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Chhattisgarh CM कुर्सी की लड़ाई:आलाकमान ने कर लिया फैसला ? जाने टीएस सिंहदेव और बघेल में कौन भारी

Updated Aug 27, 2021 | 12:19 IST

दिसंबर 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी, उस वक्त मुख्य मंत्री पद के लिए ताम्रध्वज साहू, चरणदास महंत, भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव दावेदार थे।

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छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीए सिंहदेव की लड़ाई खुलकर सामने आई
मुख्य बातें
  • छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने उन खबरों को निराधार बताया है कि आलाकमान ने उन्हें और विधायकों को दिल्ली बुलाया है।
  • कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह ने जुलाई में टीएस सिंहदेव पर आरोप लगाया कि सिंहदेव ने उनके काफिले पर हमला कराया था।
  • पिछले डेढ़ साल में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव में बढ़ गई हैं दूरियां।

नई दिल्ली: दिसंबर 2018 में जब कांग्रेस सरकार भारी बहुमत से आई थी, उस वक्त शायद ही किसी को अंदाजा था कि 90 में से 68 सीटे जीतने वाली कांग्रेस में मात्र ढाई साल में कुर्सी की खींचतान शुरू हो जाएगी। लड़ाई भी उन नेताओं में हो जाएगी, जो कभी आपस में दुश्मनी के लिए नहीं जाने जाते थे। हालात ऐसे हैं कि मुख्य मंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव में पिछले कुछ समय से बातचीत भी न के बराबर है। जबकि बघेल मंत्रिमंडल में टीएस सिंह स्वास्थ्य मंत्री हैं। तो इन ढाई साल में क्या हुआ जो मामला इतना बिगड़ गया है? 

ढाई साल पहले क्या हुआ था

सूत्रों के अनुसार साल 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी, उस वक्त मुख्य मंत्री पद के 4 दावेदार थे। ताम्रध्वज साहू, चरणदास महंत, भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव अपनी उम्मीदवारी लेकर आलाकमान के पास पहुंचे थे। उस समय आलाकमान ने ताम्रध्वज साहू का नाम मुख्य मंत्री के लिए करीब-करीब तय कर लिया था। लेकिन तब भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ने अपनी दावेदारी ठोक दी। और उस लड़ाई में सत्ता भूपेश बघेल के हाथ में आई। और ऐसा कहा जाता है कि ढाई-ढाई साल का फार्मूला तय हुआ। जिसके आधार पर जून 2021 में भूपेश बघेल के 2.5 साल पूरे हो गए और अब टीएस सिंहदेव मुख्य मंत्री की कुर्सी मांग रहे हैं।

पिछले डेढ़ साल से बघेल और टीएस सिंहदेव में बढ़ी दूरियां

छत्तीसगढ़ सरकार और कांग्रेस को बेहद करीब से जानने वाले एक सूत्र का कहना है "स्वास्थ्य मंत्रालय की कमान टी.एस.सिंह के पास होने के बावजूद मंत्रालय की बैठकें सीधे मुख्य मंत्री भूपेश बघेल लेने लगे थे। इसके अलावा जानबूझकर छोटे और कम प्रभावी जिलों का प्रभार टीएस सिंहदेव को दिए गए। और  बातचीत दोनों में लगभग बंद हो गई।" जहां तक जमीन पर ताकत की बात है तो भूपेश बघेल टीएस सिंहदेव के मुकाबले ज्यादा मजबूत हैं। लेकिन सरगुजा इलाके में टीएस सिंहदेव का बेहद दबदबा है। और अपने सॉफ्ट छवि की वजह से भी वह लोकप्रिय हैं। उनका कहना है कि जह 2018 मुख्य मंत्री पद का फैसला हो रहा था उस वक्त 50 से ज्यादा विधायक सिंहदेव के साथ थे।

