- 10 जुलाई को सुबह एनकाउंटर में मारा गया था दुर्दांत अपराधी विकास दुबे
- 2 जुलाई की रात आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद था फरार
- विपक्ष ने एनकाउंटर पर उठाए सवाल, पूर्व पुलिस अधिकारी बोले- सवाल उठाना गलत
नई दिल्ली : कुख्यात हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के मारे जाने के बाद कई लोग इस एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं। विकास दुबे ने उज्जैन में सरेंडर किया या उसकी गिरफ्तारी हुई, इस पर भी विवाद है। इस विवाद के बीच पुलिस के पूर्व अधिकारियों ने साफ किया है कि विकास दुबे की गिरफ्तारी हुई न कि उसने सरेंडर किया। रिटायर्ड डीजी डॉक्टर सूर्य कुमार शुक्ला और रिटायर्ड आईजी राजेश कुमार राय ने इस तरह के विवाद को निरर्थक बताया है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को सरेंडर और गिरफ्तारी के बीच मूलभूत अंतर पता नहीं है वे ही लोग इस तरह के विवाद खड़े कर रहे हैं।
टाइम्स नाउ हिंदी से खास बातचीत में पूर्व पुलिस अधिकारी डॉक्टर सूर्य कुमार शुक्ला ने कहा, ' हिस्ट्रीशीटर विकास की गिरफ्तारी पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं। उनका दावा है कि यह गिरफ्तारी नहीं बल्कि आत्मसमर्पण है। मैं बताना चाहता हूं कि जब किसी कोर्ट में मुकदमा लिखा होता है और वहां कोई अपराधी आत्मसमर्पण करता है तो उसे सरेंडर कहा जाता है। किसी भी सूचना पर यदि किसी अपराधी को पकड़ा जाता है तो उसे गिरफ्तारी कहा जाता है। सरेंडर और गिरफ्तारी में मूलभूत अंतर समझे बिना लोग इसे पुलिस की नाकामी बता रहे हैं। ये बिल्कुल बेबुनियाद बात है। पुलिस की नाकामियां गिनाना आज कल कुछ लोगों का फैशन बन गया है।'
उन्होंने कहा, 'जिस दिन पुलिस व्यवस्था फेल हो जाएगी उस दिन समाज असुरक्षित हो जाएगा। यह संस्था सबसे ज्यादा आपत्तिकाल में लोगों को बचाती। मुसीबत में फंसे लोग मदद के लिए 100 या 112 नंबर डायल कर पुलिस को बुलाते हैं। लोगों को पुलिस का मनोबल नहीं गिराना चाहिए। चौबेपुर के एसएचओ विनय तिवारी ने यदि सीओ देवेंद्र मिश्रा की हत्या कराई तो यह गंभीर बात है। अगर दोनों अधिकारियों में मनभेद या मतभेद था तो इन्हें अलग-अलग तैनात कर देना चाहिए था। इस बात की तरफ अब ध्यान देना होगा कि पुलिसकर्मियों में आपसी दुश्मनी इतनी न बढ़ जाए कि वे मुखबिरी के जरिए एक-दूसरे को जान से मारने की साजिश न रचने लगें।'
डॉक्टर सूर्य कुमार शुक्ला ने कहा, 'पुलिस एक सामाजिक सेवा है। ऐसी स्थिति नहीं आने देना चाहिए कि अधिकारी और अपराधी एक दूसरे को मरने और मारने पर उतारू हो जाएं। यदि किसी स्थान पर पुलिस अधिकारी और अपराधी के बीच निजी दुश्मनी जैसी बात आ जाए तो पुलिस अधिकारी का दूसरी जगह स्थानांतरित कर देना चाहिए। साथ ही कोई भी पुलिस अधिकारी भविष्य में विनय तिवारी जैसा थानाध्यक्ष न हो जाए। इस पर निगरानी रखने की जरूरत है। किसी अपराधी के साथ पुलिस के संबंध नहीं होने चाहिए। एक क्रिमिनल इंटेलिजेंस सिस्टम हर जिले में होना चाहिए। मिलिट्री पुलिस की तरह पुलिस पर निगरानी करने वाली एक इकाई बनाई जानी चाहिए। यूपी पुलिस में करीब तीन लाख लोग हैं। ऐसे में उन पर नजर रखना आवश्यक है।'
एक रावण का हो गया अंत: पूर्व आईपीएस
एनकाउंटर पर सवाल उठाने वालों को रिटायर्ड आईजी राजेश कुमार राय ने करारा जवाब दिया है। उन्होंने कहा- विकास दुबे ने यह बात स्वीकारी कि वह पुलिसकर्मियों के शव को एक के ऊपर एक रखकर आग लगाना चाहता था। ऐसे दुर्दांत, मानसिक रूप से विक्षिप्त अपराधी की बातें सुनकर नोएडा के निठारी की घटना याद आती है जहां कुछ लोग बच्चों की हत्या और उनके शवों को क्षत विक्षत करते थे। सुना तो यहां तक था कि वह बच्चों का मांस भी खाते थे। मैं समझता हूं कि विकास दबे के अंत से एक रावण का अंत हुआ है। यहां दिलचस्प बात यह है हर बार की भांति आम लोग इस कार्रवाई से खुश हैं और कुछ बुद्धिजीवी इस घटना पर सवालिए निशान लगाते हुए एनकाउंटर को गलत बता रहे हैं।
पूर्व पुलिस अधिकारी राय का कहना है कि जब यह घटना हुई तो पुलिस पर आरोप लगे। पुलिस ने पकड़ने की कोशिश की तो भी हल्ला मचा कि विकास नहीं पकड़ा जा रहा है। यूपी पुलिस फेल है, नकारी है। जब विकस दुबे को पकड़कर हाजिर कर दिया तो फिर शोर मचा यूपी पुलिस विकास को नहीं पकड़ पाई। अब जब खुद की गलती से वह एनकाउंटर में मारा गया तो उसके बाद भी लोग हाय हाय कर छाती पीट रहे हैं उन्होंने कहा कि यह इस देश का दुर्भाग्य है जब भी कोई अपराधी पर कार्रवाई होती है तो कुछ लोग कोई न कोई बहाना बनाकर रोना पीटना शुरू कर देते हैं। मैं समझता हूं कि यूपी सरकार, पुलिस और एसटीएफ बधाई और साधूवाद के पात्र है। यह वाकई में एक साहसिक कदम है। मैं उम्मीद करता हूं कि इस प्रकरण की जांच को अंतिम सोपान तक ले जाएंगे। इसके कोई भी दोषी बचने नहीं पाएंगा।