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क्या चीन पर भरोसा किया जा सकता है? पैंगोंग इलाके से पीछे लौट रही PLA

Updated Feb 12, 2021 | 08:53 IST

Disengagement at Eastern Ladakh: चीन की सेना पीएलए घुसपैठ करते-करते फिंगर 5 तक आ गई थी। अप्रैल 2020 तक फिंगर 4 तक भारत रहता था और फिंगर 8 तक चीन की सेना।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
क्या चीन पर भरोसा किया जा सकता है?
मुख्य बातें
  • पैंगोंग त्सो झील इलाके से सेना को वापस बुलाने पर भारत-चीन में समझौता
  • भारत की सेना फिंगर तीन के पास और चीन की सेना फिंगर आठ के पास रहेगी
  • रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि ऊंचाई वाली जगहों को भारत को खाली नहीं करना चाहिए

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील के इलाके से चीन पीछे हटने के लिए तैयार हो गया है। इस बारे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा में जानकारी दी। रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के बीच हुए समझौते के तहत दोनों देशों की सीमाएं पीछे हटेंगी और फिंगर चार से लेकर फिंगर आठ तक का इलाका 'नो मैन लैंड्स' रहेगा। राजनाथ सिंह ने कहा कि इस समझौते में भारत ने अपनी एक इंच जमीन से भी समझौता नहीं किया है। सेना ने पैंगोंग लेक इलाके से अपने टैंकों के वापस लौटने का वीडियो जारी किया है। समझा जाता है कि इस समझौते के बाद पूर्वी लद्दाख में पिछले नौ महीने से चला आ रहा गतिरोध खत्म हो जाएगा। हालांकि, राजनाथ सिंह के इस बयान के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार से सवाल पूछा है कि क्या पूर्वी लद्दाख में अप्रैल से पहले वाली यथास्थिति बहाल हो रही है? 

क्या हुआ है समझौता 
चीन की सेना पीएलए घुसपैठ करते-करते फिंगर 5 तक आ गई थी। अप्रैल 2020 तक फिंगर 4 तक भारत रहता था और फिंगर 8 तक चीन की सेना। लेकिन अब समझौते के मुताबिक चीन की सेना फिंगर 8 पर जाएगी। जबकि भारतीय सेना फिंगर तीन के पास बने एक अपने एक स्थायी सैन्य बेस पर लौटेगी। अब फिंगर चार से लेकर फिंगर सात तक का इलाका 'नो मैन लैंडस' रहेगा यानि कि इस क्षेत्र में दोनों देशों की सेना नहीं रहेगी। इस इलाके में बने सभी निर्माण कार्य हटा लिए जाएंगे। 'नो मैन लैंडस' इलाके में भारत और चीन दोनों देशों की सेना गश्त नहीं लगाएगी।
क्या थी पहले स्थिति

भारत की पकड़ कमजोर करने आया था चीन
दौलत बेग ओल्डी में सैन्य ठिकाने बना लेने से इस पूरे इलाके में भारत का दबदबा बना है और चीन इसे अपनी महात्वाकांक्षी योजना सीपेक के लिए एक खतरे के रूप में देखता है। वह डीबीओ में भारत की पकड़ कमजोर और इस क्षेत्र में भारत की कनेक्टिविटी को बाधित करने के लिए गलवान की तरफ आया था, हालांकि वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया। यही नहीं, पूर्वी लद्दाख में बीते नौ महीने में भारतीय सेना ने चीन को जिस तरह से जवाब दिया है, उससे उसे लग गया कि भारत उसके नापाक मंसूबों को सफल नहीं होने देगा।

'पैंगोंग के दक्षिण स्थित ऊंचाइयां छोड़ना ठीक नहीं'
भारतीय इलाकों पर चीन की नीयत हमेशा से खराब रही है। बार-बार धोखा देने वाले देश पर कितना विश्वास किया जाना चाहिए, यह सवाल उठ रहा है। आज पीछे हटने वाली चीन की सेना पीएलए भविष्य में दोबारा घुसपैठ की कोशिश नहीं करेगी, इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती। सवाल है कि चीन के पीछे हटने के लिए क्यों तैयार हुआ है। इसके बारे में रक्षा विशेषज्ञों की अपनी राय है। कुछ विशेषज्ञ भारतीय हितों के लिहाज से इसे ठीक नहीं मान रहे हैं। दरअसल, पैंगोंग के दक्षिणी इलाके में भारत ने सामरिक रूप से चीन पर बढ़त हासिल की है। भारतीय सेना यदि इन चोटियों से वापस होती है तो यह अच्छी रणनीति नीति होगी। 

'चीन पर विश्वास नहीं' 
मेजर जनरल (रिटायर्ड) एजेबी जैनी का कहना कि चीन पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। गत 29 और 30 अगस्त को हमारी सेना ने चीन को चकमा देकर पैंगोंग के दक्षिण इलाके में स्थित मगर हिल, गुरुंग हिल, ब्लैक टॉप और येलो टॉप पर अपना नियंत्रण किया। चोटियों पर आ जाने के बाद यहां हमारी स्थिति बेहतर हुई है क्योंकि यहां से हम चीनी गतिविधियों को देख रहे हैं और जरूरत पड़ने पर उसे यहां से बड़ी चुनौती दे सकते हैं। इन चोटियों पर भारत का जब नियंत्रण हुआ तो उस समय चीन को यह बात बहुत बुरी लगी। वह चाहेगा कि भारतीय सेना इन चोटियों से लौट जाए। जैनी का कहना है कि भारतीय सेना इन चोटियों से अगर पीछे हटती है तो वह सामरूक रूप से एक चूक होगी क्योंकि ये चोटियां पहले से ही भारतीय क्षेत्र में हैं। यह अलग बात है कि यहां भारतीय सेना गश्त नहीं करती थी। लेकिन एक बार आप वहां पहुंच गए तो पीछे लौटना अच्छी बात नहीं होगी।  

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