- नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा "अगर उन्हें फैसला लेने से रोका गया तो वह ईंट से ईंट बजा देंगे"
- संगत सिंह गिसजियान, सुखविंदर सिंह डैनी, पवन गोयल और कुलजीत नागरा कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए।
- 2022 का चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, इस बात के संकेत मिलने के बाद सिद्धू गुट फिर से सक्रिय हो गया है।
नई दिल्ली। अभी एक महीने हुए (23 जुलाई 2021) जब पंजाब में मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सुलह हुई थी। उसी दिन काफी मान-मनौव्वल के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह सिद्धू की ताजपोशी में पहुंचे थे। मौका पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभालने का था। चंडीगढ़ में हुए समारोह में उस वक्त कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू एक ही "माला" में नजर आए थे। ऐसे में दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान को उम्मीद जग गई थी जब राज्य में विधान सभा चुनाव होने में मुश्किल से छह महीने बचे हैं, तो दोनों नेता गिले-शिकवे भुलाकर एक साथ मिलकर पार्टी को मजबूत करेंगे। लेकिन राहुल गांधी की यह उम्मीद, अब टूटती दिख रही है और लगता है कि 18 जुलाई को हुआ शांति समझौता धराशायी होने के कगार पर पहुंच गया है।
इन घटनाक्रमों से समझिए सुलह क्यों टूटने के कगार पर
आज (27 अगस्त) को बागी तेवर अपनाते हुए नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा "अगर उन्हें फैसला लेने से रोका गया तो वह ईंट से ईंट बजा देंगे" जाहिर वह ईंट से ईंट बजाने की बात कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर इशारा करते हुए कह रहे हैं।
इसके पहले आज दिन में सिद्धू के सलाहकार मालविंदर सिंह माली ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह पर हमला बोला था। उन्होंने इस्तीफे में लिखा, 'अगर मेरे साथ कुछ भी अनहोनी हो जाती है तो कैप्टन अमरिंदर सिंह, कैबिनेट मंत्री विजय इंदर सिंगला, पंजाब से सांसद मनीष तिवारी, पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल, पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया, बीजेपी के सुभाष शर्मा और आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा और जरनैल सिंह जिम्मेदार होंगे।
सोशल मीडिया पोस्ट से आलोचना में घिरे माली को आज इस्तीफा देने को मजबूर हो गए थे। उन्होंने कुछ दिन पहले अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा था कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही कश्मीर में अवैध कब्जेदार हैं। माली ने फेसबुक पर एक कैरिकेचर भी पोस्ट किया था जिसमें पूर्व पीएम इंदिरा गांधी बंदूक लिए पोज दे रही थीं।
इस बीच सिद्ध ने कैप्टन अमरिंदर सिंह का पुराना वीडियो निकालकर बिजली की बढ़ी हुई कीमत घटाने का वादा याद दिलाया है। मामला यही नहीं रुका नाराज विधायकों का एक दल पंजाब प्रभारी हरीश रावत से मिलने बुधवार को देहरादून पहुंच गया। वहां रावत ने यह खुल कर स्वीकार किया कुछ लोग कैप्टन से नाराज हैं।
अध्यक्ष बनने के बाद अमरिंदर को देते रहे चुनौती
सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के बाद पार्टी ने चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए। यहां पर सिद्धू ने बेहद चालाकी से संगत सिंह गिसजियान, सुखविंदर सिंह डैनी, पवन गोयल और कुलजीत नागरा को चुना, जो मुख्य मंत्री के आलोचक माने जाते रहे हैं। इसके अलावा सिद्धू ने पूर्व डीजपी मोहम्मद मुस्तफा को मुख्य रणनीतिक सलाहकार, परगट सिंह को संगठन महासचिव, जगतार सिंह और सुरिंदर दल्ला को मीडिया सलाहकार नियुक्त किया है। इसके अलावा उन्होंने मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से यह मांग की थी कि पार्टी कार्यालय में हर रोज एक मंत्री को भेजा जाय, जो जनता की शिकायतों को सुने। उसे अमरिंदर पूरा कर दिया।
सिद्धू बनना चाहते हैं सीएम उम्मीदवार
असल में सिद्धधू ने जब से भाजपा का दामन छोड़ 2017 में कांग्रेस पार्टी का दामन पकड़ा, उनकी यही इच्छा है कि वह पंजाब के मुख्य मंत्री बने और वह चाहते हैं कि आलाकमान उन्हें 2022 के लिए सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दे। लेकिन जिस तरह से कैप्टन ने 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को जीत दिलाई, उससे वह दोबारा पारी खेलने के संकेत दे चुके हैं। ऐसे में यह लड़ाई अब अपने चरम पर पहुंच गई है। जिसमें आलाकमान ने सिद्धू को कैप्टन के विरोध के बावजूद अध्यक्ष बनाने का दांव चला था। उम्मीद थी कि कम से कम चुनावों तक यह लड़ाई थम जाएगी। लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
आलाकमान अब सुनने की मूड में नही
25 अगस्त को जब कैप्टन अमरिंदर सिंह की शिकायत करने पंजाब के चार कैबिनेट मंत्री और तीन विधायक हरीश रावत के पास पहुंचे। तो उसके बाद रावत ने मीडिया को बड़ा संकेत दिया था कि 2022 का चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। यह संकेत मिलने के बाद सिद्धू गुट अब सक्रिय हो चुका है। और इसी कड़ी में सिद्धधू ने चेतावनी दे डाली है। सूत्रों के अनुसार देहरादून की बैठक में रावत ने बागी विधायकों को साफ तौर पर कह दिया था कि अब आलाकमान ज्यादा नहीं सुनेगा। क्योंकि उन्हें अध्यक्ष बनाकर जिम्मेदारी दी जा चुकी है। और अब सिद्धू को काम करना चाहिए। यही नहीं दिल्ली आलाकमान से इस बात के संकेत मिल चुके हैं कि अब सिद्धू को ज्यादा तरजीह नहीं मिलने वाली है। उन्हें अब काम करके दिखाना होगा। एक सूत्र का तो यहां तक कहना है कि अगर सिद्धू नहीं सुधरे तो पार्टी कोई बड़ा फैसला भी कर सकती है।