- संसद के दोनों सदनों से कृषि विधेयक हो चुका है पारित, राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार
- कांग्रेस ने राष्ट्रपति से बिल को मंजूरी नहीं देने की अपील की
- विपक्ष के मुताबिक यह बिल किसानों के लिए डेथ वारंट जैसा
नई दिल्ली। कृषि से जुड़े तीन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुके हैं। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही ये विधेयक कानून बन जाएंगे। लेकिन इस बिल का विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। एक तरफ जहां सत्ता पक्ष का कहना है कि यह किसानों के लिए क्रांतिकारी बदलाव लेकर आएगा तो विपक्ष का कहना है कि बिल किसानों के लिए डेथ वारंट है। अगर चुनावी जीत ही किसी कानून पर सही या गलत का मुहर लगाती है तो आने वाले समय में अलग अलग राज्यों में होने वाले उपचुनाव सत्ता और विपक्ष दोनों को कसौटी पर कसेंगे।
कृषि बिल पर पीएम मोदी का क्या है कहना
कृषि बिल के बारे में पीएम मोदी ने कहा कि जो लोग किसानों के हित में एमएसपी का मुद्दा उठा रहे हैं वो देखें तो 2009 से 2014 और 2014 से लेकर 2019 तक किसने काम किया। आंकड़े सच और झूठ के बीच के फर्क को साफ साफ बता देंगे कौन किसानों का हितैषी रहा है। पीएम मोदी ने यह भी कहा था कि जिस तरह से इन बिलों पर भ्रम फैलाया जा रहा है कि किन लोगों के पेट में दर्द हो रहा है। इस बिल के जरिए उन लोगों के नापाक गठबंधन को चोट पहुंचेगी जो किसानों को अपनी जागीर समझते थे। सत्ता और विपक्ष के तर्कों का जवाब उपचुनावों के नतीजों से मिल जाएगा कि किन पक्ष का तर्क सबसे अधिक मजबूत था।
यूपी में आठ सीटों पर अहम चुनाव
उत्तर प्रदेश में आठ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं जिसमें घाटमपुर, मल्हनी, स्वार, बुलंदशहर में सदर सीट, टूंडला, देवरिया सदर,बांगरमऊ और नौगावां सादात सीट है। इनमें से चार सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हैं और यहां किसान किंगमेकर की भूमिका में रहते हैं। . इनमें चार सीटें पश्चिम यूपी हैं, जहां किसान किंगमेकर की भूमिका में हैं। किसान संगठनों के नेताओं ने एकजुट होकर मोदी सरकार खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। अखिल भारतीय किसान यूनियन ने सूबे में 25 सितंबर को चक्का जाम करने का फैसला किया है।
हरियाणा में किसान बहुल सीट पर चुनाव
अगर यूपी से हटकर हरियाणा की बात करें तो इस समय किसानों का प्रदर्शन सबसे अधिक है। पिपली इलाके में किसानों के ऊपर बुधवार को टीयर गैस के गोले छोड़े गए थे। इन सबके बीच बरौदा सीट पर उपचुनावा होना है और कांग्रेस को अपने पक्ष में माहौल बनता दिखाई दे रहा है। बरौदा सीट कांग्रेस विधायक के निधन के बाद खाली हुई है और इस माहौल में दोबारा जीत का अर्थ यह होगा कि कांग्रेस खुलकर कहेगी कि किसान बीजेपी के खिलाफ हैं। सोनीपत जिला की बरौदा सीट भी किसान बहुल क्षेत्र में है।
एमपी में 29 सीट पर चुनाव
यूपी और हरियाणा से हटकर एमपी की बात करें तो यहां पर 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव होने वाले हैं। इनमें अधिकांश सीटें ग्रामीण इलाके से आती हैं। बीजेपी के लिए इन सीटों पर जीत दर्ज करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि एक तरफ सरकार का भविष्य निर्भर करेगा दूसरी तरफ यह जीत साबित कर देगी कि कांग्रेस के विरोध में किसी तरह का दम नहीं है। बड़ी बात यह है कि जिन सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं उनमें से ज्यादातर सीटें ग्रामीण इलाकों से हैं।