नई दिल्ली/बीजिंग : तिब्बती बौद्ध आध्यात्मिक नेता दलाई लामा 1959 से ही भारत में रह रहे हैं। वह कई मौकों पर भारत में धार्मिक सौहार्द की सराहना कर चुके हैं। अब एक बार फिर उन्होंने कुछ ऐसा कहा है, जिससे चीन को जाहिर तौर पर खुशी नहीं हुई। उन्होंने न केवल भारत की सराहना की, बल्कि यह भी कहा कि चीन को सांस्कृतिक विविधता की समझ नहीं है। उन्होंने हालांकि अपने 'पुराने मित्रों से मुलाकात के लिए' चीन जाने की इच्छा जताई, पर बाकी का जीवन 'शांतिपूर्ण तरीके से' भारत में बिताने की इच्छा भी जाहिर की, जिस पर चीन ने प्रतिक्रिया दी है।
चीनी विदेश मंत्रालय से जब दलाई लामा की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया मांगी गई और यह सवाल किया गया कि क्या बीजिंग तिब्बतियों के धर्म गुरु को चीन या तिब्बत की यात्रा करने की अनुमति देगा तो चीन की कम्युनिस्ट सरकार में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबीन ने कहा, बीजिंग तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता के साथ वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन तिब्बत पर बातचीत नहीं होगी। दलाई लामा के भविष्य के विषय पर चर्चा हो सकती है और इस मामले में चीन अपने पुराने रुख पर कायम है। वांग ने भारत में धर्मशाला से संचालित तिब्बतियों की निर्वासित सरकार की आलोचना भी की और इसे एक अवैध राजनीतिक संगठन बताया।
'चीन को सांस्कृतिक विविधता की समझ नहीं'
इससे पहले बुधवार को दलाई लामा ने जापान के फॉरेन कॉर्सपोंडेंटे्स क्लब की ओर से आयोजित एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस में धर्मशाला से कहा था कि चूंकि उनकी उम्र बढ़ रही है, इसलिए वह अपने 'पुराने मित्रों से मिलने के लिए' चीन जाना चाहते हैं, पर उनकी योजना चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की नहीं है। उन्होंने इस दौरान भारत में धार्मिक सौहार्द की सराहना की और कहा कि वह अपना बाकी का जीवन भारत में 'शांतिपूर्ण तरीके से' बिताना चाहते हैं। 86 वर्षीय तिब्बती बौद्ध आध्यात्मिक नेता ने चीन के नेतृत्व को लेकर कहा कि 'चीनी कम्युनिस्ट नेता संस्कृतियों की विविधताओं को नहीं समझते और अत्यधिक नियंत्रण की स्थिति अंतत: लोगों को नुकसान पहुंचाएगी।'
यहां उल्लेखनीय है कि तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद दलाई लामा की अगुवाई में बड़ी संख्या में तिब्बतियों ने पलायन किया था। उन्होंने भारत में राजनीतिक शरण ली थी। वे 1959 से ही भारत में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं और यहां से निर्वासित सरकार चला रहे हैं।