कुर्मी लोगों का बोलबाला

मुख्य मंत्री भूपेश सिंह बघेल कुर्मी जाति से आते हैं। और उनके मुख्य मंत्री बनने के बाद कॉरपोरेशन, विश्वविद्यालय से लेकर दूसरे संस्थानों के अहम पदों पर कुर्मी जाति के लोगों की नियुक्ति बढ़ गई है। इसकी वजह से दूसरे वर्गों में नाराजगी हैं। इसके अलावा कोयला और खनन मामले में भी कई सारे आरोप लग रहे हैं। राज्य में करीब 52 फीसदी ओबीसी वोट है। इसमें सबसे ज्यादा साहू और कुर्मी की जनसंख्या ज्यादा है। 

टीएस सिंहदेव पर हमले का आरोप

जुलाई में कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह ने टीएस सिंहदेव  पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने उनके काफिले पर हमला कराया था। बृहस्पत सिंह ने कहा कि मैंने कहा था कि भूपेश बघेल अच्छा काम कर रहे है और 20-25 साल मुख्य मंत्री रहेंगे, जो टीएस सिंहदेव को पसंद नहीं आया, इसलिए मेरे काफिले पर हमला कराया था। उन्होंने कहा कि वहा राजा है, कुछ भी कर सकते हैं। असल में टीएस सिंहदेव के पूर्वज सरगुजा रियासत के राजा रह चुके हैं। और उनके भाजपा के नेताओं से भी अच्छे संबंध रहे हैं। सूत्रों के अनुसार टीएस सिंहदेव पर बृहस्पत सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों को आलाकमान ने पसंद नहीं किया है। 
 
बयानों से मिले संकेत की आगे क्या होने वाला

24 अगस्त को जब आलाकमान से दिल्ली में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की मुलाकात हुई तो उसके बाद जो बयान आए हैं, उससे ऐसे संकेत हैं कि शायद सिंहदेव का पलड़ा भारी दिख रहा है। सूत्रों के अनुसार सिंहदेव ने साफ कर दिया है कि तय फॉर्मूले के अनुसार उन्हें सत्ता मिलनी चाहिए। अगर उसे लागू नहीं किया गया तो वह मंत्रिमंडल भी छोड़े देंगे। साथ ही उन्होंने इस बात के भी संकेत दिए है कि वह पार्टी भी छोड़ सकते हैं। मीटिंग के बाद मीडिया से बात करते हुए सिंहदेव ने कहा अगर कोई खिलाड़ी एक टीम में खेलता है तो क्या वह कैप्टन बनने के बारे में नहीं सोचता है, क्या आप में से कोई कैप्टन नहीं बनना चाहता। उन्होंने कहा कि सवाल सिर्फ उसके विचार का नहीं बल्कि उसकी क्षमताओं का है, अब आखिरी फैसला हाई कमान का ही होगा।

इसी तरह भूपेश बघेल ने भी कहा है "सोनिया और राहुल के कहने पर वह मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठे थे। उनके आदेश के बाद वह पद छोड़ देंगे। इसके साथ उन्होंने कहा कि  ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर इस तरह की बातें करके लोग राज्य में राजनीतिक अस्थिरता लाने की कोशिश कर रहे हैं।

दोनों नेताओं के बयान से साफ है कि पहली बैठक में आम सहमति नहीं बन पाई है। यानी बघेल की कुर्सी बच गई है, ऐसा स्पष्ट नहीं है। इसी तरह सिंहदेव की ताजपोशी की उम्मीद भी बरकरार है।

दिल्ली पहुंचे बघेल समर्थक

सूत्रों के अनुसार पलड़ा कमजोर होता देख भूपेश बघेल अब शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी कड़ी में उनके समर्थन में 25 से ज्यादा विधायक बृहस्पतिवार शाम को दिल्ली रवाना हो गए। आज भूपेश बघेल की राहुल गांधी से मुलाकात की संभावना है। हालांकि इस बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने उन खबरों को निराधार बताया है जिसमें यह कहा गया है आलाकमान ने मुझे और विधायकों को दिल्ली बुलाया है।  उन्होंने दिल्ली गए विधायकों को भी अप्रत्यक्ष रुप से संदेश दे दिया है कि वह अनुशासन में रहे और पार्टी आलाकमान के निर्देशों का पालन करें। साफ है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और अगर स्थिति जल्द नहीं संभली तो पंजाब, राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ गांधी परिवार के लिए नया सिरदर्द बन जाएगा।

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