- रैणी गांव से 1973 में शुरू हुआ था चिपको आंदोलन
- सुंदरलाल बहुगुणा ने इस आंदोलन को प्रारंभ किया था
- वृक्षों के कटाई के खिलाफ पेड़ों से लिपट जाते थे लोग
उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ से 26 किलोमीटर दूर रैणी गांव के पास रविवार सुबह ग्लेशियर के टूटने से तबाही मच गई। इस प्रलय में कई मौतों की आशंका है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि लगभग 125 लोग लापता है, ये संख्या अधिक भी हो सकती है। ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के समीप हिमस्खलन के बाद नदी के छह स्त्रोतों में से एक धौलीगंगा नदी के जलस्तर में अचानक वृद्धि हो गई। ग्लेशियर टूटने और फिर तेजी से जलस्तर में बढ़ोतरी के बाद ऋषि गंगा में अचानक बाढ़ आ गई।
क्या था चिपको आंदोलन
रैणी गांव का इतिहास में अलग ही महत्व है। दरअसल 48 साल पहले यहीं से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी। चिपको आंदोलन वन संरक्षण आंदोलन था। यह 1973 में उत्तराखंड में शुरू हुआ था, तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा था। यह पेड़ों की रक्षा के लिए किया गया था। किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए ये आंदोलन किया। वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परंपरागत अधिकार जता रहे थे।
चिपको आंदोलन में स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया। इसकी शुरुआत भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट और श्रीमती गौरादेवी के नेतृत्व में हुई थी। भारत में वनों के संरक्षण के लिए चिपको आंदोलन सबसे मजबूत आंदोलनों में से एक है।
खूब मिली सफलता
आंदोलन के दौरान लोग पेड़ों की कटाई के खिलाफ पेड़ों से लिपट गए थे। धीरे-धीरे ये आंदोलन अन्य राज्यों में भी फैल गया। इसका असर ये हुआ कि सरकार ने वनों की रक्षा के लिए कानून बनाया और पर्यावरण मंत्रालय का भी गठन किया। 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमालयी क्षेत्रों में 15 साल तक पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया।