- मुश्तारी खातून ने बचाई 40 लोगों की जान, सूझ- बूझ के साथ दंगा प्रभावित इलाके से बच निकलीं
- पत्थर, लाठी- डंडों और पेट्रोल बम लेकर चल रहे दंगाईयों से बचाए कई परिवार
- 1 किलोमीटर दूर पुलिस की टीम के पास यूं पहुंचीं मुश्तारी
नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली बीते दिनों बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और हिंसा से भरे माहौल की गवाह बनी। सड़कों पर पत्थरों का ढेर और आग मे जले घर- मकान, दुकान उस दर्द की साफ तौर पर गवाही दे रहे हैं जो लोगों ने झेला। अब तक दंगों में 43 लोगों के मारे जाने की बात सामने आ चुकी है। हिंसा की घटनाओं में एक तरफ कुछ उपद्रवियों ने हथियार उठा लिए और आपसी भाईचारे को तार तार किया तो इस बीच कई लोग ऐसे भी थे जिन्होंने सहिष्णुता की मिसाल कायम की और लोगों की जान बचाते हुए हीरो बनकर सामने आए। ऐसा ही एक नाम है- 'मुश्तारी खातून' जिन्होंने अपनी समझ- बूझ से 40 लोगों की जान बचाई।
मुश्तारी खातून आम तौर पर अपने घर में ही रहती हैं और सिलाई का काम करके घर चलाने में पति की मदद करती हैं लेकिन 42 वर्षीय महिला दंगों के दौरान जब घर से बाहर निकली तो हीरो बन गईं। चंदू नगर इलाके में जहां खातून रहती हैं वहां लोग अब उन्हें यही बुलाते हैं।
पेट्रोल बम और पत्थरों से बचकर निकलीं: 25 फरवरी को जब हिंसा भड़की तो मुश्तारी अपने साथ कई लोगों को लेकर समझ बूझ का इस्तेमाल करते हुए पत्थरों और पेट्रोल बमों से बच निकलीं। सड़कों पर जमा दंगाई इनसे अपने आस पास मौजूद घरों- दुकानों और लोगों पर हमला कर रहे थे।
छतों से पहुंचीं 1 किलोमीटर दूर: मुश्तारी खातून ने अपने परिजनों सहित करीब 40 लोगों को दंगा प्रभावित क्षेत्र से बाहर निकाला इसमें 8 परिवार के सदस्य शामिल थे। वह छतों की मदद से 1 किलोमीटर दूर चलकर खूजरी खास में पुलिस के दल तक पहुंच गईं जहां सभी लोगों को सुरक्षा मुहैया कराई गई। इस इलाके में घर आपस में एक दूसरे के करीब मौजूद हैं और इसलिए इस काम में ज्यादा मुश्किल नहीं आई। खजूरी खास मेन करावल रोड पर मौजूद है और यहां भारी संख्या में दंगाई मौजूद थे।
क्या बोलीं मुश्तारी खातून: लोगों की मदद करने के बाद हीरो बनकर उभरीं मुश्तारी खातून ने कहा कि उन्हें लोगों को निकालने के दौरान डर नहीं लग रहा था और उनका ध्यान बस इस बात पर था कि कैसे लोगों को दंगा प्रभावित इलाके से सुरक्षित निकाला जाए। उन्होंने कहा कि इलाके में कोई मदद मिलती नहीं दिख रही थी। लोग पेट्रोल बम, लाठी डंडों और पत्थरों के साथ गलियों में घूम रहे थे और पुलिस दूर दूर तक नजर नहीं आ रही थी। अगर समय पर सबको निकालने का फैसला नहीं किया होता तो लोगों की जान जा सकती थी।