतिक दल पूर्वांचल के सहारे में अपनी राजनीतिक समीकरण मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए हैं। पिछले 30 साल में ऐसा पहली बार लग रहा है कि यूपी चुनाव द्वि-ध्रुवीय हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो भाजपा और सपा के बीच सीटों के लिए कड़ी टक्कर होगी। और भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि यूपी चुनाव भाजपा बनाम सपा बनकर रह जाय। और सपा की पूरी कोशिश यही है कि उसे भाजपा विरोधी वोट एक मुश्त होकर मिले।
अमित शाह ने तैयार की रणनीति
वाराणसी में कार्यकर्ताओं के साथ हुई बैठक में, गृहमंत्री ने साफ तौर पर बूथ मैनेजमेंट को प्रमुख हथियार बनाने का मंत्र दिया है। सूत्रों के अनुसार पार्टी ने पार्टी ने पूरे प्रदेश में अब तक 50 लाख पन्ना प्रमुख बनाए हैं। और जल्द ही एक लाख 63 हजार बूथों पर बूथ प्रमुखों को भी तैनात करेगी। जिससे कि चुनावों में मतदाताओं को ज्यादा से ज्यादा लोगों को भाजपा के पक्ष वोट देने के लिए मतदान केंद्रों तक लाया जा सके।
बहु-ध्रुवीय चुनाव से भाजपा को फायदा
पार्टी में इस बात का भी अहसास है कि अगर यूपी चुनाव भाजपा बनाम समाजवादी पार्टी के बीच होते हैं। तो कड़ी टक्कर होगी। इसे देखते हुए पार्टी किसी भी हालत में यह नहीं चाहेगी कि द्वि-ध्रुवीय चुनाव होंगे। इसके लिए पार्टी कांग्रेस और प्रियंका गांधी पर कोई भी निशाना साधने का मौका नहीं चूंक रही है। क्योंकि अगर कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ता है तो उसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। यूपी में चुनाव क्या भाजपा बनाम सपा होता जा रहा है, तो इस पर पार्टी के एक नेता कहना है कि अभी तो यह कहना जल्दबाजी होगा। क्योंकि बहुजन समाज पार्टी का अपना एक बड़ा वोट बैंक है, जो हर स्थिति में मायावती के साथ रहता है। इसके अलावा प्रियंका गांधी के आने से थोड़ा बहुत जरूर फायदा मिल सकता है।
2017 में किस पार्टी का कितना वोट प्रतिशत
पिछले विधान सभा चुनाव (2017) में भाजपा को 39.67 फीसदी वोट मिले थे। जबकि समाजवादी पार्टी को 21.82 फीसदी और बहुजन समाज पार्टी को 22.23 फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को 6.25 फीसदी मिले थे। वहीं सीटों के आधार पर देखा जाय तो भाजपा को 312, सपा को 47 और बसपा को 19 सीटें मिली थीं। भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर कांग्रेस के वोटों में 5-10 फीसदी के बीच रहे और बसपा को भी 20 फीसदी वोट मिलता है, तो उनके लिए सत्ता की राह आसान हो सकती है। लेकिन अगर भाजपा विरोधी वोट सपा के तरफ जाते हैं, तो कड़ी टक्कर की स्थिति खड़ी हो सकती है।
मोदी, विकास और कानून व्यवस्था प्रमुख दांव
पार्टी के लिए चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही सबसे करिश्माई नेता रहेंगे। इसलिए उनकी ज्यादा से ज्यादा दौरे होने शुरू हो गए हैं। आने वाले दिनों में इसमें और बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा पार्टी का फोकस विकास कार्यों पर रहेगा। जिसमें कानून व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ पार्टी नए मेडिकल कॉलेज, एक्स्प्रेस-वे, डिफेंस कॉरिडोर, ओडीओपी स्कीम और कोविड प्रबंधन-टीकाकरण की उपलब्धियों को ज्यादा से ज्यादा पहुंचाने पर जोर दे रही है। इसके अलावा राम मंदिर मुद्दा भी प्रमुख एजेंडा रहेगा। इसके अलावा पार्टी की यह भी कोशिश है कि अखिलेश यादव की छवि एक नॉन सीरियस नेता के तौर पर पेश की जाय। इसीलिए बीच-बीच में पार्टी के नेताओं के बयान उनको लेकर आते रहे हैं कि वह अभी भी बच्चे जैसा व्यवहार करते हैं।
हिंदुत्व राजनीति
चुनावों में भाजपा राम मंदिर को प्रमुख रुप से भुनाएगी। और उसमें मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की छवि भी पार्टी के लिए ट्रंप कार्ड साबित करने की कोशिश है। इसीलिए भाजपा को जहां भी मौका मिलता है, वह हिंदुत्व के एजेंडे को आगे करने को नहीं छोड़ती है। हाल ही में कैराना में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था।