- शनिवार रात पांच मिनट के भीतर जम्मू एयरबेस पर ड्रोन से हुए हमले
- इन हमलों में ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा लेकिन बड़ी तबाही हो सकती थी
- ड्रोन कहां से आया, इसकी जांच पुलिस एवं एनआईए कर रही हैं
नई दिल्ली : जम्मू स्थित भारतीय वायु सेना के ठिकाने पर हुए ड्रोन हमले में ज्यादा नुकसान होने से तो बच गया लेकिन इस हमले ने सुरक्षा से जुड़े कई सवाल खड़े कर दिए हैं। विस्फोटक लदे ड्रोन से किसी भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान को निशाना बनाने की यह पहली घटना सामने आई है। यह ड्रोन क्या पाकिस्तान से आया था या जम्मू से ही उड़ाया गया था, जम्मू कश्मीर पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इसकी जांच कर रही हैं। जाहिर है कि आंतकवादी अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए हमले के अपने परंपरागत तौर-तरीकों के अलावा अत्याधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल करने लगे हैं।
हमलों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल आईएसआईएस करता आया है
आतंकवादी संगठन आईएसआईएस इराक और सीरिया में हमलों के लिए विस्फोटक लदे ड्रोन्स का इस्तेमाल करते आया है। अब उसी की तर्ज पर भारत में भी पहली बार हमला हुआ है। पाकिस्तान इस तरह के ड्रोन का इस्तेमाल पंजाब में नशीले पदार्थों की तस्करी एवं भारतीय इलाके में हथियार गिराने के लिए करता आया है। लेकिन अब लगता है कि आतंकवादी ड्रोन का इस्तेमाल हमला करने में भी करने लगे हैं। आतंकियों के पास अगर इस तरह की तकनीक अगर मौजूद है तो यह आने वाले समय में यह और उन्नत होगी। आंतकी भविष्य में अन्य सैन्य एवं संवेदनशील प्रतिष्ठानों को ड्रोन से निशाना बना सकते हैं।
चिंता का विषय है यह हमला
रिपोर्टों के मुताबिक एक अधिकारी ने रविवार को बताया कि ड्रोन की राडार से बचने, रणनीतिक स्थलों पर तबाही मचाने और आतंकवादियों तक हथियारों पहुंचाने की क्षमता देश के सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए निरंतर चिंता का विषय रहा है। इस तरह की पहली घटना में इन ड्रोनों का इस्तेमाल रविवार को जम्मू में वायुसेना के एक बेस पर हमला करने के लिए किया गया। अधिकारी का कहना है कि आतंकवादी बायोलॉजिकल एवं केमिकल हथियारों के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
'स्मैश-20000 प्लस' तकनीक आयात कर रही सेना
यूएवी एवं अन्य उन्नत तकनीक तक आतंकवादियों की पहुंच को देखते हुए सेना एवं पुलिस बल को अपनी तैयारी पुख्ता करनी होगी। वायु सेना को अपनी एंटी-ड्रोन सिस्टम एवं तकनीक को इस नए खतरे के हिसाब से तैयार करना होगा।
डीआरडीओ ने हाल के समय में दो एंटी ड्रोन डीईडब्ल्यू सिस्टम विकसित किया लेकिन अभी इनका उत्पादन बड़े पैमाने पर नहीं किया जा सका है। यही नहीं, सेना ड्रोन के खतरों से निपटने के लिए इजरायल की 'स्मैश-20000 प्लस' तकनीक का आयात कर रही हैं। इस तकनीक को बंदूकों एवें राइफल के ऊपर लगाया जा सकता है।
ड्रोन हमले से बचने के लिए बनानी होगी पुख्ता रणनीति
इन सबके बावजूद यही कहा जा सकता है कि भारतीय सुरक्षा बल इस तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हैं। सेना के पास अत्याधुनिक राडार एवं मिसाइलों से युक्त वायु रक्षा प्रणाली मौजूद है लेकिन यह बड़े ड्रोन्स एवं यूएवी को निष्क्रिय करने में सक्षम है। छोटे ड्रोन चूंकी कम ऊंचाई पर उड़ते हैं इसलिए ये उसकी राडार की पकड़ में नहीं आते। छोटे ड्रोन को घर की बॉलकनी से भी उड़ाया जा सकता है। इनकी रेंज चार से पांच किलोमीटर की हो सकती है।